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‘कार्यपालिका के दबाव में न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया का हुआ राजनीतिकरण’ : कांग्रेस कार्यसमिति

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अपडेटेड 27 दिसंबर 2024, 12:01 AM IST
‘कार्यपालिका के दबाव में न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया का हुआ राजनीतिकरण’ : कांग्रेस कार्यसमिति
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बीएनटी न्यूज़

बेलगावी। कर्नाटक के बेलगावी में आयोजित कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में गुरुवार को ‘नव सत्याग्रह प्रस्ताव’ पारित किया गया। इस प्रस्ताव में उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर पर दिए बयान की आलोचना की। साथ ही गणतंत्र दिवस के 75वें वर्ष पर भी बात की गई।

‘नव सत्याग्रह प्रस्ताव’ में कहा गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 39वें अधिवेशन में महात्मा गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। उस ऐतिहासिक अधिवेशन की 100वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आज सीडब्ल्यूसी की कर्नाटक के बेलगावी में बैठक हुई। जिस तरह देश ने हाल ही में हमारे संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ मनाई है, उसी तरह यह भी उचित है कि हम बापू को श्रद्धांजलि अर्पित करें। महात्मा गांधी का 19 नवंबर 1939 का बयान सात साल बाद संविधान सभा की स्थापना का स्तंभ था।

इसमें आगे कहा गया, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ठीक एक महीने बाद जब हम अपने गणतंत्र के 75वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं, तब संविधान को अब तक के सबसे गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान के निर्माण की डॉ. अंबेडकर से अधिक जिम्मेदारी किसी और ने नहीं उठाई। केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा संसद में किया गया बाबासाहेब अंबेडकर का अपमान संविधान को कमजोर करने के आरएसएस-बीजेपी के दशकों पुराने प्रोजेक्ट का सबसे ताजा उदाहरण है। सीडब्ल्यूसी केंद्रीय गृह मंत्री के इस्तीफे के साथ-साथ देश से माफी मांगने की मांग दोहराती है।”

कहा गया कि सीडब्ल्यूसी हमारे लोकतंत्र में लगातार आ रही गिरावट से बेहद चिंतित है। न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया जैसी संस्थाओं का कार्यपालिका के दबाव के माध्यम से राजनीतिकरण किया गया है। संसद की साख को खत्म कर दिया गया है। हाल ही में संपन्न 2024 के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष द्वारा जिस तरह कार्यवाही में बाधा डाली गई, उसे पूरे देश ने देखा। संविधान के संघीय ढांचे पर लगातार हमले हो रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक से इसे विशेष रूप से खतरा है।

सीडब्ल्यूसी भारत के चुनाव आयोग की सिफारिश पर चुनाव संचालन नियम 1961 में किए गए केंद्र के संशोधन की निंदा करती है, जो चुनावी दस्तावेजों के महत्वपूर्ण हिस्सों तक सार्वजनिक पहुंच को रोकता है। यह पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को कमजोर करता है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की आधारशिला हैं। हमने इन संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। खासकर के हरियाणा और महाराष्ट्र में जिस तरह से चुनाव कराए गए हैं, उसने पहले ही चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा को खत्म कर दिया है।

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मणिपुर हिंसा का भी जिक्र किया। कहा गया, “सीडब्ल्यूसी राज्य प्रायोजित सांप्रदायिक और जातीय घृणा में वृद्धि से बहुत व्यथित है। साल 2023 से हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर को प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है। मई 2023 में हिंसा भड़कने के बाद से प्रधानमंत्री ने इस अशांत राज्य का दौरा नहीं किया है। आरएसएस-बीजेपी के राजनीतिक लाभ के लिए संभल और अन्य स्थानों में जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव भड़काया गया है। पूजा स्थल अधिनियम,1991, जिसके प्रति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, वह भी अनावश्यक बहस के दायरे में आ गया है।”

सीडब्ल्यूसी ने इस बात की भी कड़ी निंदा की कि असम और उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में कांग्रेस पार्टी द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के साथ किस तरह से व्यवहार किया गया। कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं की जान चली गई। यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और यह भाजपा की लोकतंत्र विरोधी मानसिकता को दर्शाता है।

सीडब्ल्यूसी ने पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पीछे हटने के संबंध में विदेश मंत्री की घोषणा पर सोच-विचार किया है। यह अप्रैल 2020 के पहले की स्थिति बहाल करने के भारत के घोषित लक्ष्य से बेहद कम है और दशकों में लगे देश के सबसे बड़े क्षेत्रीय झटके को दर्शाता है। सीडब्ल्यूसी ने अपनी मांग दोहराई है कि सरकार विपक्ष को विश्वास में ले और एलएसी की स्थिति के संबंध में संसद में व्यापक चर्चा होने दे।

बयान में कहा गया है कि सीडब्ल्यूसी बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों में हालिया वृद्धि पर चिंता व्यक्त करती है। हम केंद्र सरकार से उनकी सुरक्षा और बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए बांग्लादेश सरकार के साथ काम करने का पुरजोर आग्रह करते हैं।

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