बीएनटी न्यूज, नई दिल्ली। पिछले दिनों सरकार ने तमाम चीजों पर जीएसटी की दर में कमी करके जनता को राहत दी है, लेकिन अभी भीसैनिटरी नैपकिन पर राहत नहीं मिली है। इससे देश की आधी आबादी को राहत अब भी नहीं मिल पाई है। गौरतलब है कि जीएसटी लागू होने से पहले जब सैनिटरी नैपकिन को जीएसटी के 12 फीसदी स्लैब के दायरे में रखा गया था, तब इसका भारी विरोध हुआ था। यही नहीं, तमाम महिलाओं ने बाकायदा लहू का लगान कैंपेन चलाकर सरकार से सैनिटरी नैपकिन पर जीएसटी हटाने की डिमांड की थी। इस कैंपेन को बाकायदा कई बॉलिवुड ऐक्ट्रेस ने सपॉर्ट किया था, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट में बाकायदा सैनिटरी नैपकिन पर 12 फीसदी का जीएसटी लगाने के खिलाफ एक याचिका भी लगाई गई है। इस पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जब काजल, बिंदी और सिंदूर को टैक्स फ्री किया जा सकता है, तो फिर सैनिटरी नैपकिन पर 12 फीसदी का जीएसटी लगाने का क्या तुक है?
चन्द महिलाओं को खुश करने के लिये सेनेटरी नैपकिन पर से टेक्स हटाया जाना उचित नहीं है क्योंकि टेक्स खत्म किये जाने के बावज़ूद सेनेटरी नैपकिन अस्सी प्रतिशत महिलाओं की पहुंच से बाहर ही…
इसके जवाब में सरकार ने कोर्ट में कहा कि सैनिटरी नैपकिन के लिए रॉ मटीरियल आयात किया जाता है। ऐसे में सरकार के लिए 12 फीसदी जीएसटी हटाना संभव नहीं है। वहीं जीएसटी से पहले सैनिटरी नैपकिन पर 13.5 फीसदी टैक्स था, जो कि अब कम हो गया है। इस मामले में अगली सुनवाई अगले महीने होगी।
नाखुश हैं महिलाएं
आम महिलाएं इस फैसले से खुश नहीं हैं। इनका कहना है कि सिंदूर बिंदी के बिना जिंदगी मुश्किल नहीं है, लेकिन सैनिटरी नैपकिन हर महिला की आवश्यकता है। इस पर जीएसटी हटाना जरूरी है, वह भी एक ऐसे देश में जहां पीरियड्स के दौरान महिलाएं रक्त को रोकने के लिए राख, मिट्टी और पत्थर का सहारा लेती है। वहीं महिलाओं का यह भी कहना है कि सरकार को अरुणाचलम मुरुगनाथम की तर्ज पर सस्ते सैनिटरी नैपकिन बनाने की कोई तकनीक निकालनी चाहिए। मुरुगनाथम ने एक ऐसी मशीन का निर्माण किया था, जो कम लागत वाले सैनिटरी नैपकिन बना सकती थी।