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दिल्ली के अस्पताल में बायोफीडबैक थेरेपी से पुरानी कब्ज का हुआ सफल उपचार

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अपडेटेड 25 अप्रैल 2022, 4:03 PM IST
दिल्ली के अस्पताल में बायोफीडबैक थेरेपी से पुरानी कब्ज का हुआ सफल उपचार
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दिल्ली के अस्पताल में बायोफीडबैक थेरेपी से पुरानी कब्ज का हुआ सफल उपचार

नई दिल्ली, 25 अप्रैल (बीएनटी न्यूज़)| कब्ज अधिकांश लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे आम और जटिल चिकित्सा समस्याओं में से एक है। डॉक्टरों के मुताबिक, 20 से 30 फीसदी तक वयस्क आबादी कब्ज से परेशान है। दिल्ली के एक बड़े अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पैन्क्रियाटिकोबिलरी साइंसेज के चेयरमैन डॉ अनिल अरोड़ा के मुताबिक, हाल ही में पुरानी कब्ज के 180 मरीज सर गंगा राम अस्पताल पहुंचे जिनकी आयु सीमा 11-86 वर्ष रही और औसत आयु 49 वर्ष थी और इनमें 80 फीसदी पुरुष थे जिसपर एक अध्ययन किया गया। दरअसल बायोफीडबैक थेरेपी (बैलून द्वारा पुरानी कब्ज का इलाज) नामक एक विशेष तकनीक से कब्ज वाले मरीजों में अत्यंत उपयोगी होती है, जिन्हें ‘एनोरेक्टल डिस्सिनर्जिया’ है, यानी पुरानी कब्ज जिससे मल नहीं निकलना।

अस्पताल में मरीजों द्वारा बताया गया कि सबसे आम लक्षण मल की अपूर्ण निकासी (98 फीसदी), जिसके बाद शौच पर अत्यधिक दबाव (87 फीसदी) था। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से 88 फीसदी ने कब्ज के कारण के मूल्यांकन के लिए पहले से ही कॉलोनोस्कोपी कर ली थी। वहीं कब्ज के कारण का मूल्यांकन करने के बाद, यह देखा गया कि 56 फीसदी मरीजों में डिस्सिनर्जिया नामक एनोरेक्टल फंक्शन का समन्वय मौजूद था।

साथ ही 15 फीसदी मरीजों में धीमी गति से पारगमन कब्ज मौजूद था, यानी धीरे से मल निकलना और आंतो की चाल सुस्त और मल का रास्ता समय पर नहीं खुलता है। शेष मरीजों में या तो सामान्य पारगमन या आई.बी.एस. (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम) प्रकार की कब्ज थी। जबकि धीमी और सामान्य पारगमन कब्ज उच्च तरल पदार्थ के सेवन के साथ उच्च फाइबर आहार के लिए अच्छी तरह से प्रतिक्रिया करती है।

बायोफीडबैक थेरेपी के साथ 70 फीसदी की सफलता दर देखी गई, अधिकांश मरीजों ने सभी जुलाब को बंद करने के बाद भी अच्छा प्रदर्शन किया। 82 फीसदी तक की सफलता दर के साथ छोटे मरीजों ने बेहतर प्रतिक्रिया दिखाई। कब्ज के इलाज और प्रबंधन के लिए एक वैज्ञानिक तरीका, जिसे सर गंगा राम अस्पताल के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में जी.आई. मोटिलिटी लैब के रूप में स्थापित किया गया है।

अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में कंसल्टेंट डॉ. श्रीहरि ने बताया कि, इस बायोफीडबैक थेरेपी में गुब्बारे का उपयोग करके मरीजों को कई सत्रों में वास्तविक समय में कंप्यूटर सहायता प्राप्त सॉफ्टवेयर प्रोग्राम द्वारा मल निकासी की प्रक्रिया के बारे में शिक्षित हमारी जी.आई. मोटिलिटी लैब में किया जाता है।

अस्पताल के डाक्टरों के मुताबिक, पिछले 2 वर्षों में डिस्सिनर्जिया (बड़ी आंत और मल द्वार के बीच में तालमेल की कमी) के 72 मरीजों ने अपने केंद्र में बायोफीडबैक थेरेपी हुई, इन मरीजों में से अधिकांश 2 या अधिक जुलाब पर थे और 3 साल (सीमा 1-20 वर्ष) के मध्य के लिए रोगसूचक थे।

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