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कमजोर वैश्विक वृद्धि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत: आरबीआई

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अपडेटेड 22 मई 2025, 10:35 PM IST
कमजोर वैश्विक वृद्धि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत: आरबीआई
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बीएनटी न्यूज़

नई दिल्ली। वैश्विक विकास लगातार व्यापारिक तनाव, बढ़ी हुई नीतिगत अनिश्चितता और कमजोर उपभोक्ता भावना के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसके बावजूद, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि उच्च व्यापार और टैरिफ-संबंधी चिंताओं के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है।

आरबीआई बुलेटिन के अनुसार, “इन चुनौतियों के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था ने मजबूती प्रदर्शित की है। अप्रैल में औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों के हाई-फ्रिक्वेंसी इंडीकेटर्स ने अपनी गति बनाए रखी।”

रबी की बंपर फसल और गर्मियों की फसलों के लिए अधिक रकबा, साथ ही 2025 के लिए अनुकूल दक्षिण-पश्चिम मानसून पूर्वानुमान, कृषि क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत देते हैं।

बुलेटिन में कहा गया है कि जुलाई 2019 के बाद से लगातार छठे महीने हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति अपने निम्नतम स्तर पर आ गई, जो मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में निरंतर कमी के कारण हुई।

अप्रैल में डोमेस्टिक फाइनेंशियल मार्केट सेंटीमेंट में उतार-चढ़ाव रहा, लेकिन मई के तीसरे सप्ताह से इसमें सुधार देखने को मिला।

इस साल अप्रैल में कृषि श्रमिकों (सीपीआई-एएल) और ग्रामीण श्रमिकों (सीपीआई-आरएल) के लिए अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर में गिरावट आई और यह क्रमशः 3.48 प्रतिशत और 3.53 प्रतिशत हो गई, जो कि अप्रैल 2024 में क्रमशः 7.03 प्रतिशत और 6.96 प्रतिशत थी, जिससे गरीब परिवारों को राहत मिली।

इसके अलावा, घरेलू इक्विटी बाजार, जो अमेरिका द्वारा टैरिफ घोषणाओं के जवाब में शुरू में गिर गया था, अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में कुछ बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर की कंपनियों के चौथी तिमाही के लिए मजबूत कॉर्पोरेट आय रिपोर्ट के मद्देनजर फिर से गति पकड़ने लगा।

इसके अलावा, 2014-2024 के दौरान नोट्स इन सर्कुलेशन (मूल्य के संदर्भ में एनआईसी) की वृद्धि दर पिछले दो दशकों की तुलना में काफी कम थी।

1994-2004 के दौरान एनआईसी में वृद्धि जीडीपी की तुलना में काफी अधिक थी; हालांकि, अगले दो दशकों में यह अंतर काफी कम हो गया है।

बुलेटिन में कहा गया है कि नाइटलाइट्स-करों के बीच और नाइटलाइट्स-जीडीपी के बीच भी सकारात्मक संबंध बने हुए हैं। इसका मतलब है कि औपचारिक आर्थिक गतिविधि बैंक नोटों का इस्तेमाल कम कर रही है।

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