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पूर्वोत्तर में है महिलाओं के लिए उद्यमी बनने का अवसर

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अपडेटेड 11 फ़रवरी 2022, 2:55 PM IST
पूर्वोत्तर में है महिलाओं के लिए उद्यमी बनने का अवसर
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पूर्वोत्तर में है महिलाओं के लिए उद्यमी बनने का अवसर

दिल्ली, 11 फ़रवरी (बीएनटी न्यूज़)। योबिना लिंगदोह मार्शिलॉन्ग मेघालय स्थित पश्चिम खासी हिल्स के जाखोंग गांव की रहने वाली हैं। काफी सुदूर इलाके से होने के कारण अपनी कृषि उपज की बिक्री को लेकर उनमें विश्वास की कमी थी। इसके चलते उनका सफल उद्यमी बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया था। भारत सरकार ने साल 2001 में उत्तर पूर्वी क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन परियोजना (एनईआरसीओआरएमपी) के जरिए योबिना के गांव में हस्तक्षेप किया। इस हस्तक्षेप के बाद योबिना एक सफल उद्यमी के रूप में सामने आई हैं।

केंद्र सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय ने इस विषय में आधिकारिक जानकारी देते हुए बताया कि एनईआरसीओआरएमपी, भारत सरकार की उत्तर पूर्वी परिषद के उत्तर पूर्वी क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन सोसायटी (एनईआरसीआरएमएस) की आजीविका से जुड़ी एक पहल है। यह संयुक्त रूप से इंटरनेशनल फंड फोर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी) के साथ काम करता है, जिसका मुख्यालय रोम में है।

इस परियोजना के तहत योबिना स्वयं सहायता समूह (एसएचजी)- ‘का ब्यूट का लॉन्ग का बोर’ (ज्ञान ही मजबूती है) की सदस्य बनीं। इस एसएचजी का गठन 16 अप्रैल, 2002 को किया गया था। इसके बाद जल्द ही वह अपने नेतृत्व संबंधी गुणों और प्रबंधकीय कौशल के चलते समूह की अध्यक्ष भी बन गईं।

एनईआरसीओएमपी पूरे गांव के लिए लाभदायक रहा है। इस परियोजना के तहत खुले में शौच की समस्या को दूर करने के लिए शुरुआती पहल के रूप में सस्ती शौचालय सुविधाओं की स्थापना की गई थी। इस पहल का ग्रामीणों ने स्वागत किया और उन्होंने इसके अनुरूप स्वच्छता व स्वस्थ रहने के तरीकों के बारे में जानकारी प्राप्त की।

इस परियोजना द्वारा समर्थित एक अन्य पहल एसएचजी के लिए रिवाल्विंग (निरंतर संचालित होने वाली) निधि थी। शुरुआत में इस एसएचजी को एक लाख रुपये की कुल निधि सहायता प्राप्त हुई। योबिना ने एसएचजी की रिवाल्विंग निधि से 14000 (चौदह हजार रुपये) का ऋण लिया और गांव में एक किराने (ग्रॉसरी) की दुकान खोली। इस परियोजना के तहत प्राप्त क्षमता निर्माण सहायता के जरिए उन्होंने अपने उद्यमशीलता कौशल में बढ़ोतरी की व व्यवसाय को और आगे बढ़ाया। धीरे-धीरे उन्होंने गांव में ही एक और किराने की दुकान खोल ली।

गांव में किराने की दो दुकानें सफलतापूर्वक खोलने के बाद उन्होंने अपनी उपज को मैरांग और शिलांग जैसे शहरी केंद्रों में बेचा। इन सबके चलते वह एक सफल उद्यमी के रूप में सामने आई हैं।

केंद्रीय पूर्वोत्तर विकास मंत्रालय के मुताबिक, अब एसएचजी के अन्य सदस्यों के साथ योबिना मैरांग और शिलांग में अपने माल की बिक्री करती हैं। अपनी उपज की बिक्री सीधे शहरी केंद्रों में करने से समूह अब हर दिन 10,000 से 15,000 रुपये कमा रही है। उन्होंने अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित किया और नए समूहों का गठन किया। इनमें लगभग 70 सदस्य हैं।

एनईआरसीओआरएमपी ने उनके साथ-साथ अन्य एसएचजी सदस्यों के जीवन में भी बदलाव किया है। इससे उनके जीवन स्तर में व्यापक सुधार आया है।

योबिना लिंगदोह मार्शिलॉन्ग ने जाखोंग गांव के लोगों को आत्म निर्भरता के एक नए मतलब को समझने में सहायता करने के लिए भारत सरकार की एनईसी के एनईआरसीआरएमएस के प्रति आभार व्यक्त किया है।

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