बीएनटी न्यूज़
इंदौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत शुक्रवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में आरएसएस के ‘घोष वादन’ कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान एक हजार से ज्यादा स्वयंसेवकों ने जयघोष की प्रस्तुति दी। स्वयंसेवकों ने 100 के अंक की मानव आकृति भी बनाई।
दशहरा मैदान में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि हम दंड प्रदर्शन के लिए नहीं सीखते और न ही झगड़े के लिए सीखते हैं। यह एक कला है और लाठी चलाने से व्यक्ति में वीरता आती है। डर का भाव खत्म हो जाता है। सभी में एक होने के लिए व्यक्ति अपने आप को संयमित करता है और सभी के साथ चलता है।
संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत एक अग्रणी राष्ट्र है। भारत पीछे रहने वाला देश नहीं है। हम दुनिया की पहली पंक्ति में बैठकर बता सकते हैं कि हमारे पास क्या है। भारतीय संगीत और पारंपरिक वादन का एक साथ मिलकर चलना, अनुशासन, संस्कार और सद्भाव सिखाता है, जो समाज की एकता के लिए आवश्यक हैं।
उन्होंने आरएसएस में घोष दलों के महत्व को बताते हुए कहा कि संगीत के सब अनुरागी है, लेकिन साधक सब नहीं होते। भारतीय संगीत में घोष दलों की परंपरा नहीं थी। एक साथ इतने स्वयंसेवक संगीत का प्रस्तुति दे रहे हैं, यह एक आश्चर्यजनक घटना है। हमारी रण संगीत परंपरा जो विलुप्त हो गई थी, अब फिर से लौट आई है।
महाभारत में पांडवों ने युद्ध के समय घोष किया था, उसी तरह संघ ने भी इसे फिर से जागृत किया। शुरुआत में संघ के स्वयंसेवकों ने नागपुर के कामठी कैंटोनमेंट बोर्ड में सेना के वादकों की धुनें सुनकर अभ्यास किया। संगीत वादन भी देशभक्ति से जुड़ा है। संघ के कार्यक्रमों से मनुष्य के सद्गुणों में वृद्धि होती है।