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महाकुंभ : 57 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान के बाद भी अल्कलाइन वाटर से बेहतर गंगा जल, प्रयोगशाला में साबित

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अपडेटेड 20 फ़रवरी 2025, 11:47 PM IST
महाकुंभ : 57 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान के बाद भी अल्कलाइन वाटर से बेहतर गंगा जल, प्रयोगशाला में साबित
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बीएनटी न्यूज़

महाकुंभ नगर। महाकुंभ में अब तक 57 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। इसके बावजूद गंगा जल की शुद्धता पर कोई असर नहीं पड़ा है। मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम के साथ वैज्ञानिक विमर्श करने वाले पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने अपनी प्रयोगशाला में यह सिद्ध कर दिया है कि गंगा का जल न केवल स्नान योग्य है, बल्कि अल्कलाइन वाटर जैसा शुद्ध है। गंगा नदी के जल की शुद्धता पर सवाल उठाने वालों को देश के शीर्ष वैज्ञानिक ने अपनी प्रयोगशाला में झूठा साबित कर दिया है।

उन्होंने अपने सामने गंगा जल लेकर प्रयोगशाला में जांचने की खुली चुनौती भी दी है। साथ ही कहा है कि जिसे जरा भी संदेह हो, वह मेरे सामने गंगा जल ले और प्रयोगशाला में जांचकर संतुष्ट हो जाए।

मोती उगाने की दुनिया में जापानी वर्चस्व को चुनौती देने वाले शीर्ष भारतीय वैज्ञानिक ने संगम और अरैल के साथ एक दो नहीं, बल्कि पांच घाटों से गंगा जल कलेक्ट किया है।

डॉ. सोनकर के लगातार तीन महीने के शोध ने यह साबित किया कि गंगा जल सबसे शुद्ध है। यहां नहाने से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हो सकता है। प्रयोगशाला में इसकी शुद्धता की पूरी तरह से पुष्टि हो गई है। बैक्टीरियोफेज के कारण गंगा जल की अद्भुत स्वच्छता क्षमता हर तरह से बरकरार है।

देश के शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने महाकुंभ नगर के संगम नोज और अरैल समेत अलग-अलग पांच प्रमुख स्नान घाटों से खुद जाकर जल के नमूने इकट्ठा किए। इसके बाद उन्हें अपनी प्रयोगशाला में सूक्ष्म परीक्षण के लिए रखा। डॉ. अजय के अनुसार, आश्चर्यजनक रूप से करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान के बावजूद जल में न तो बैक्टीरियल ग्रोथ देखी गई और न ही जल के पीएच स्तर में कोई गिरावट आई।

देश के शीर्ष वैज्ञानिक ने इस शोध में पाया कि गंगा जल में 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज मौजूद हैं, जो किसी भी हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं। यही कारण है कि गंगा जल में 57 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान करने के बाद भी उसका पानी दूषित नहीं हुआ।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ संस्थाओं और लोगों ने जनता में एक तरह का भ्रम फैलाया, जिसमें गंगा जल को आचमन और स्नान के लिए अयोग्य बताया गया था। वहीं, डॉ. सोनकर के शोध ने इस दावे को पूरी तरह गलत साबित कर दिया है। उन्होंने कहा कि गंगा जल की अम्लीयता (पीएच) सामान्य से बेहतर है और उसमें किसी भी प्रकार की दुर्गंध या जीवाणु वृद्धि नहीं पाई गई। विभिन्न घाटों पर लिए गए सैंपल को प्रयोगशाला में 8.4 से लेकर 8.6 तक पीएच स्तर का पाया गया है, जो काफी बेहतर माना गया है।

प्रयोगशाला में जल के नमूनों को 14 घंटों तक इंक्यूबेशन तापमान पर रखने के बाद भी उनमें किसी भी प्रकार की हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं हुई। डॉ. सोनकर ने यह भी स्पष्ट किया कि गंगा का जल न केवल स्नान के लिए सुरक्षित है, बल्कि इसके संपर्क में आने से त्वचा संबंधी रोग भी नहीं होते। उनका दावा है कि कोई भी व्यक्ति उनके साथ घाटों पर जाकर जल के नमूने इकट्ठा कर सकता है और प्रयोगशाला में उनकी शुद्धता की पुष्टि कर सकता है। महाकुंभ में 57 करोड़ से अधिक लोगों के स्नान के बावजूद गंगा जल आज भी अपनी प्राकृतिक शक्ति से रोगमुक्त बना हुआ है।

डॉ. सोनकर ने कहा कि यहां महाकुंभ को लेकर एक बात बहुत ध्यान देने वाली है और वो यह कि जिस प्रकार गंगा के जल को महाकुंभ के पहले से ही अति दूषित बताकर दुष्प्रचार किया जा रहा है, लेकिन यदि ऐसी स्थिति सच में हुई होती तो अब तक दुनिया में हाहाकार मच गया होता। अस्पतालों में कहीं पैर रखने की जगह भी नहीं बची होती। ये मां गंगा की स्वयं को शुद्ध कर लेने की अद्भुत शक्ति है कि 57 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान कर लेने के बाद भी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। भ्रम फैलाने वालों से पूछा जाना चाहिए कि यदि गंगा जल दूषित है तो इन 57 करोड़ श्रद्धालुओं में से एक भी श्रद्धालु को किसी प्रकार की बीमारी की कोई शिकायत क्यों नहीं पाई गई।

डॉ. सोनकर के अनुसार, पानी में बैक्टीरिया की वृद्धि पानी को अम्लीय बना देती है। कई बैक्टीरिया अपने चयापचय के हिस्से के रूप में अम्लीय उपोत्पाद उत्पन्न करते हैं, जो पानी के पीएच स्तर को कम करता है। जैसे ही बैक्टीरिया पोषक तत्वों का उपभोग करते हैं, वे लैक्टिक एसिड या कार्बोनिक एसिड जैसे अम्लीय यौगिकों को छोड़ते हैं। जिसकी वजह से पीएच गिर जाता है। लेकिन, जांच में पांचों नमूने अल्कलाइन पाए गए, जिसकी पीएच वैल्यू 8.4 से 8.6 रिकॉर्ड हुई है, जो बैक्टीरिया के अप्रभाव को साबित करता है। साथ ही जल के नमूने में जीवित बैक्टीरिया बहुत कम संख्या में थे, जो जैविक रूप से अपनी आबादी बढ़ाने योग्य नहीं पाए गए। 37°से. पर इंक्यूबेशन कंडीशन में भी बैक्टीरिया की संख्या नहीं बढ़ी है।

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