दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक अहम फैसले में कहा है कि रेप का केस दर्ज होने के बाद अगर आरोपी और शिकायती लडक़ी के बीच समझौता हो जाए और दोनों शादी कर लें तब भी समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं हो सकता। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला दिया गया। इसमें कहा गया कि समाज के खिलाफ किए गए अपराध के मामले में समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं हो सकता। आखिर किन मामलों में समझौते के आधार पर केस रद्द हो सकता है और किन मामलों में नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर क्या व्यवस्था दी हुई है, ये जानना जरूरी है।
समझौतावादी और गैर समझौतावादी अपराध: कानूनी जानकार बताते हैं कि अपराध दो तरह से होते हैं समझौतावादी और गैर समझौतावादी। समझौतावादी अपराध आमतौर पर हल्के किस्म के अपराध होते हैं। गैर समझौतावादी मामले गंभीर किस्म के अपराध होते हैं। सीनियर एडवोकेट केके मनन बताते हैं कि सीआरपीसी की धारा-320 के तहत उन अपराध के बारे में बताया गया है जो समझौतावादी होते हैं। 3 साल तक की सजा वाले ज्यादातर मामले समझौतावादी हैं। इसमें कुछ अपवाद भी हैं। समझौतावादी अपराध में धमकी देना, मामूली मारपीट, जबरन रास्ता रोकने और आपराधिक मानहानि जैसे मामले आते हैं। ऐसे मामले में अगर शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो जाए और वे चाहते हैं कि केस खत्म किया जाना चाहिए तो इसके लिए समझौता करने के बाद कोर्ट (जिस कोर्ट में मामला पेंडिंग है) को सूचित किया जाता है कि समझौता हो चुका है ऐसे में कार्रवाई खत्म की जाए और फिर केस को अदालत खत्म कर देती है। इसी कैटिगरी में कुछ ऐसे भी अपराध हैं, जिसमें कोर्ट की इजाजत से केस रद्द होता है। चोरी, धोखाधड़ी और जख्मी करने जैसे मामलों में कोर्ट की इजाजत से ही केस रद्द हो सकता है।