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स्टार्टअप के इको-सिस्टम को नियंत्रित करने वाले मानकों की कमी

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अपडेटेड 07 मार्च 2022, 10:28 AM IST
स्टार्टअप के इको-सिस्टम को नियंत्रित करने वाले मानकों की कमी
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स्टार्टअप के इको-सिस्टम को नियंत्रित करने वाले मानकों की कमी

एक स्टार्टअप आमतौर पर एक या उससे अधिक उद्यमियों द्वारा स्थापित एक छोटी स्व-वित्त पोषित कंपनी होती है। स्टार्टअप के प्रवत्र्तकों की राय में जिस सेवा या उत्पाद की मांग होती है, उसे बढ़ावा देने के लिये वे इसकी स्थापना करते हैं।

स्टार्टअप्स के लिये फंड के स्रोतों में दोस्तों और परिवार के अलावा वेंचर कैपिटलिस्ट, क्राउड फंडिंग आदि शामिल हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार, अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इको-सिस्टम बन गया है, जहां कुल मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 61,400 से अधिक है। भारत में 14 जनवरी 2022 तक स्टार्टअप्स की संख्या वार्षिक 12-15 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है।

भारत में 83 यूनिकॉर्न हैं ( 7,500 करोड़ रुपये या उससे अधिक के मूल्यांकन के साथ निजी प्रौद्योगिकी स्टार्टअप), जिनका कुल मूल्यांकन 277.77 अरब डॉलर (2,10,92,32,60,65,000 रुपये) है और जो मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 50 प्रतिशत से भी अधिक है।

हालांकि, भारत में सूचीबद्ध कंपनियों के लिये परिचालन के मानक कड़े हैं और उन्हें और अधिक सख्त किया जाना जारी है लेकिन स्टार्टअप के मामले में उन्हें नियंत्रित करने वाले मानदंडों का स्पष्ट अभाव है।

यह केवल तभी होता है जब स्टार्टअप अपने लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के बाद, संस्थागत निवेशक शेयर बाजार में लिस्टिंग के माध्यम से बाहर निकलना चाहते हैं, तब वह स्टार्टअप मानकों के दायरे में आता है और अब एक सूचीबद्ध इकाइ के रूप में प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) सहित विभिन्न नियामक निकायों द्वारा विनियमन के अधीन हो जाता है।

भारत में स्टार्टअप इको-सिस्टम के लिए नियामक ढांचा एक जटिल प्रक्रिया है। हालाँकि, भारतपे की घटना ने यह बताया है कि स्टार्टअप के लिये एक मजबूत संचालन पद्धति कितनी आवश्यकहै। भारतपे को वर्ष 2018 में अश्नीर ग्रोवर और शाश्वत नाकरानी द्वारा सह-स्थापित किया गया था।

महज साढ़े तीन साल में द्रुत गति से, यह एक प्रसिद्ध फिनटेक कंपनी बन गयी। हालांकि, जनवरी 2022 में, बाहरी जांच के यह खुलासा हुआ कि अश्नीर ग्रोवर और उनकी पत्नी माधुरी जैन हेराफेरी और वित्तीय अनियमितताओं में शामिल थे, जिसके परिणामस्वरूप भारतपे के बोर्ड ने उनकी सेवाओं को समाप्त करने का निर्णय लिया।

भारतपे का अनुभव स्टार्टअप इको सिस्टम में उचित कॉपोर्रेट प्रशासन की आवश्यकता को दोहराता है, जो जिम्मेदार प्रबंधन और अन्य कर्मियों को रखेगा और ऐसे संगठनों के नैतिक मूल्यों, आचरण और कार्यों को सुनिश्चित करेगा।

हालाँकि, यह आवश्यक है कि अत्यधिक नियंत्रण और स्टार्टअप जो स्व-नियमन चाहते हैं, उनके बीच एक संतुलन बनाया जाये।

स्टार्टअप इको-सिस्टम में उचित विनियमन और कॉपोर्रेट प्रशासन न केवल विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि पारदर्शिता भी सुनिश्चित करेगा और अंतत: प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के लिये एक अच्छी कंपनी की लिस्टिंग को बढ़ावा देगा।

स्टार्टअप इको-सिस्टम में एक कुशल और प्रभावी शासन के ढांचे को अपनाने और उसका पालन करने के लिये कानूनी आवश्यकताओं में स्पष्टता की आवश्यकता होती है। इसके अलावा प्राधिकरण या विभिन्न कार्यों के नियमन के लिये जिम्मेदार प्राधिकरणों में स्पष्टता, सभी हितधारकों के लिये वित्तीय और गैर-वित्तीय जानकारी के उचित प्रकटीकरण में पारदर्शिता, स्वतंत्र लेखा परीक्षकों द्वारा लेखा परीक्षा और इसी तरह के कई उपाय एक प्रभावी कॉरपोरेट शासन की नींव हैं।

स्टार्टअप्स के लिये कॉरपोरेट गवर्नेंस आवश्यकताओं की लगातार समीक्षा की जानी चाहिये और समय-समय पर आने वाली आवश्यकताओं के अनुसार उनमें बदलाव किया जाना चाहिये।

केवल उचित चेक एंड बैलेंस के साथ ही कुप्रबंधन, कंपनी के संसाधनों के दुरुपयोग और हितों के टकराव पर अंकुश लगाया जा सकता है, जिससे स्टार्टअप्स को दीर्घावधि में टिकाऊ बनाया जा सकता है।

स्टार्टअप की सार्वजनिक छवि को बेहतर करने और उन्हें निवेशकों के लिये आकर्षक बनाने में कॉपोर्रेट मानदंड महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विकास के प्रत्येक चरण में स्टार्टअप के हितधारकों और अनुपालनाओं की अलग-अलग आवश्यकतायें होती हैं और इसलिये उपयुक्त कॉपोर्रेट मानदंडों जरूरी हैं।

कॉपोर्रेट संचालन के मानदंड स्थापना के चरण में, कम कठोर और अधिक लचीले हो सकते हैं लेकिन जैसे-जैसे स्टार्टअप का आकार बढ़ता है और वह एक प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के लिये तैयार होता है, तो निवेश करने वाली जनता के हितों की रक्षा के लिये कॉपोर्रेट प्रशासन को और अधिक कठोर बनाया जाना चाहिये।

स्टार्टअप्स निश्चित रूप से आवश्यक हैं, खासकर वैसे स्टार्टअप जिनमें तेजी से वृद्धि करने की क्षमता है और जिसके कारण वे प्रतिभूति बाजार में व्यवधान पैदा कर सकते हैं, उनके लिये मजबूत कॉरपोरेट गवर्नेस जरूरी है। भारतपे जैसी स्थिति से बचने के लिये उन्हें सर्वोत्तम पद्धति को अपनाने की आवश्यकता है।

स्टार्टअप इको-सिस्टम में अच्छे और उपयुक्त कॉरपोरेट गवर्नेंस का कार्यान्वयन, हालांकि एक आसान काम नहीं है लेकिन यह आवश्यक और लंबे समय में अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा पिछले अनुभवों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये इसे विकसित करने की आवश्यकता है।

सेबी ने भी एक अच्छे कॉरपोरेट प्रशासन ढांचे की आवश्यकता और स्टार्टअप इको-सिस्टम में इसके कार्यान्वयन को मान्यता दी है।

सेबी ने समय-समय पर स्टार्टअप्स के कॉरपोरेट गवर्नेंस के मुद्दे पर विचार किया है और उद्योग प्रमुखों वाली कई समितियों की स्थापना की है। हालांकि, सेबी द्वारा विनियमन केवल स्टार्टअप्स की लिस्टिंग के बाद या वैकल्पिक निवेश फंड (एआईएफ) शामिल होने की स्थिति में ही होता है।

साथ ही सेबी ने बड़े निवेशकों को आकर्षित करने में स्टार्टअप्स की मदद करने के लिये लिस्टिंग के मानदंडों में ढील दी है।

सेबी (एआईएफ) (दूसरा संशोधन) विनियम, 2021 ने स्टार्टअप को एक निजी लिमिटेड कंपनी या एक सीमित दायित्व भागीदारी के रूप में परिभाषित करने की मांग की है, जो डीपीआईआईटी, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 19 फरवरी 2019 को जारी अधिसूचना में निर्धारित स्टार्टअप के मानदंडों या केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी अन्य ऐसी नीतियों के मानकों को पूरा करता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि कानूनी और लेखा मानदंड उन स्टार्टअप के लिये सर्वोपरि नहीं हो सकते हैं जो अपर्याप्त संसाधनों या वित्त से ग्रस्त हैं, लेकिन जैसे-जैसे स्टार्टअप विकसित होता है और आकार में बड़ा होता है और उसके पास पर्याप्त राजस्व होता है तो कुशल कॉरपोरेट गवर्नेस ही मनी लॉन्ड्रिंग, रिश्वतखोरी, खातों में हेराफेरी, धन के दुरुपयोग, अनुचित श्रम प्रथाओं आदि को रोकता है।

कॉरपोरेट गवर्नेस को नौकरशाही या लालफीताशाही के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिये, यह एक स्टार्टअप के संस्थापक या संस्थापकों द्वारा परिकल्पित अभियान को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक होता है। यह एक स्वस्थ संस्कृति के साथ निवेश करने वाली जनता के लिये स्टार्टअप की छवि को बेहतर करने और उसे आकर्षक बनाने के लिये पारदर्शिता और प्रभावी कॉरपोरेट संरचना पर ध्यान केंद्रित करता है।

इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये, नियामकों और प्राधिकरणों की भूमिकाओं पर फिर से विचार करना आवश्यक है ताकि स्टार्टअप को उनके अधिकार क्षेत्र में लाया जा सके, अच्छे और कुशल कॉरपोरेट प्रशासन पद्धतियों के अनुपालन को बढ़ावा दिया जा सके ।

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