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राजस्व जुटाने, व्यय गुणवत्ता और ऋण सूचकांक में बंगाल का खराब प्रदर्शन : नीति आयोग

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अपडेटेड 25 जनवरी 2025, 8:51 PM IST
राजस्व जुटाने, व्यय गुणवत्ता और ऋण सूचकांक में बंगाल का खराब प्रदर्शन : नीति आयोग
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बीएनटी न्यूज़

कोलकाता। नीति आयोग द्वारा जारी ‘राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक: 2025’ ने राजस्व जुटाने, व्यय गुणवत्ता और ऋण सूचकांक में पश्चिम बंगाल के खराब प्रदर्शन का खुलासा किया है।

16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया द्वारा नई दिल्ली में लॉन्च एफएचआई 2025, 18 प्रमुख राज्यों के राजकोषीय स्थिति का व्यापक मूल्यांकन करता है।

समीक्षा किए गए 18 राज्यों में से, पश्चिम बंगाल 16वें स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल के लिए चिंता का पहला कारण राज्य सरकार द्वारा व्यय की गुणवत्ता है।

रिपोर्ट के अनुसार, कुल व्यय के अनुपात के रूप में पश्चिम बंगाल का बुनियादी ढांचे पर खर्च 2018-19 में 5.3 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3 प्रतिशत हो गया है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है।

कुल व्यय के अनुपात के रूप में पूंजीगत व्यय की तस्वीर दयनीय है, जो 2018-19 में 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 8.3 प्रतिशत हो गई है और फिर से राष्ट्रीय औसत से कम है।

हालांकि समीक्षाधीन वित्त वर्ष के दौरान कुल व्यय के अनुपात के रूप में सामाजिक व्यय के तहत प्रतिशत पश्चिम बंगाल में तुलनात्मक रूप से अधिक 28.2 प्रतिशत रहा था, लेकिन यह आंकड़ा फिर से राष्ट्रीय औसत से कम है।

‘राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक: 2025’ पर रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पश्चिम बंगाल का कर राजस्व राज्य सरकार के लिए आय का प्रमुख स्रोत था, इसका मुख्य कारण एसजीएसटी के तहत संग्रह था और इसलिए पिछले पांच वर्षों में यह 6.6 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ा, जबकि राज्य के गैर-कर राजस्व में पिछले पांच वर्षों में गिरावट देखी गई है।

साथ ही, रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्व प्राप्तियों के अनुपात के रूप में अनुदान सहायता पर पश्चिम बंगाल की निर्भरता 2018-19 में 17.6 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 19.6 प्रतिशत हो गई है।

इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि हालांकि पश्चिम बंगाल का कर्ज सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में पिछले वाम मोर्चा शासन के अंतिम वित्तीय वर्ष 2010-11 में 40.7 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 35.7 प्रतिशत हो गया है, लेकिन इस मामले में राज्य सरकार के लिए चिंता का असली कारण उपार्जित कर्ज पर ब्याज भुगतान है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “चालू वर्ष में ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों का 20.47 प्रतिशत है, जिससे राज्य की विकास के लिए धन आवंटित करने की क्षमता बाधित होता है।”

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