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सुप्रीम कोर्ट ने कोविड2.0 के बीच मोराटोरियम पर आदेश देने से इनकार किया

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अपडेटेड 12 जून 2021, 3:26 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कोविड2.0 के बीच मोराटोरियम पर आदेश देने से इनकार किया
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सुप्रीम कोर्ट ने कोविड2.0 के बीच मोराटोरियम पर आदेश देने से इनकार किया

नई दिल्ली, 12 जून (बीएनटी न्यूज़)| सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच आर्थिक तंगी और अन्य दिक्कतों के मद्देनजर फिर से ऋण स्थगन राहत (लोन मोराटोरियम) व बैंकों द्वारा एनपीए की घोषणा पर अस्थायी रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें वित्तीय मामलों में विशेषज्ञ नहीं हैं।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायामूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कहा कि हम स्वीकार करते हैं कि हम वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ नहीं हैं। हम वित्तीय प्रभावों का अनुमान नहीं लगा सकते हैं। ये मुद्दे नीतिगत फैसलों के दायरे में हैं।

पीठ ने जोर देकर कहा कि यह सरकार के दायरे में है कि वह स्थिति का आकलन करे और उचित निर्णय ले।

पीठ अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और लॉकडाउन के दौरान कर्जदारों को कुछ राहत देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि दूसरी लहर ने कम से कम एक करोड़ लोगों को बेरोजगार कर दिया है।

पीठ ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी किए गए कुछ सकरुलर के अनुसार वह कुछ वित्तीय पैकेजों की घोषणा पहले ही कर चुका है। जवाब में याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि यह मध्यम वर्गीय परिवारों की समस्याओं का समाधान करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस पर पीठ ने जवाब दिया देते हुए कहा कि हम वित्तीय मामलों पर फैसला नहीं कर सकते।

न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि सरकार के पास टीकाकरण, प्रवासी श्रमिकों से जुड़े मामलों से निपटने के अलावा अन्य कई दबाव वाले मुद्दे हैं। मामले में एक संक्षिप्त सुनवाई के बाद, शीर्ष अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और मामले का निपटारा करते हुए कहा कि सरकार उचित निर्णय लेना चाहिए।

याचिका में कहा गया था कि बैंक या वित्तीय संस्थान छह महीने की अवधि के लिए किसी भी नागरिक या किसी कॉपोर्रेट निकाय की संपत्ति के संबंध में नीलामी की कार्रवाई करने से बचना चाहिए।

याचिका में केंद्र को सभी वित्तीय संस्थानों को सावधि ऋण के लिए ब्याज मुक्त मोराटोरियम देने और छह महीने की अवधि के लिए या कोविड-19 की स्थिति जारी रहने तक ऋण किस्तों के भुगतान को स्थगित करने की अनुमति देने की मांग की गई थी।

इसके साथ ही याचिका में यह भी मांग की गई थी कि कोविड-19 महामारी में दूसरी लहर के मद्देनजर छह महीने की अवधि के लिए किसी भी खाते को गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित नहीं किया जाना चाहिए।

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