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भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को मिल सकता है रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों का लाभ

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अपडेटेड 13 मार्च 2022, 3:25 PM IST
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को मिल सकता है रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों का लाभ
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भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को मिल सकता है रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों का लाभ

चेन्नई, 13 मार्च (बीएनटी न्यूज़)| यूक्रेन पर हमले के विरोध में रूस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा लगाये गये आर्थिक प्रतिबंध भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र पर लागत का बोझ बढ़ाने के बजाय उसके लिये आर्थिक अवसर पैदा कर सकते हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि इन नये अवसरों को भुनाने के लिये भारत को अपनी उपग्रह प्रक्षेपण क्षमताओं में तेजी लानी चाहिये और एयरोस्पेस क्षेत्र के लिये उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना की घोषणा करनी चाहिये।

डैवन एडवाइजरी एंड इंटेलीजेंस के संस्थापक चैतन्य गिरी ने आईएएनएस को कहा कि वे सभी देश, जो उपग्रह प्रक्षेपण के लिये रूसी रॉकेट की कमी महसूस कर रहे हैं, वे अन्य विकल्पों पर विचार कर सकते हैं। उपग्रह प्रक्षेपण अनुबंधों का बड़ा हिस्सा अमेरिका और यूरोप द्वारा लिया जायेगा, लेकिन ऐसे कई अन्य भी होंगे, जो उनके इतर विकल्पों पर विचार कर सकते हैं। भारत की तटस्थता ने एक नया बाजार बनाया है।

उन्होंने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को अपनी उपग्रह प्रक्षेपण क्षमता में वृद्धि करनी चाहिये क्योंकि अब प्रति वर्ष दो प्रक्षेपण करने के दिन लद गये हैं।

निजी रॉकेट कंपनियां भी अपने छोटे रॉकेट विकसित करने की प्रक्रिया में हैं, इसरो को उन्हें सक्रिय रूप से सहयोग देना चाहिये ताकि वे अपने लॉन्च वाहनों को भी तेजी पूरा कर सकें।

वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र के 360 अरब डॉलर के बाजार में भारत की हिस्सेदारी नगण्य है।

उद्योग जगत के जानकार इस बात पर एकमत हैं कि रूस पर लगे प्रतिबंधों का भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।

अंतरिक्ष एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और इस बात की संभावना है कि अमेरिका भारत से रूस के पक्ष या विपक्ष में पक्ष लेने के लिए कह सकता है।

तो, क्या होगा यदि अमेरिका और पश्चिमी देश रूस के साथ संबंधों के कारण भारत को अपनी प्रतिबंध सूची में जोड़ दें?

उपग्रहों के मामले में, मूल्य के हिसाब से लगभग 60 प्रतिशत घटक यूरोप से आयात किये जाते हैं।

सिसिर रडार प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक और मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी (सीटीओ) तपन मिश्रा ने आईएएनएस को कहा, भारत मेमोरी चिप्स, सेंसर, ऑनबोर्ड प्रोसेसर, रिले और अन्य वस्तुओं का आयात करता है। हमें जापान, सिंगापुर से घटक मिलते हैं। भाषा की बाधा के कारण रूस से घटकों की खरीद कम है।

मिश्रा पहले इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में निदेशक थे। सिसिर राडार की योजना 0.5 मीटर रिजॉल्यूशन के साथ एक्स-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार बनाने की है।

इसरो के एक अन्य सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, एक नीति के तहत इसरो के पास 15 उपग्रहों के लिये घटकों का भंडार होता है। घटकों के लिये दोबारा ऑर्डर तब दिया जाता है, जब घटक का भंडार स्तर 10 उपग्रहों से नीचे होता है।

अधिकारी ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान इसरो ने अधिक उपग्रह नहीं बनाये हैं और इसलिये इसके लॉन्च रिकॉर्ड और योजनाओं को देखते हुये उसके पास भंडार का स्तर कुछ और वर्षों के लिये पर्याप्त होगा।

हालांकि, एडहेसिव और सोल्डरिंग पेस्ट जैसी चीजें, जो जल्दी खराब हो जाती हैं, इनका आयात किया जाता रहता है। इसके लिये उचित आपूर्ति श्रृंखला लिंक द्वारा योजना बनानी होगी।

गिरि ने कहा, भारत को कड़ी मेहनत करनी होगी क्योंकि हम कुछ दुर्लभ खनिज और धातुओं का आयात करते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध जब शांत हो जायेगा फिर भी प्रतिबंधों के अप्रत्यक्ष प्रभावों से निपटने में समय लग सकता है।

रॉकेट के मामले में, भारत ने अपने रॉकेट जैसे पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) और आगामी स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) के निर्माण में लगने वाली अधिकांश वस्तुओं को देश में बनाना शुरू कर दिया है।

स्काईरूट एयरोस्पेस के सह-संस्थापक और सीईओ पवन कुमार चंदना ने आईएएनएस को कहा, इसरो के रॉकेट बनाने के लिये इस्तेमाल होने वाली अधिकांश रूस और यूरोपीय सामग्री अब स्वदेश में निर्मित होती है। इसी कारण भारत पर प्रतिबंधों का प्रभाव न्यूनतम होगा। स्काईरूट के लिये इसका प्रभाव शून्य है क्योंकि आपूर्ति श्रृंखला ज्यादातर भारत के भीतर है। यह दशकों से इसरो के स्वदेशीकरण प्रयासों का परिणाम है।

स्काईरूट एयरोस्पेस छोटे रॉकेट बनाती है जैसे विक्रम 1, 2 और 3 और इनकी अलग-अलग पेलोड क्षमता है।

एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि लेकिन बात यह है कि भारतीय रॉकेटों के इंजन के डिजाइन तीन दशक पुराने हैं और बड़े तथा कई इंजन बनाने की कोई योजना अभी नहीं है।

इसरो के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इसरो ने सेमी-क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी के लिये यूक्रेन के साथ समझौता किया था लेकिन यह बहुत आगे नहीं बढ़ पाया है।

अधिकारी ने कहा, यह देखना होगा कि युद्ध प्रभावित यूक्रेन का भारत की सेमी-क्रायोजेनिक इंजन परियोजना पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

इसका जवाब देते हुये इसरो के एक पूर्व अध्यक्ष ने आईएएनएस को कहा, सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के विकास के लिये यूक्रेन से जो कुछ भी प्राप्त करने की आवश्यकता है, वह प्राप्त कर लिया गया है। इंजन का परीक्षण किया जाना है।

भारत का मानव अंतरिक्ष मिशन अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, अंतरिक्ष सूट की आपूर्ति और अन्य कई मामले में रूस के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत के बदलते रुख के कारण मिशन प्रभावित नहीं हो सकते हैं।

गिरी ने कहा, यह नया भारत है, जो पहले की तुलना में एक ऊंचे पायदान पर है। इसके साथ जबरदस्ती नही ंकी जा सकती है। हमें आपूर्ति श्रृंखला का ध्यान रखना होगा और रणनीतिक क्षेत्रों के लिये आपूर्ति बाधित न हो, इसके लिये ऑक्टोपस बनना होगा यानी कई स्रोतों की तलाश करनी होगी।

गिरि ने कहा कि अमेरिका भारत का विरोध नहीं कर सकता है और नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) मिशन योजना के अनुसार चल सकता है।

एक अधिकारी ने कहा , अंतरिक्ष घटकों के निर्यात पर पश्चिमी प्रतिबंध भारत को नवाचार करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करेगा। कई लॉबी हैं जो आयात को बढ़ावा देती हैं और स्थानीय विकास को रोकती हैं। यदि प्रतिबंध होता है, तो स्थानीय विकास करना होगा जो लॉबी नहीं चाहती है।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये अवसर के संबंध में उन्होंने कहा कि रूस भारत से कुछ घटकों को प्राप्त करना पसंद कर सकता है और इसलिये वह एक व्यापारिक भागीदार हो सकता है।

उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि इसरो को अपने एसएसएलवी कार्यक्रम में तेजी लानी चाहिये। छोटे उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में वृद्धि हो रही है क्योंकि हाल के दिनों में प्रक्षेपित उपग्रहों में से 90 प्रतिशत प्रक्षेपण छोटे उपग्रहों का हुआ है।

इसी तरह, निजी रॉकेट निमार्ताओं को भी कमर कस लेनी चाहिये और अपने लॉन्च वाहनों को तेजी से पूरा करना चाहिये।

गिरी ने कहा कि सरकार को भारतीय कंपनियों से कहना चाहिये कि वे विदेशी कंपनियों के साथ सैटेलाइट सोर्सिग समझौता करें और विदेशी कंपनियों को देश में ही निर्माण के लिये कहें।

उन्होंने कहा कि इसरो वनवेब सैटेलाइट को जीएसएलवी रॉकेट से प्रक्षेपित करने का ऑफर दे सकता है। वनवेब भारत के भारती ग्लोबल और ब्रिटिश सरकार का संयुक्त स्वामित्व वाला है। हाल ही में इसके बोर्ड ने रूस के बाइकोनूर रॉकेट पोर्ट से सैटेलाइट लांच को रोकने के पक्ष में वोट दिया था।

गिरी ने कहा कि भारत सरकार स्पेस क्षेत्र में स्टाटअप इकोसिस्टम तैयार करने पर ध्यान दे रही है। जब यह सिस्टम बन जायेगा तक शायद सरकार बड़ी कंपनियों को स्थानीय स्तर पर जरूरतें पूरी करने के लिये कह सकती है।

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