लापरवाही से मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त सजा के प्रावधान करने की वकालत की है। आखिर, क्या है मौजूदा प्रावधान और इसमें बदलाव की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है? कानूनी जानकार बताते हैं कि मौजूदा समय में लापरवाही से मौत के मामले में आईपीसी की धारा-304 ए के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है। मौजूदा समय में पुलिस अपनी मर्जी से मामले में केस दर्ज करती है। कई बार गंभीर मामले में भी सिर्फ लापरवाही से मौत का केस दर्ज होता है और यही कारण है कि इस कानून पर संसद में बहस की जरूरत है और प्रावधान में बदलाव की दरकार है।
सजा के प्रावधान को दोबारा देखें : सुप्रीम कोर्ट
- सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दो बार आईपीसी की धारा-304 ए यानी लापरवाही से मौत के मामले में संसद से कहा था कि वह सजा के प्रावधान को दोबारा देखें। सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च 2015 को कहा था कि ड्रंकन ड्राइविंग और लापरवाही से गाड़ी चलाने वालों के कारण लोग इसकी कीमत चुका रहे हैं। ऐसे में कानून बनाने वालों को चाहिए कि लापरवाही से मौत (धारा 304 ए) से संबंधित सजा को दोबारा देखें। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2012 में अपने एक फैसले में कहा था कि लापरवाही से मौत या गैर इरादतन हत्या मामले में संसद में बहस की जरूरत है।
कब आईपीसी की धारा-304 ए लगाई जाती है?
- कानूनी जानकारों का कहना है कि पुलिस आमतौर पर सडक़ हादसे के मामले में आईपीसी की धारा-304 ए के तहत केस दर्ज करती है। एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि जब भी सडक़ हादसे में किसी की मौत होती है तो पुलिस धारा-304 ए (लापरवाही से मौत) का केस दर्ज करती है। दोषी पाए जाने पर अधिकतम दो साल कैद की सजा का प्रावधान है। मामले जमानती हैं।
धारा-304 ए कब गैर इरादतन हत्या का मामला बन जाता है? - अगर पहले से जानकारी हो कि ऐसी लापरवाही से किसी की जान जा सकती है तो वहां लापरवाही का मामला नहीं बनता, बल्कि जान बूझकर की गई लापरवाही का मामला बनता है। ऐसे मामले में नॉलेज का पार्ट भी आ जाता है और जहां नॉलेज का पार्ट आ जाए वहां आईपीसी की धारा-304 पार्ट टू का केस बनता है। 304 पार्ट टू यानी गैर इरादतन हत्या मामले में 10 साल कैद की सजा का प्रावधान है।
कानूनी जानकारों की राय
- सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी बताते हैं कि जब भी सडक़ हादसा होता है और किसी की मौत हो जाती है तो पुलिस आमतौर पर ऐसे मामले में सीधे 304 ए यानी लापरवाही से मौत का केस दर्ज करती है और आरोपी को थाने से जमानत हो जाती है। लेकिन कई बार हादसा ज्यादा गंभीर होता है। कई बार गाड़ी चलाने वाला गाड़ी में फंसे विक्टिम को ड्रैग करता है, कई बार हिट एंड रन का केस होता है या फिर कई बार ड्रंकन ड्राइविंग का केस होता है। ये ऐसे मामले हैं, जिनमें सख्त सजा के प्रावधान की जरूरत है।
धारा 304 ए में डिबेट की जरूरत
दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस आर.एस. सोढ़ी बताते हैं कि आईपीसी की धारा-304 ए के प्रावधान में संसद में डिबेट की जरूरत है। इसमें कुछ प्रावधान जोड़े जाने की जरूरत है। मसलन अगर सडक़ हादसे में ड्रंकन ड्राइविंग, हिट एंड रन का केस हो या फिर ड्राइवर को इस बात की नॉलेज हो कि उसकी हरकत से विक्टिम की जान जा सकती है तो ऐसे मामले को लापरवाही से मौत के मामले में केस दर्ज करने के बजाय अनिवार्य तौर पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज हो। आईपीसी की धारा-304 ए में इसके लिए अलग से प्रावधान किया जाना चाहिए और ऐसे मामले को गैर जमानती बनाते हुए सख्त सजा के प्रावधान की जरूरत है ताकि पुलिस ऐसे मामले में अपनी मर्जी न करे और अनिवार्य तौर पर केस की परिस्थिति के हिसाब से आरोपी के खिलाफ केस दर्ज करे ताकि सख्त सजा हो। बीएमडब्ल्यू और एलेस्टर परेरा केस हैं उदाहरण बीएमडब्ल्यू हिट एंड रन या फिर एलेस्टर परेरा केस हो दोनों ही मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या माना था।