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चीनी छात्र अमेरिका में रेसिज्म का शिकार हो रहे

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अपडेटेड 07 अगस्त 2020, 9:16 AM IST
चीनी छात्र अमेरिका में रेसिज्म का शिकार हो रहे
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चीनी छात्र अमेरिका में रेसिज्म का शिकार हो रहे

 

बीजिंग, 7 अगस्त (बीएनटी न्यूज़)| दुनिया के सबसे पावरफुल देश में आजकल कोरोना वायरस महामारी ने कोहराम मचा रखा है। इसके साथ ही नवंबर में होने वाले चुनावों की आहट भी है, वहीं चीन के साथ रिश्ते भी खराब हो रहे हैं। इस सबके बीच अमेरिका में रहने वाले चीनी लोगों को रेसिज्म यानी नस्लभेद का शिकार होना पड़ रहा है। चीन-अमेरिका संबंधों और कोविड-19 के कहर से अमेरिका में रहने वाले तमाम छात्र प्रभावित हो रहे हैं। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में लगभग 3 लाख 60 हजार चीनी छात्र पढ़ते हैं। हालांकि अमेरिका के तमाम संस्थानों ने बयान जारी कर कहा है कि वे चीनी छात्रों का स्वागत करते हैं।

 

लेकिन पिछले कुछ समय से चीनी स्टूडेंट्स की चिंताएं बहुत बढ़ गयी हैं। जहां एक ओर कोरोना वायरस के कारण अमेरिका में लगभग डेढ़ लाख से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है। जबकि 47 लाख से ज्यादा वायरस से संक्रमित हुए हैं। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति व अन्य नेता बार-बार वायरस के प्रसार के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इसका असर लोगों की मानसिकता पर भी पड़ता है, वैसे भी अमेरिका में रेसिज्म की घटनाएं आम हैं। कुछ समय पहले अश्वेत अमेरिकी जार्ज फ्लॉयड की मौत ने अमेरिकन सिस्टम पर तमाम सवाल खड़े किए हैं। वहीं अमेरिका में एशियाई मूल के लोग भी नस्लभेद का सामना कर रहे हैं।

 

यहां हम चीनी युवती श चंगथिए का उदाहरण देना चाहेंगे, जो कई साल पहले अमेरिका के आहायो में पढ़ाई करने के लिए गयी थी। अभी वह अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में अध्ययन-रत है। उसने ऊई अमेरिकन ड्रीम देखा था, लेकिन हाल के दिनों में माहौल बहुत खराब हो गया है। वह कहती हैं, हमें अब यहां दुश्मन की तरह देखा जा रहा है।

 

अमेरिका में स्टडी करने वाले कई अन्य चीनी छात्र भी कुछ इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने पिछले कुछ महीनों में, दो ऐतिहासिक घटनाओं का अनुभव किया है, एक कोरोना महामारी और दूसरा अमेरिका व चीन के बीच बढ़ता तनाव। इन वजहों से इन युवाओं को भविष्य की चिंता सता रही है।

 

वहीं सायराकूज यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर यिंगई मा ने जनवरी महीने में चीनी छात्र-छात्राओं के अनुभवों पर ‘महत्वाकांक्षी और चिंता’ नामक एक पुस्तक लिखी थी। लेकिन उनका कहना है कि, अगर अभी उन्हें किताब लिखने का मौका मिलता तो, उसका शीर्षक सिर्फ ‘चिंता’ होगा। 

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