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काबू में इंसेफेलाइटिस, अब लेप्टोस्पायरोसिस से हो रहा घातक बुखार

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अपडेटेड 13 अगस्त 2022, 5:05 PM IST
काबू में इंसेफेलाइटिस, अब लेप्टोस्पायरोसिस से हो रहा घातक बुखार
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काबू में इंसेफेलाइटिस, अब लेप्टोस्पायरोसिस से हो रहा घातक बुखार

गोरखपुर, 13 अगस्त (बीएनटी न्यूज़)| प्रदेश सरकार के अंतर्विभागीय समन्वित प्रयासों से पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिमागी बुखार (इंसेफेलाइटिस) को काबू में कर लिया गया है। पर, कुछ वर्षों से एक नए प्रकार के घातक बुखार का असर देखने को मिल रहा है।

इसे लेकर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध चिकिसालय द्वारा रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) के सहयोग से किए गए रिसर्च से यह निष्कर्ष निकला है कि यह घातक बुखार वास्तव में लेप्टोस्पायरोसिस नामक बीमारी है जिसके मुख्य वाहक चूहे हैं।

चूंकि बीमारी को लेकर रिसर्च इसके भयावह होने से पहले ही शुरू हो गया है, इसलिए विशेषज्ञों को विश्वास है कि समय रहते ध्यान देकर इसे उन्मूलित भी कर लिया जाएगा।

बुखार के नए स्वरूप पर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय द्वारा किए गए रिसर्च/केस स्टडी को लेकर शुक्रवार को विभिन्न संस्थाओं के विशेषज्ञों के मध्य कांफ्रेंस के जरिये रिसर्च परिणाम पर विशद मंथन किया गया। केस स्टडी का प्रेजेंटेशन देते हुए महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी ने बताया कि विश्वविद्यालय से संबद्ध गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय में इस वर्ष आरएमआरसी के सहयोग से बुखार का कारण जानने का प्रयास किया गया।

अस्पताल में भर्ती मरीजों पर पांच प्रकार की बीमारियों स्क्रब टायफस, लेप्टोस्पायरोसिस, डेंगू, चिकनगुनिया व एंटरोवायरस पर जांच शुरू की गई। 20 जून से 6 अगस्त तक कुल 88 रक्त नमूनों की जांच के बाद गहन विश्लेषण किया गया। इनमें से 50 फीसद यानी 44 नमूने लेप्टोस्पायरोसिस पॉजिटिव पाए गए। जबकि 1 नमूने में स्क्रब टायफस, 9 में डेंगू आईजीएम, 3 में चिकनगुनिया व 3 में एंटरोवायरस पॉजिटिव होने का पता चला।

मेजर जनरल डॉ वाजपेयी ने बताया कि विश्लेषण में पाया गया कि लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी 20 से 60 वर्ष के उम्र के लोगों में हो रही है। इससे बिना ठंड के उच्च तापमान का बुखार हो रहा है। मरीज के पूरे शरीर में दर्द रहता है। चौथे-पांचवे दिन कुछ मरीजों में हल्के पीलिया व कुछ में निमोनिया के लक्षण मिलने लगते हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि मोनोसेफ, मैरोपैनम व थर्ड-फोर्थ जनरेशन की एंटीबायोटिक दवाओं का उतना असर नहीं होता जितना सामान्य निमोनिया के मामलों में दिखता है।

डॉ वाजपेयी ने बताया कि लेप्टोस्पायरोसिस अधिकतर चूहों के शरीर में रहता है और उसके पेशाब से यह वातावरण में आता है। त्वचा के जरिये यह मनुष्य के शरीर में पहुंच उसे बीमार कर सकता है। लेप्टोस्पायरोसिस के इलाज में टेट्रासाइक्लिन, क्लोरोमाईसेटिन, डॉकसीसाईक्लिन आदि एंटीबायोटिक दवाएं कारगर हैं लेकिन वर्तमान में इनका उपयोग डॉक्टरों द्वारा अपेक्षाकृत कम किया जा रहा है। दवाओं की उपयोगिता समझने के साथ इस बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए चूहों पर नियंत्रण पाना बेहद अहम होगा।

मेजर जनरल डॉ वाजपेयी ने कहा कि फिलहाल यह रिसर्च सिर्फ गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय में हो रहा है। यदि पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार-पांच अन्य संस्थानों में इजे तरह का शोध हो तो बीमारी का विश्लेषण और निकटवर्ती स्तर पर हो सकेगा। शोध में सहयोग के लिए यह चिकित्सालय और महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय तैयार है। उन्होंने यह भी बताया कि यह पता लगाने की भी कोशिश हो रही है कि आदमियों के पेशाब में लेप्टोस्पायरोसिस के कीटाणु उत्सर्जित होते हैं या नहीं।

महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी के प्रेजेंटेशन (केस स्टडी और विश्लेषण) पर आयोजित कांफ्रेंस में एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक डॉ सुरेखा किशोर, डॉ तेजस्वी, केजीएमयू लखनऊ के कुलपति जनरल विपिन पुरी, मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ हिमांशु, गोरखपुर के सीएमओ डॉ आशुतोष कुमार दूबे, बीआरडी मेडिकल कॉलेज से डॉ राजकिशोर, आरएमआरसी से डॉ राजीव सिंह, डॉ एसपी बेहरा, गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय के सह निदेशक डॉ कामेश्वर सिंह, डॉ राजीव श्रीवास्तव, डॉ आशीष गोयल, डॉ अवधेश अग्रवाल, डॉ शैलेश सिंह, डॉ आदित्य विक्रम सिंह, गुरु श्री गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रो गणेश पाटिल, गुरु गोरक्षनाथ कॉलेज ऑफ नसिर्ंग की प्राचार्या डॉ डीएस अजीथा समेत बीएएमएस व बीएससी अंतिम वर्ष के चुनिंदा 75 विद्यार्थी शामिल हुए। एम्स, केजीएमयू, आरएमआरसी, बीआरडी मेडिकल कॉलेज आदि के विशेषज्ञों ने माना कि लेप्टोस्पायरोसिस पर विश्लेषण प्राथमिक तौर पर बिलकुल ठीक है। यह बीमारी महाराष्ट्र और गुजरात में पहले से है। ऐसे में डाटा का को रिलेटिव अध्ययन भी किया जाएगा।

कांफ्रेंस का संयोजन करते हुए महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रदीप कुमार राव ने कहा कि समय से शोध शुरू होने से लेप्टोस्पायरोसिस की बीमारी इंसेफेलाइटिस की तरह भयावह नहीं होने पाएगी। इंसेफेलाइटिस के भयावह होने का एक बड़ा कारण समयानुकूल शोध का अभाव रहा। डॉ राव ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की बीमारियों पर शोध व निदान के लिए अपने कुलाधिपति, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय ने एम्स, केजीएमयू, आरएमआरसी, बीआरडी मेडिकल कॉलेज जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं के साथ एमओयू किया है और उसके अनुरूप कार्य शुरू भी कर दिए हैं।

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