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गरीब नहीं होगें कभी अमीर

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अपडेटेड 10 फ़रवरी 2020, 12:08 PM IST
गरीब नहीं होगें कभी अमीर
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नेताओं को चाहिए गरीबों की जमात

गरीब ही तो हैं नेताओं के वोट बैंक

गरीबी मानव जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। इस समाज में गरीब को सभी दुदकारते हैं यू तो यह सरकार गरीबों के उत्थान की बहुत बात करती है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। चैराहों पर गरीब रिक्शा वाले को हवलदार जोर से उसकी रिक्शा पर डंडा मारकर गाली देकर हटाता है क्या कभी किसी कार वाले की कार पर हवलदार द्वारा गाली देते हुये हटाते हुये देखा गया है। वास्तव में भारत में ही नहीं दुनियाँ के किसी मुल्क में भी गरीब का जीवन, जीवन नहीं है। भारत सरकार तथा इस देश के सभी राजनैतिक दल के नेता गरीबों के हमदर्द होने का दावा करते हैं लेकिन वास्तव में वे है नहीं। गरीबों के साथ होने का दावा करना उनकी मजबूरी है कागजों पर सरकार की आर्थिक उपलब्धियाँ गरीबों के लिये बहुत है लेकिन हकीकत में गरीब आदमी की हालत बहुत दयनीय है। गरीबी पर वोट की राजनीति सभी दल कर रहे हैं। अगर वास्तव में ये सरकार गरीबों की हमदर्द होती तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि आजादी के 60 साल बीत जाने के बाद भी गरीबों को दो जुन की रोटी के लिए तरसना नहीं पड़ता। उसको चिकित्सा के लिए दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़ती गरीबों के साथ सरकारी अस्पतालों में जो दयनीय व्यवहार किया जाता है। उसको देखकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के रोंगटे खड़े जायगें।
बीमार व्यक्ति सरकारी अस्पताओं के बरामदे में पड़े रहते है डाक्टरों का घंटो पता नहीं रहता। घटिया किस्म की दवाईयाँ दी जाती है। जंग लगे डाॅक्टरी औजारों उनकी चिकित्सा की जाती है। सरकारी अस्पतालों में गन्दगी का जो आलम है उसकी बात करना ही बेकार है। इन सरकारी अस्पतालों में गरीबों के लिए जो दवाईयाँ आती है वे ब्लैक में बेच दी जाती है।
गरीब नालों के किनारे गन्दी झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर है। पीने के लिए गरीबों के लिए यह सरकार स्वच्छ पानी का प्रबन्ध नहीं कर पायी जिससे पानी नीत बीमारियाँ अक्सर महामारी का रूप ले लेती है। जब हम आजाद हुये तो इस देश के कर्णधरों ने गरीबों को भर पेट भोजन मिले इसलिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा खाद्यान मुहिया करने हेतु हर इलाकों में राशन की दुकाने खोली लेकिन ये सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी आज भ्रष्ट अपफसरों के आय का साध्न बन गई है। गरीबों के लिए राशन की दुकान पर भेजा जाने वाला खाद्यान ब्लैक में बाजारों में बेच दिया जाता है। और गरीब राशन की दुकान की दुकान का चक्कर काटता रहता है। इस महंगाई के जमाने में गरीबों को दो जुन की रोटी भी मोहसर नहीं है। छोटे-छोटे उद्योग धन्धे एवं दुकानदार जैसे पफल, सब्जी किराने का समान बेचना आदि वे सब सरकार की मिली भगत से मल्टीनेशनल कम्पनियों के हत्थे चढ़ गये है। क्या यह सरकार बता सकती है कि इस देश के गरीब आदमी की रोजी रोटी का साधन क्या है? वे कौन से कार्य है जिससे गरीब आदमी अपनी रोजी रोटी कमा सकता है। इस देश में कुटीर उद्योग धन्धें पर जो कुठाराधत इस देश के सांठ गांठ कर राजनीतिज्ञों ने किया है। उसकी मिसाल दुनिया में देखने को नहीं मिलेगी। हम समय सीमा के अंदर दिल्ली में ओलम्पिक गेम्स कराने की बात करते है दिल्ली को पेरिस बनाना चाहते हैं क्या वह गरीबों को खत्म करके क्या उनकी रोजी रोटी छीनकर के।
आज गरीबों की गरीबी का यह आलम है कि उनके छोटे-छोटे बच्चे गन्दगी में से खाने की चीज आदि बिनते नजर आते हैं। गरीबों के बच्चे की शिक्षा बहुत दूर की बात है सरकारी स्कूलों का जो आलम है। वहाँ टीचर गपशप करते नजर आते है। शिक्षा के लिए गरीबों के वास्ते जो धन राशी सरकार देती है। उसका अध्कितर भाग भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। सरकार समय पर आरक्षण आदि मुद्दे उछालती रहती है जिससे आम आदमी का ध्यान गरीबों के साथ हो रही नाइन्साफी की तरफ से हट जायें।
हमारा संविधन कहता है इस मुल्क में गरीब अमीर सभी बराबर है सभी को समान अध्किार प्राप्त है। क्या वास्तव में ऐसा है इस देश की न्याय प्रक्रिया इतनी जटिल व खर्चीली है कि केवल अधिकतर अमीरों को ही न्याय मिल पाता है पिछले दो दशकों में इस सरकार ने गरीबों से जो छीना है उससे तो ऐसा लगता है कि सरकार गरीबी का नहीं इस देश के गरीबों को ही खत्म करना चाहती है। सरकार अरबों रूपया खर्च करके दिल्ली, मुम्बई आदि शहरों को पेरिस बनाना चाहती है। लेकिन आम आदमी को जीवन की बुनियादी सुविधा देने के लिये उनके पास बजट नहीं है।
आज गरीब को वोट के चश्में से देखा जाता है। एक तरफ तो हम यह दावा करते हैं कि आम जनता को अच्छी खुराक मुहिया कराई जायेगी दूसरी ओर गलत नीतियों के कारण उसकी खुराक पर अतिक्रमण हो रहा है विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ाने के लिये फल, सब्जियों का निर्यात किया जा रहा है। फल एवं अच्छी किस्म की सब्जियां आम आदमी के पहुँच से बाहर है। यह कैसा आजाद देश जिसमें अवाम के स्वास्थ को नजर अन्दाज कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा रही है।
एक अध्ययन में कहा गया है फल एवं सब्जियों की उपलब्धता का एक बड़ा कारण यूरोपीय एवं अमेरिका के बाजार में भारतीय फल एवं सब्जियों की मांग है। विदेशी बाजारों में भारतीय फल एवं सब्जियाँ स्थानीय उत्पादकों से अपेक्षाकृत सस्ते होते है। भारतीय किसानों को भी, इससे अच्छे दाम मिलते है और सरकार भी विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए इसके निर्यात को बढ़ावा देती है इसी कारण बाजार में अच्छे फल एवं सब्जियाँ बाजार से गायब होती चली जा रही है इनकी कमी हो जाने से फल एवं सब्जियों की कीमतें बढ़ने लगी है सरकार यह भूल गयी की यदि देश के आवाम को फल एवं सब्जियाँ नहीं मिलेगी तो उसके स्वास्थ्य पर क्या असर होगा वह किस कीमत पर देश से फल एवं सब्जियों का निर्यात कर रही है।

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