बीएनटी, नई दिल्ली। केवल हाथ की मुद्राएं बदलने से आपकी सेहत में गजब का सुधार हो सकता है। हाथ की अलग-अलग मुद्राएं आपके शरीर की शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक शक्तियों को प्रभावित करती है। हिंदू और बौद्ध धर्म में ये मुद्राएं काफी प्रचलित हैं। आज हम कुबेर और श्वसनी मुद्रा पर बात करेंगे।
कुबेर मुद्रा
ऐसे करें : मध्यमा, तर्जनी उंगली और अंगूठे के शीर्ष को मिलाएं। अनामिका और कनिष्ठा को मोडक़र हथेली से लगा लें।
कितनी देर : आधा-आधा घंटा 2 बार।
श्वसनी मुद्रा
ऐसे करें : कनिष्ठा और अनामिका उंगलियों के शीर्ष को अंगूठे की जड़ से लगाएं। मध्यमा उंगली को अंगूठे के शीर्ष से मिलाएं। तर्जनी को बिल्कुल सीधी रखें। कितनी देर : 5-5 मिनट पांच बार।
तनाव से राहत :
तनाव की समस्या अब आम है। यह आत्मविश्वास को कम करता है। किसी भी प्रकार के तनाव अथवा आत्मविश्वास की कमी पृथ्वी और जल तत्वों की अधिकता तथा आकाश, अग्नि और वायु तत्वों के असंतुलन का परिणाम है। कुबेर मुद्रा इन तत्वों को संतुलित करती है और व्यक्ति को तनावमुक्त कर उसमें सकारात्मक सोच भरती है। इस मुद्रा के प्रयोग से साइनस में जमा श्लेष्मा दूर होती है और नाक-कान बंद रहने की समस्या समाप्त हो जाती है। अगर बार-बार गहरी सांस के साथ इसे किया जाए तो साइनस संक्रमण के कारण होने वाला सिरदर्द और सिर का भारीपन समाप्त हो जाता है। पृथ्वी और जल तत्व की अधिकता को ही कफ का कारण माना गया है, ये दोनों तत्व कुबेर मुद्रा से कम हो जाते हैं, जिससे कफ की समस्या दूर होती है।
श्वास की समस्या से भी निजात :
श्वास से जुड़ा कोई भी रोग, जैसे- दमा, सांस लेने में परेशानी आदि सांस की नली में श्लेष्मा के जमने से पैदा होता है। इससे पर्याप्त मात्रा में साफ हवा फेफड़े तक नहीं पहुंच पाती और पीड़ित व्यक्ति हवा के ठीक से अंदर जाने से पहले ही सांस छोड़ देता है। सांस संबंधी इन रोगों में श्वसनी मुद्रा बहुत कारगर है। यह वरुण मुद्रा, सूर्य मुद्रा और आकाश मुद्रा का समन्वय है। इससे श्वास नली में जमा श्लेष्मा बाहर निकल जाता है और सूजन में कमी आती है। इसके नियमित अभ्यास से सांस छोड़ते समय अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता और धीरे-धीरे सांस के रोग पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। श्वास के रोगियों को बाईं करवट ही लेटना चाहिए और पानी का सेवन योगाचार्य की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।