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मुंबई में मीठी नदी सफाई घोटाला (2025) एक गंभीर मामला है, जो स्थानीय प्रशासन, ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत को उजागर करता है। यह घोटाला 21 मई 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा जांच शुरू होने के बाद सुर्खियों में आया। नीचे इस घोटाले के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है, जिसमें इसकी पृष्ठभूमि, मुख्य आरोप, जांच की प्रगति, और इसके व्यापक प्रभाव शामिल हैं।
पृष्ठभूमि:
मीठी नदी, जो मुंबई की एक 17.8 किलोमीटर लंबी मौसमी नदी है, शहर के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक जल निकासी चैनल की भूमिका निभाती है। यह नदी बरसात के दौरान अतिरिक्त पानी को समुद्र तक ले जाती है, जिससे बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। हालांकि, पिछले कई दशकों में नदी प्रदूषण, कचरा डंपिंग, और अतिक्रमण का शिकार रही है। 2005 की विनाशकारी बाढ़ के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने मीठी नदी की सफाई और चौड़ीकरण की योजना शुरू की थी। इस परियोजना का जिम्मा बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MMRDA) को सौंपा गया, जिसमें BMC 11.8 किमी हिस्से और MMRDA 6.0 किमी हिस्से की जिम्मेदारी संभालती है। 2005 से 2025 तक इस परियोजना पर करीब रु1,100 से रु1,300 करोड़ खर्च किए गए हैं।
घोटाले का खुलासा:
मई 2025 में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने एक विशेष जांच दल (SIT) के माध्यम से इस घोटाले की प्रारंभिक जांच शुरू की। 6 मई 2025 को, EOW ने आजाद मैदान पुलिस स्टेशन में 13 लोगों के खिलाफ एक FIR दर्ज की, जिसमें तीन BMC इंजीनियर, पांच ठेकेदार, तीन मध्यस्थ, और दो कंपनी अधिकारियों को नामजद किया गया। इनमें BMC के सहायक इंजीनियर प्रशांत रामुगड़े, डिप्टी चीफ इंजीनियर गणेश बेंद्रे और प्रशांत तायशेट्टे (रिटायर्ड), ठेकेदार भूपेंद्र पुरोहित, और मध्यस्थ केतन कदम व जय जोशी शामिल हैं।
21 मई 2025 को, ED ने मुंबई EOW की जांच के आधार पर एक Enforcement Case Information Report (ECIR) दर्ज कर अपनी समानांतर जांच शुरू की। ED की जांच मनी लॉन्ड्रिंग और इस घोटाले से जुड़े वित्तीय लेन-देन पर केंद्रित है। इस घोटाले में रु65.54 करोड़ के गबन का आरोप है, हालांकि समग्र परियोजना में रु1,100 करोड़ से अधिक की अनियमितताओं की जांच की जा रही है।
मुख्य आरोप:
1. फर्जी बिलिंग और डंपिंग साइट्स:
EOW की जांच में पाया गया कि ठेकेदारों ने नौ फर्जी Memorandums of Understanding (MoUs) जमा किए, जिनमें डंपिंग साइट्स की जानकारी दी गई थी। इन साइट्स पर कथित तौर पर गाद डंप की जानी थी, लेकिन जांच में पता चला कि कई साइट्स पर कोई गाद डंप नहीं की गई। कुछ भूस्वामियों ने बताया कि उन्होंने कोई MoU साइन नहीं किया था, और कुछ साइट्स के मालिकों का अस्तित्व ही नहीं था। BMC के SWD डिवीजन के अधिकारियों ने इन फर्जी दस्तावेजों को बिना सत्यापन के स्वीकार कर लिया और ठेकेदारों को भुगतान कर दिया।
2. मशीनरी किराये में हेरफेर:
ठेकेदारों को डिसिल्टिंग के लिए विशेष मशीनें—सिल्ट पशर मशीन और मल्टीपर्पस एम्फीबियस पोंटून मशीन—कोच्चि की कंपनी मैटप्रॉप टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड से किराए पर लेने के लिए मजबूर किया गया। इन मशीनों की कीमत क्रमशः रु3.07 करोड़ और रु2.10 करोड़ थी, लेकिन BMC अधिकारियों ने ठेकेदारों को इन्हें रु4.00 करोड़ के दो साल के किराए पर लेने के लिए कहा, जो मशीनों की लागत से अधिक था। डिसिल्टिंग की दर को भी बढ़ाकर रु2,193 प्रति टन (सिल्ट पशर मशीन) और रु2,366 प्रति टन (एम्फीबियस मशीन) कर दिया गया, जो पहले रु1,609 प्रति टन थी। इससे ठेकेदारों को रु17.07 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान किया गया।
3. रिश्वत और किकबैक:
EOW ने पाया कि मध्यस्थों केतन कदम और जय जोशी ने BMC अधिकारियों को रिश्वत दी, जिसमें सिंगापुर और दुबई की पारिवारिक यात्राओं का खर्च, होटल ठहराव, और हवाई टिकट शामिल थे। उदाहरण के लिए, प्रशांत रामुगड़े ने 2020-21 में कदम द्वारा प्रायोजित सिंगापुर और दुबई की यात्राएं कीं। EOW ने कदम के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से कोडेड भाषा में रिकॉर्ड भी बरामद किए, जो इस सांठगांठ की ओर इशारा करते हैं।
4. वैज्ञानिक मूल्यांकन की कमी:
2019 से 2025 तक मीठी नदी में गाद की मात्रा का कोई वैज्ञानिक मापन नहीं किया गया। हर साल गाद की मात्रा को बढ़ाकर दिखाया गया, जिससे ठेकेदारों को अधिक भुगतान किया गया। BMC के सतर्कता विभाग ने दरों में वृद्धि पर आपत्ति जताई, लेकिन तब तक रु17 करोड़ का नुकसान हो चुका था।
5. टेंडर में हेरफेर:
BMC अधिकारियों ने टेंडर की शर्तों को इस तरह तैयार किया कि केवल मैटप्रॉप की मशीनों का उपयोग अनिवार्य हो। सितंबर 2020 में, BMC अधिकारियों ने केरल और दिल्ली में मैटप्रॉप की मशीनों का अध्ययन करने के लिए दौरा किया और इसके बाद टेंडर में ऐसी शर्तें जोड़ीं, जिससे ठेकेदारों को मजबूरन इन मशीनों को किराए पर लेना पड़ा।
जांच की प्रगति:
• EOW की कार्रवाई:
7 मई 2025 को, EOW ने मध्यस्थों केतन कदम और जय जोशी को गिरफ्तार किया। दोनों को कोर्ट में पेश किया गया और 13 मई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। EOW ने सात स्थानों पर छापेमारी की, जिसमें BMC अधिकारियों, ठेकेदारों, और मध्यस्थों के घर और ऑफिस शामिल थे। जांच में कदम के डिवाइस से BMC की फाइल नोटिंग्स और टेंडर के कच्चे ड्राफ्ट की फोटोकॉपियां मिलीं, जो इस बात का संकेत हैं कि BMC के अंदर से ही जानकारी लीक की गई थी।
• ED की जांच:
21 मई 2025 को, ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के पहलू से जांच शुरू की। ED ने अभी तक आधिकारिक केस दर्ज नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, वह जल्द ही ऐसा कर सकती है। ED की जांच का फोकस इस बात पर है कि इस घोटाले से प्राप्त धन का उपयोग कैसे किया गया और क्या इसे कहीं और डायवर्ट किया गया।
प्रभाव और चिंताएं:
पर्यावरण और बाढ़ का खतरा:
मीठी नदी की सफाई मुंबई में बाढ़ रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इस घोटाले ने स्थानीय प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है। नदी की ठीक से सफाई न होने से बरसात में बांद्रा, कुर्ला, और महिम जैसे क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
सार्वजनिक धन का दुरुपयोग:
इस घोटाले ने BMC को रु65.54 करोड़ का प्रत्यक्ष नुकसान पहुंचाया, और समग्र परियोजना में रु1,100 करोड़ से अधिक की अनियमितताएं सामने आई हैं। यह सार्वजनिक धन का खुला दुरुपयोग है, जो करदाताओं के हितों के खिलाफ है।
प्रशासनिक जवाबदेही की कमी:
BMC अधिकारियों की मिलीभगत और टेंडर प्रक्रिया में हेरफेर ने प्रशासनिक जवाबदेही की कमी को उजागर किया है। यह सवाल उठता है कि क्या उच्च स्तर के अधिकारी भी इस घोटाले में शामिल थे, और क्या जांच उनके खिलाफ भी आगे बढ़ेगी।
नागरिकों का विश्वास:
इस तरह के घोटाले आम नागरिकों का प्रशासन पर विश्वास कम करते हैं। मुंबई के निवासियों, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में रहने वालों को, जो बाढ़ से प्रभावित होते हैं, यह डर सताता है कि उनकी सुरक्षा के लिए बनाई गई योजनाएं केवल भ्रष्टाचार का साधन बन रही हैं।
आलोचनात्मक विश्लेषण:
हालांकि इस घोटाले की जांच अभी प्रारंभिक चरण में है, लेकिन यह स्पष्ट है कि मीठी नदी की सफाई परियोजना में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं। 2005 से 2025 तक रु1,100 करोड़ से अधिक खर्च होने के बावजूद नदी की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। यह सवाल उठता है कि क्या यह घोटाला केवल ठेकेदारों और निचले स्तर के अधिकारियों तक सीमित है, या इसमें बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण की भूमिका है। सोशल मीडिया पोस्ट्स में यह भी सुझाव दिया गया है कि मीठी नदी की सफाई हर साल ठेकेदारों, अधिकारियों, और राजनेताओं के लिए एक “प्रो बोनस स्कैम” बन गई है, लेकिन इस दावे की पुष्टि के लिए ठोस सबूतों की आवश्यकता है।
इसके अलावा, जांच की गति और परिणाम पर संदेह बना हुआ है। भारत में अतीत के कई घोटालों की तरह, यह भी केवल प्रचार तक सीमित रह सकता है, और दोषियों को सजा मिलने की संभावना कम हो सकती है। ED और EOW की जांच से कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन यह देखना होगा कि क्या यह जांच उच्च स्तर तक पहुंचती है और क्या इसका कोई ठोस परिणाम निकलता है।
निष्कर्ष:
मीठी नदी सफाई घोटाला (2025) मुंबई में प्रशासनिक भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी का एक और उदाहरण है। रु65.54 करोड़ के प्रत्यक्ष गबन और रु1,100 करोड़ से अधिक की संभावित अनियमितताओं ने इस परियोजना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। यह घोटाला न केवल वित्तीय नुकसान का मामला है, बल्कि मुंबई के निवासियों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण से भी जुड़ा है। जांच की प्रगति पर नजर रखना जरूरी होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दोषियों को सजा मिले और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
इस तरह के घटनाओ से लोगों का विश्वास कानून व्यवस्था और तंत्र पर shake होता है। लोगों में यह भावना घर कर रही है कि घोटालेबाज़ों का कुछ नहीं होगा। यह एक आम धारणा है कि ये घोटालेबाज अपनी money power एवं contacts का इस्तेमाल कर बच निकलेंगे। घोटालेबाज़ों का राजनैतिक गठजोड़ व सत्ता लोलुप्ता भी एक बड़ी समस्या है। निष्पक्ष जांच नहीं हो पाती। Investigating Agencies पर political pressure डाला जाता है। घोटालेबाज़ों को कानून का कोई भय नहीं क़ानूनों को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए। जांच time-bound manner में की जानी चाहिए। जरा सोचिए! फैसला आप खुद कीजिये।