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जज का कैश कांड

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अपडेटेड 26 मार्च 2025, 3:53 PM IST
जज का कैश कांड
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कब होगा न्यायपालिका मे सुधार?

घटना की शुरुआत होती है 14 मार्च 2025 को, होली की छुट्टियों के दौरान, जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले, तुगलक क्रिसेंट, लुटियंस दिल्ली, में आग लगी। उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे। उनकी बेटी और घरेलू स्टाफ ने आग लगने की सूचना दी और फायर ब्रिगेड को बुलाया। आग बुझाने के बाद, फायर ब्रिगेड और मौके पर मौजूद दिल्ली पुलिस ने स्टोररूम में जले हुए जूट के थैलों में भारी मात्रा में नकदी देखी। शुरुआती अनुमान के अनुसार, यह राशि रु15 करोड़ तक हो सकती है, हालाँकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। वीडियो और तस्वीरों में जली हुई 500 रुपये की नोटें दिखाई दीं, जिनमें महात्मा गांधी की तस्वीरें आंशिक रूप से जल चुकी थीं।

प्रारंभिक प्रतिक्रिया और विवाद

फायर डिपार्टमेंट ने आग को “स्टेशनरी और घरेलू सामानों” से जुड़ा बताया, लेकिन कैश का कोई आधिकारिक उल्लेख नहीं किया। दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक अतुल गर्ग ने बाद में कहा कि उनके कर्मियों ने “एक भी पैसा” नहीं देखा और स्थान पुलिस को सौंप दिया गया। हालाँकि, वीडियो और तस्वीरें (जो बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जारी कीं) इस दावे से मेल नहीं खातीं। जस्टिस वर्मा ने इसे “षड्यंत्र” करार दिया। उन्होंने कहा कि न तो वह और न ही उनका परिवार उस स्टोररूम में नकदी रखता था। उनका दावा है कि यह उनके खिलाफ छवि खराब करने की साजिश है और आग लगने के बाद जब वे स्टोररूम में गए, तो वहाँ कोई नकदी नहीं थी। बाद में वीडियो सामने आने पर उन्होंने साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की आशंका जताई। स्टोररूम में जबरन घुसने के कोई सबूत नहीं मिले। यह जगह घरेलू स्टाफ, माली और CPWD कर्मियों के लिए सुलभ थी, जिससे यह सवाल उठता है कि कैश वहाँ कैसे पहुँचा।

सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम की कार्रवाई

घटना की जानकारी दिल्ली पुलिस और सरकार के माध्यम से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना तक पहुँची। CJI ने तुरंत सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बुलाई। 20 मार्च 2025 को, कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट, में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह ट्रांसफर जाँच से स्वतंत्र है और पहले से विचाराधीन था। 21 मार्च 2025 को, CJI ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय से रिपोर्ट माँगी। इसके बाद, 22 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक तीन सदस्यीय समिति गठित की, जिसमें शामिल हैं:
1. जस्टिस शील नागू (पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश)
2. जस्टिस जी.एस. संधवालिया (हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश)
3. जस्टिस अनु शिवरामन (कर्नाटक हाई कोर्ट की जज)

यह समिति जाँच करेगी और अपनी रिपोर्ट CJI को सौंपेगी। जस्टिस वर्मा को अस्थायी रूप से न्यायिक कार्यों से हटा दिया गया है और उन्हें अपने फोन डेटा को संरक्षित करने का निर्देश दिया गया है। अब जस्टिस वर्मा के 6 महीने की कॉल डिटेल्स की जांच की जाएगी।

जाँच रिपोर्ट और साक्ष्य

दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा से कैश की मौजूदगी का स्पष्टीकरण माँगा। रिपोर्ट में कहा गया कि स्टोररूम में कोई जबरन घुसपैठ नहीं हुई, और यह केवल स्टाफ के लिए सुलभ था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दस्तावेज: 22 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण कदम उठाते हुए रिपोर्ट, वीडियो और तस्वीरें सार्वजनिक कीं। वीडियो में एक फायरमैन जले हुए नोटों को प्लास्टिक बैग से निकालते दिखा, और एक आवाज कहती है, “महात्मा गांधी में आग लग गई।” सफाई कर्मचारी इंदरजीत ने बताया कि घटना के कुछ दिन बाद सड़क पर जली हुई 500 रुपये की नोटें मिलीं, जिससे साक्ष्य नष्ट करने की आशंका बढ़ी।

जस्टिस वर्मा का इतिहास और संदेह

जस्टिस यशवंत वर्मा (जन्म: 6 जनवरी 1969, प्रयागराज) ने 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से LLB किया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। वे 2014 में अतिरिक्त जज और 2016 में स्थायी जज बने। अक्टूबर 2021 में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित किया गया। 2018 में, CBI ने सिंभाओली शुगर मिल्स बैंक धोखाधड़ी मामले में जस्टिस वर्मा को गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में आरोपी नंबर 10 नामित किया था। यह मामला रु148.59 करोड़ के फर्जी ऋण से जुड़ा था। हालाँकि, यह जाँच आगे नहीं बढ़ी, और सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इसे रद्द कर दिया था। इस पुराने मामले ने वर्तमान विवाद को और जटिल बना दिया। 2023 में, जस्टिस वर्मा ने UPI की प्रशंसा की थी, इसे नकद लेनदेन कम करने वाला क्रांतिकारी कदम बताया था। अब कैश मिलने से यह विडंबना चर्चा में है।

विरोध और प्रतिक्रियाएँ

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने ट्रांसफर का विरोध किया, इसे “कचरे का डिब्बा” बनाना करार दिया। अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा, “99% जज ईमानदार हैं, तो 1% को क्यों बचाया जा रहा है?” दिल्ली हाई कोर्ट बार अध्यक्ष मोहित माथुर ने कहा कि यदि जाँच में दोष सिद्ध हुआ, तो निंदा होनी चाहिए, लेकिन जल्दबाजी से जनता का भरोसा कम हो सकता है। कांग्रेस पार्टी ने इसे गंभीर मामला बताया और पूछा कि यह पैसा किसका था और क्यों था। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और इंदिरा जयसिंह ने कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की, इसे पारदर्शी बनाने की माँग की।

कानूनी प्रक्रिया और संभावित परिणाम

सुप्रीम कोर्ट की 1999 की प्रक्रिया के तहत, CJI पहले जज से जवाब माँगता है। यदि जवाब असंतोषजनक हो, तो तीन जजों की समिति बनती है। यदि दोष सिद्ध हो, तो CJI जज को इस्तीफा देने को कह सकता है, या संसद से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है (अनुच्छेद 124(4))। K. Veeraswami (1991) मामले के अनुसार, CBI जांच के लिए CJI की मंजूरी जरूरी है। अभी तक यह शुरू नहीं हुई।

न्यायपालिका के अंदर भ्रष्टाचार का मुद्दा बहुत गंभीर है। यह जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करे कि नियुक्ति प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी होना चाहिए। संदेह जनक आच्ररण वाले जजो के काम काज पर टाईम बाउंड जांच होनी चहिये, ताकि आम जनता का न्यायपालिका पर फिर से भरोसा कायम हो सके।

इस तरह के घटनाओ से लोगों का विश्वास कानून व्यवस्था और तंत्र पर shake होता है। लोगों में यह भावना घर कर रही है कि घोटालेबाज़ों का कुछ नहीं होगा। यह एक आम धारणा है कि ये घोटालेबाज अपनी money power एवं contacts का इस्तेमाल कर बच निकलेंगे। घोटालेबाज़ों का राजनैतिक गठजोड़ व सत्ता लोलुप्ता भी एक बड़ी समस्या है। निष्पक्ष जांच नहीं हो पाती। Investigating Agencies पर political pressure डाला जाता है। घोटालेबाज़ों को कानून का कोई भय नहीं क़ानूनों को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए। जांच time-bound manner में की जानी चाहिए। जरा सोचिए! फैसला आप खुद कीजिये।

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