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अमेरिकी शोधकर्ताओं को कोविड-डिमेंशिया में लिंक की पुष्टि के लिए मिले 16 लाख डॉलर

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अपडेटेड 28 अगस्त 2022, 4:02 PM IST
अमेरिकी शोधकर्ताओं को कोविड-डिमेंशिया में लिंक की पुष्टि के लिए मिले 16 लाख डॉलर
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अमेरिकी शोधकर्ताओं को कोविड-डिमेंशिया में लिंक की पुष्टि के लिए मिले 16 लाख डॉलर

न्यूयॉर्क, 28 अगस्त (बीएनटी न्यूज़)| दुनियाभर में चल रही कोविड-19 महामारी की चपेट में आए लोगों में मस्तिष्क विकार बढ़ने के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है, ऐसे में पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी को कोविड और डिमेंशिया के बीच की कड़ी को खोजने के लिए अमेरिका स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एंड स्ट्रोक से 16 लाख डॉलर का अनुदान दिया गया है। यह अनुदान इस बात पर शोध का समर्थन करेगा कि क्या कोविड-19 संज्ञानात्मक गिरावट के विकास में योगदान देता है जो डिमेंशिया (मनोभ्रंश) की ओर ले जाने वाली घटनाओं की श्रृंखला का हिस्सा हो सकता है।

पेन स्टेट कॉलेज ऑफ मेडिसिन में न्यूरोलॉजी, फार्माकोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, रेडियोलॉजी और काइन्सियोलॉजी के प्रतिष्ठित प्रोफेसर जुमेई हुआंग ने कहा, “हमारे पास यह अध्ययन करने का एक अनूठा अवसर है कि क्या कोविड संक्रमण न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों की प्रगति में योगदान देता है।”

हुआंग ने एक बयान में कहा, “पार्किं संस रोग और संबंधित विकार अक्सर अंत में मनोभ्रंश का कारण बनते हैं और हम इस बात की बेहतर समझ हासिल करने की उम्मीद करते हैं कि क्या कोविड-19 संक्रमण हमारे शोध प्रतिभागियों में न्यूरो-संज्ञानात्मक गिरावट की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।”

रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के महामारी विज्ञानियों का अनुमान है कि सभी कोविड मामलों में से सिर्फ एक तिहाई 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में हुए हैं।

इस समूह को न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।

कोविड रोगी अक्सर ‘ब्रेन फॉग’, गंध और स्वाद न लगना जैसे न्यूरोलॉजिकल लक्षणों की रिपोर्ट करते हैं। कुछ लक्षण निदान के बाद महीनों तक चलते हैं।

कुछ शोध यह भी बताते हैं कि इन रोगियों को उनके तीव्र संक्रमण के बाद मनोभ्रंश का निदान होने का अधिक खतरा होता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इन और अन्य रिपोर्टो ने वैज्ञानिक अटकलों को जन्म दिया है कि कोविड-19 संक्रमण समय से पहले संज्ञानात्मक गिरावट में योगदान दे सकता है।

हुआंग अपने अतीत और चल रहे अध्ययनों में प्रतिभागियों से अतिरिक्त जानकारी और जैविक नमूने एकत्र करने के लिए एक बहु-विषयक टीम का नेतृत्व करेंगे।

शोधार्थी 38 लाख डॉलर की परियोजना से संसाधनों का लाभ उठाएंगे। इसका उद्देश्य रक्त, त्वचा और मस्तिष्क रीढ़ सहित जैविक नमूनों में चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) स्कैन और अणुओं के माध्यम से पार्किं संस रोग और संबंधित विकारों के जैविक संकेतों (बायोमार्कर) की पहचान करना है।

जिस तरह गंध की कमी ने कुछ व्यक्तियों के लिए कोविड-19 संक्रमण का संकेत दिया है, उसी तरह कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि गंध की कमी भी न्यूरोडीजेनेरेटिव प्रक्रियाओं की शुरुआत का संकेत देती है जो पार्किं संस और अल्जाइमर दोनों रोगों को जन्म देती है।

यह किसी व्यक्ति के वायरस और पर्यावरण विषाक्त पदार्थो के लगातार संपर्क से आ सकता है जो घ्राण प्रणाली (नाक और नाक के मार्ग) के माध्यम से प्रवेश करते हैं।

हुआंग ने कहा, “हम अभी भी महामारी के दीर्घकालिक प्रभावों और बीमार होने वालों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में सीख रहे हैं।”

शोधकर्ता ने कहा, “इस शोध से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि कोविड-19 संक्रमण न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के विकास या प्रगति में योगदान देता है या नहीं।”

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