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दुनियाभर में जारी उथल-पुथल के बीच मोदी सरकार ने देश को दी स्थिरता

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अपडेटेड 31 दिसंबर 2024, 9:32 AM IST
दुनियाभर में जारी उथल-पुथल के बीच मोदी सरकार ने देश को दी स्थिरता
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नई दिल्ली। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक तीसरी जीत ने न केवल उनकी व्यक्तिगत विरासत को मजबूत किया है, बल्कि भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभुत्व को भी दर्शाया है। इससे यह पता चलता है कि पीएम मोदी भारत के लिए स्थिरता के प्रतीक बन गए हैं और भाजपा सुशासन का पर्याय बन कर उभरी है।

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और पोलैंड समेत दुनिया के कई देशों में इस साल सत्ता परिवर्तन देखने को मिला। जबकि, भारत में तीसरी बार मोदी सरकार बनी। यह उपलब्धि इसलिए भी खास है कि साल 1962 के बाद से किसी अन्य नेता ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल नहीं की है।

पीएम मोदी के कार्यकाल की विशेषता एक ऐसी सामंजस्यपूर्ण सरकार रही है, जिसने आर्थिक, सामाजिक और विदेश नीति से जुड़ी उन दूरगामी पहलों को लागू किया है, जिससे भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने में मदद मिली है।

वहीं, 2014 से अब तक दूसरे देशों में कई सरकारें बदल गई हैं। अमेरिका कई नाटकीय राजनीतिक बदलावों का साक्षी बना। साल 2017 तक बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहने के बाद, सत्ता की कमान डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में आई। ट्रंप ने बिल्कुल अलग प्रकार की नीतियां और अपेक्षाकृत अधिक अलगाववादी रुख अपनाया। वर्ष 2021 में जो बाइडेन ने बहुपक्षवाद और घरेलू निवेश पर जोर देते हुए ट्रंप की कई प्रमुख नीतियों को उलट दिया। डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी ने शासन में एक और बदलाव ला दिया है, जो गहरे पक्षपातपूर्ण विभाजन एवं नीतिगत अस्थिरता का परिचायक है।

ब्रिटेन ने 2014 से उल्लेखनीय रूप से राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया है। कंजरवेटिव पार्टी के अधीन, नेतृत्व बार-बार बदलता रहा। ब्रेक्सिट के मुद्दे पर जनमत संग्रह के बाद डेविड कैमरन ने इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह आईं थेरेसा मे ने भी इस्तीफा दे दिया। थेरेसा मे ब्रेक्सिट वार्ता से संबंधित परेशानियों से जूझ रही थीं। इसके बाद बोरिस जॉनसन ने सत्ता संभाली। उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान नेतृत्व किया, लेकिन अंततः घोटालों के बीच इस्तीफा दे दिया।

लिज ट्रस के संक्षिप्त एवं उथल-पुथल भरे कार्यकाल के बाद ऋषि सुनक आए। उन्होंने अर्थव्यवस्था और पार्टी में स्थिरता लाने का प्रयास किया। हाल ही में, लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर प्रधानमंत्री बने हैं, जिससे शासन में बदलाव आया है। हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, जिनमें पार्टी के भीतर आंतरिक असहमति और राजनीतिक संघर्ष से आशंकित मतदाता शामिल हैं।

ऑस्ट्रेलिया ने भी नेतृत्व में तेजी से बदलाव होते देखा है, जो इसकी ऐतिहासिक रूप से अस्थिर राजनीतिक संस्कृति को दर्शाता है। वर्ष 2014 में टोनी एबॉट से शुरू करके, प्रधानमंत्री का पद मैल्कम टर्नबुल और फिर स्कॉट मॉरिसन से होते हुए अब एंथोनी अल्बानीज के जिम्मे आया है। प्रत्येक बदलाव के साथ प्राथमिकताएं भी बदली हैं। अपने पूर्ववर्तियों के अधिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण के बाद, अल्बानीज ने जलवायु कार्रवाई और सामाजिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया है।

इटली का राजनीतिक परिदृश्य भी उतना ही हलचल भरा रहा है। वहां एक के बाद एक सरकारें अक्सर अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गईं। माटेओ रेन्जी के सुधार-प्रेरित कार्यकाल के बाद पाओलो जेंटिलोनी आए। उसके बाद ग्यूसेप कोंटे की गठबंधन सरकार आई और फिर तकनीक की ओर झुकाव रखने वाले मारियो ड्रैगी का नेतृत्व आया। अब जियोर्जिया मेलोनी इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी हैं। मेलोनी की ऐतिहासिक जीत के बावजूद, इटली राजनीतिक विखंडन और आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है।

पाकिस्तान, विशेष रूप से, राजनीतिक अस्थिरता का एक स्पष्ट उदाहरण है। वहां अक्सर भ्रष्टाचार और चुनावी धोखाधड़ी के आरोपों के बीच बार-बार नेतृत्व परिवर्तन होते रहे हैं। वर्ष 2014 के बाद से, देश ने नवाज शरीफ से लेकर शाहिद खाकन अब्बासी, उसके बाद इमरान खान और अब शहबाज शरीफ तक का बदलाव देखा है। प्रत्येक नेता का कार्यकाल अपने पूर्ववर्तियों के साथ विवादास्पद संबंधों के कारण चर्चित रहा है, जिसकी परिणति अक्सर कानूनी लड़ाई और कारावास में हुई है। इस अस्थिर राजनीतिक माहौल ने टिकाऊ शासन एवं आर्थिक प्रगति हासिल करने की पाकिस्तान की क्षमता को कुंद कर दिया है।

इजरायल ने विशेष रूप से अपनी खंडित गठबंधन प्रणाली के कारण व्यापक राजनीतिक उथल-पुथल का अनुभव किया है। वर्ष 2014 के बाद से, देश ने बेंजामिन नेतन्याहू को नेफ्ताली बेनेट के हाथों सत्ता गंवाते देखा है। इसके बाद येर लापिड का संक्षिप्त कार्यकाल रहा। लापिड के बाद नेतन्याहू प्रधानमंत्री के रूप में एक फिर वापस लौटे। वर्ष 2014 के बाद से, इजरायल में देश की संसद, नेसेट के लिए छह राष्ट्रीय चुनाव कराए गए हैं। ये चुनाव 2015, अप्रैल 2019, सितंबर 2019, 2020, 2021 और 2022 में हुए।

जापान अपेक्षाकृत अधिक राजनीतिक स्थिरता के लिए जाना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में हुए नेतृत्व परिवर्तनों ने लोगों को हैरान किया है। शिंजो आबे ने, जिन्होंने 2020 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, स्वास्थ्य कारणों से अप्रत्याशित रूप से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह योशीहिदे सुगा ने ली, जिन्होंने केवल एक साल के बाद ही पद छोड़ दिया और फुमियो किशिदा घनघोर अनिश्चितता के बीच केवल तीन वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे और अब शिगेरु इशिबा ने उनकी जगह ली है।

वर्ष 2014 के बाद से, ब्राजील को आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार घोटालों और ध्रुवीकृत चुनावों से प्रेरित राजनीतिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2016 में डिल्मा रूसेफ पर महाभियोग लगाया गया, जिससे मिशेल टेमर के लिए रास्ता साफ हुआ। मिशेल टेमर का कार्यकाल काफी विवादास्पद रहा। इसके बाद जेयर बोल्सोनारो धुर दक्षिणपंथी लोकलुभावन रुख अपनाते हुए सत्ता में आए। हाल ही में, लुइजइनासियो लूला डी सिल्वा ध्रुवीकरण वाले चुनाव के बाद सत्ता में लौटे हैं।

दक्षिण कोरिया में, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच पार्क ग्यून-हे के विरुद्ध 2017 में महाभियोग लगाया गया। उनके उत्तराधिकारी, मून जे-इन, आर्थिक चुनौतियों और राजनयिक तनावों से जूझते रहे। यून सुक-योल वर्तमान राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने हाल ही में मार्शल लॉ लागू करने का असफल प्रयास किया और दक्षिण कोरिया की संसद द्वारा उनके विरुद्ध महाभियोग चलाने की प्रक्रिया चल रही है।

वर्ष 2014 के बाद से अर्जेंटीना में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिले हैं, जिसमें नेतृत्व क्रिस्टीना फर्नांडीज डी किरचनर से मौरिसियो मैक्री और उसके बाद अल्बर्टो फर्नांडीज तथा अब जेवियर माइली के हाथों में पहुंचा है। प्रत्येक नेता ने स्पष्ट रूप से अलग-अलग आर्थिक और सामाजिक नीतियों को अपनाया है, जो अनिश्चितता भरे माहौल और राजनीतिक समीकरणों में बार-बार बदलाव को जन्म दे रहा है।

भारत में 2024 का चुनाव खास रहा। पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के बाद पहली बार जनता ने किसी को लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुना। इस चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप भी खूब लगे, लेकिन जीत अंत में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हुई। कश्मीर में 1996 के बाद पहली बार सबसे अधिक 38 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले।

चुनाव प्रक्रिया में महिला और युवा उम्मीदवारों की संख्या भी बढ़ी।

पहली बार अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के सबसे बड़े समूह ने इन आम चुनावों का प्रत्यक्ष अनुभव किया। उन्होंने जो देखा उससे वे प्रभावित हुए। कुछ लोगों ने प्रक्रिया की पारदर्शिता की प्रशंसा की, जबकि अन्य ने चुनाव आयोग की हरित मतदान केन्द्रों जैसी पहल को प्रेरणादायक पाया। ईवीएम-वीवीपैट के रैंडमाइजेशन जैसी प्रौद्योगिकी के उपयोग की भी काफी सराहना हुई।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने राज्यों में भी अपना विस्तार किया। इससे ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में एनडीए की सरकारें बनीं। ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अतीत में भाजपा को अपनी पकड़ बनाने के लिए जूझना पड़ा था।

भाजपा ने ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) को हराकर ऐतिहासिक जीत हासिल की। ओडिशा के इतिहास में पहली बार बीजद ने लोकसभा चुनावों में अपना प्रभुत्व खो दिया है। लोकसभा चुनावों में अपनी सफलता के अलावा, भाजपा ने ओडिशा विधानसभा चुनाव में भी महत्वपूर्ण प्रगति की।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में, आंध्र प्रदेश की मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक पहचान के बावजूद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने महत्वपूर्ण प्रगति की और 25 संसदीय क्षेत्रों में से 20 पर बढ़त हासिल की। यह उल्लेखनीय उपलब्धि एनडीए के दृष्टिकोण एवं नीतियों के प्रति बढ़ते समर्थन को दर्शाती है। इस सफलता में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बुनियादी ढांचे के विकास, आर्थिक सुधार और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर उनका ध्यान राज्य के मतदाताओं को पसंद आया।

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हुए। पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल किया। भाजपा यह हैट्रिक हासिल करने वाली हरियाणा की पहली राजनीतिक पार्टी बन गई है, जो राज्य में उसके बढ़ते प्रभाव और पकड़ का प्रमाण है। कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के कड़े विरोध के बावजूद, भाजपा 48 सीटें हासिल करके सीधे मुकाबले में कांग्रेस को प्रभावी ढंग से हराने में कामयाब रही।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व में महायुति की जीत और खुद भाजपा का प्रदर्शन भी ऐतिहासिक रहा। विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सिर्फ 51 सीटों पर सिमटकर रह गया। जबकि, सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने 230 से अधिक सीटों पर बढ़त हासिल की। कुल 288 में से 132 सीटों के साथ, भाजपा ने 45 प्रतिशत सीटें हासिल करते हुए राज्य में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। यह जीत महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी द्वारा सीटों के मामले में सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसने भाजपा के प्रभुत्व को मजबूत किया और राज्य में विपक्ष के एजेंडे को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया।

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