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‘न्याय का मंदिर तभी मजबूत होगा, जब न्यायपालिका में आएंगे सुधार’, राज्यसभा में बोले राघव चड्ढा

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अपडेटेड 01 अप्रैल 2025, 11:50 PM IST
‘न्याय का मंदिर तभी मजबूत होगा, जब न्यायपालिका में आएंगे सुधार’, राज्यसभा में बोले राघव चड्ढा
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बीएनटी न्यूज़

नई दिल्ली। हाल ही में देश की न्यायपालिका में घटी घटनाओं को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा ने मंगलवार को राज्यसभा में सवाल उठाए। उन्होंने देश में न्यायिक सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत के लोग अदालत को न्याय का मंदिर मानते हैं और जब कोई आम नागरिक इसकी चौखट पर जाता है, तो उसे पूरा विश्वास होता है कि उसे न्याय जरूर मिलेगा।

सांसद राघव चड्ढा ने कहा, “जैसे ऊपर वाले के दरबार में देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं, वैसे ही यह माना जाता है कि न्यायपालिका में भले ही समय लगे, लेकिन अन्याय नहीं होगा। समय-समय पर न्यायपालिका ने इस भरोसे को और मजबूत किया है, हाल ही के दिनों में कुछ घटनाओं ने देश को चिंतित कर दिया है, जिसके चलते न्यायिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हो गया है।”

सांसद राघव चड्ढा ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि जिस तरह देश में चुनाव सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हुए हैं, उसी तरह न्यायपालिका में भी सुधारों की जरूरत है। हमें ऐसे सुधार चाहिए, जो न्यायपालिका को मजबूत करें, न कि उसे कमजोर।

उन्होंने दो अहम मुद्दों को उठाया, पहला, जजों की नियुक्ति प्रक्रिया और दूसरा, रिटायर जजों को पोस्ट रिटायरमेंट जॉब देने की परंपरा।

उन्होंने कहा कि समय-समय पर कॉलेजियम सिस्टम की कमियां सामने आई हैं। लॉ कमीशन की रिपोर्ट्स और कानूनी क्षेत्र के कई बुद्धिजीवियों ने इन खामियों का कई बार जिक्र किया है। शायद इसी वजह से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) जैसे कानून की जरूरत महसूस हुई थी। लेकिन, अब समय आ गया है कि कॉलेजियम सिस्टम खुद को सुधारे और नए सिरे से खुद को पुनर्गठित करे। इन कमियों को दूर करने के लिए एक स्वतंत्र और पारदर्शी प्रक्रिया बनानी चाहिए, जिसमें जजों की नियुक्ति वरिष्ठता, योग्यता और ईमानदारी के आधार पर हो।

इसके लिए उन्होंने एक सुझाव भी पेश किया। उन्होंने कहा कि आज से पहले वकीलों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने की प्रक्रिया अपारदर्शी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए दिशानिर्देश बनाए। आज उनके लिए पॉइंट-बेस्ड सिस्टम लागू किया गया है, जिसके तहत सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति होती है, जिसमें प्रैक्टिस के वर्ष, प्रो बोनो मामलों की संख्या और रिपोर्टेड जजमेंट्स के आधार पर अंक दिए जाते हैं।

उन्होंने प्रस्ताव रखा कि अगर कॉलेजियम सिस्टम भी ऐसी ही पारदर्शी, पॉइंट-बेस्ड और योग्यता-आधारित सिस्टम अपनाए, तो जजों की नियुक्ति में जनता का भरोसा और बढ़ेगा।

सांसद राघव चड्ढा ने जजों के रिटायरमेंट के बाद की स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि एक चलन बन गया है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सरकारें प्रशासनिक या कार्यकारी पदों पर नियुक्त कर देती हैं। इससे हितों के टकराव, कार्यकारी हस्तक्षेप और रिटायरमेंट से पहले के फैसलों पर प्रभाव जैसे सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थिति ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ को जन्म देती है और न्यायिक फैसलों पर सरकार का प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है।

उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-148 का हवाला देते हुए कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के रिटायरमेंट के बाद उन्हें किसी भी सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह जजों के लिए भी नियम बनाया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर पूर्ण प्रतिबंध संभव न हो, तो कम से कम दो साल का अनिवार्य कूलिंग-ऑफ पीरियड लागू करना चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के बाद दो साल तक जजों को केंद्र या राज्य सरकार किसी भी सरकारी पद पर नियुक्त न कर सके। अगर ये सुधार लागू होते हैं, तो यह भारत के न्यायिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा।

उन्होंने आगे कहा, “हम देशवासी अदालत को मंदिर मानते हैं और जजों को न्याय की मूर्ति समझते हैं। अगर ये न्यायिक सुधार लागू होते हैं, तो जनता का न्यायपालिका पर विश्वास और गहरा होगा।”

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