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किसी भी देश का चंद्रमा लैंडिंग मानव जाति का गौरव है

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अपडेटेड 15 जनवरी 2022, 8:05 AM IST
किसी भी देश का चंद्रमा लैंडिंग मानव जाति का गौरव है
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सन 1970 के दशक में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सफलतापूर्वक चंद्रमा पर उतरे। इसके बाद चंद्रमा पर उतरने की कोशिशें दशकों तक चुप रहीं। हालाँकि एशिया में कई प्रमुख एयरोस्पेस शक्तियों ने अब चंद्र अन्वेषण के मुद्दे पर एक नई प्रतियोगिता शुरू कर दी है। हाल ही में, जापान ने घोषणा की है कि वह 2025 और 2030 के बीच पहले जापानी अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर भेजेगा। इससे पहले, दिसंबर 2017 में, जापान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन नामक एक योजना पर हस्ताक्षर किए, जिसमें संयुक्त रूप से 2024 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक चंद्र रोवर भेजना शामिल है। योजना के अनुसार, जापान 350 किलोग्राम के पेलोड के साथ अंतरिक्ष यान और चंद्र रोवर को लॉन्च करने के लिए एक रॉकेट तैयार करेगा, जबकि भारत चंद्र लैंडिंग अंतरिक्ष यान प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है। जापान भी एक एयरोस्पेस पावर है। 24 जनवरी, 1990 की शुरूआत में, जापान ने अपना पहला चंद्र अन्वेषण अंतरिक्ष यान हितेन लॉन्च किया, और एशियाई देशों में सबसे पूर्व सफलतापूर्वक चंद्रमा के चारों ओर कक्षीय उड़ान का संचालन किया। 2007 से 2009 तक, जापान ने एशियाई देशों में सबसे पहले स्वतंत्र चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम किया। रॉकेट, मुख्य ऑर्बिटर्स, रिले उपग्रह और चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले उपग्रह सहित सभी उप-प्रणालियों का निर्माण जापान द्वारा किया गया। जिसे अपोलो योजना के बाद सबसे महान चंद्र अन्वेषण मिशन कहा गया।

जापान के अलावा, भारत भी चंद्र अन्वेषण के मुद्दे पर निरंतर कोशिश कर रहा है। भारत ने 2019 तक दो बार चंद्रयान -1 और चंद्रयान -2 को लॉन्च किया है। उधर 3 जनवरी, 2019 को, चीन द्वारा लॉन्च किया गया चांग-अ नम्बर 4 चंद्रयान चंद्रमा की पीठ पर सफलतापूर्वक उतरा, जिससे मानव के इतिहास में पहली बार कोई रोवर चंद्रमा की पीठ पर उतरी है। दिसंबर 2020 में, चीन का चंद्रयान चांग-अ नम्बर 5 चंद्रमा के नमूनों को लेकर सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आया।

उधर वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया भारत का चंद्रयान -2 की यात्रा ने दुनिया पर गहरी छाप छोड़ी। चंद्रयान-2 का चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर संपर्क टूट गया। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि चंद्रयान-2 का प्रक्षेपवक्र अपने अवतरण के अंतिम चरण में भटक जाता है, जो कुछ तंत्र की विश्वसनीयता की कमी को दशार्ता है। लेकिन चंद्रयान -2 का मिशन पूरी तरह से विफल नहीं हुआ, और ऑर्बिटर अन्वेषण का मिशन तब तक जारी रखता है जब तक कि यह अपने कामकाजी जीवन को समाप्त नहीं कर देता। योजना के मुताबिक, भारत वर्ष 2024 में चंद्रयान -3 को फिर चंद्र सतह पर एक और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करने के लिए लॉन्च करेगा।

एशियाई देशों के लिए, चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में अपना स्थान कायम करने न केवल वैज्ञानिक अर्थ होता है, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का भी होता है। वर्तमान में, दुनिया में एयरोस्पेस का एक नया चाँद हॉट शुरू हुआ है। अमेरिका ने 2024 से पहले मानव चंद्र लैंडिंग करवाने की योजना बनाई है। उधर एशिया के अंतरिक्ष अन्वेषण शक्तियों को भी अपने अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की योजनाएं है। वास्तव में, एशिया की कई एयरोस्पेस शक्तियां अमेरिका के साथ प्रतियोगिता नहीं कर सकती हैं। लेकिन अगर एशियाई देश सहयोग कर सकते हैं, तो वे वित्तीय संसाधनों और प्रौद्योगिकी के मामले में अमेरिका से कम नहीं हैं। एशिया की एयरोस्पेस शक्तियों के लिए, जो भी पहले चंद्रमा पर उतर सकता है, वह भी एशियाई और यहां तक कि तमाम मानव जाति का गौरव है, और उसका वैज्ञानिक प्रगतियों और एशियाई शताब्दी के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अहम अर्थ भी है।

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