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कलकत्ता हाईकोर्ट ने और डब्ल्यूबीबीएसई कर्मचारियों का वेतन रोकने को कहा

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अपडेटेड 26 नवंबर 2021, 1:24 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने और डब्ल्यूबीबीएसई कर्मचारियों का वेतन रोकने को कहा
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कलकत्ता हाईकोर्ट ने और डब्ल्यूबीबीएसई कर्मचारियों का वेतन रोकने को कहा

कोलकाता 26 नवंबर (बीएनटी न्यूज़)| पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (डब्ल्यूबीबीएसई) में ग्रुप डी के कर्मचारियों की भर्ती में हेराफेरी के संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा सीबीआई जांच पर रोक लगाए जाने के एक दिन बाद अदालत की अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल पीठ ने बोर्ड से 542 कर्मचारियों का वेतन रोकने को कहा। अदालत ने पाया कि पैनल रद्द किए जाने के बाद ये भर्तियां की गई थीं। जस्टिस गंगोपाध्याय ने गुरुवार को कहा कि ग्रुप डी के कर्मचारियों की भर्ती के लिए पैनल 4 मई 2019 को रद्द कर दिया गया था, लेकिन आरोप हैं कि पैनल रद्द होने के बाद 542 कर्मचारियों की भर्ती की गई थी।

गंगोपाध्याय ने बोर्ड से यह पता लगाने के लिए कहा कि क्या पैनल रद्द होने के बाद भर्तियां की गई थीं और सही पाए जाने पर इन कर्मचारियों का वेतन रोकने के लिए कहा। इससे पहले एकल पीठ ने दोषपूर्ण भर्ती के आधार पर 25 कर्मचारियों का वेतन रोके जाने के आदेश को रद्द करने का आदेश दिया था।

राज्य को बुधवार को उस समय बड़ी राहत मिली, जब कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति हरीश टंडन और न्यायमूर्ति रवींद्रनाथ सामंत शामिल थे, ने स्कूल द्वारा समूह-डी कार्यकर्ताओं की नियुक्तियों में कथित अनियमितताओं को लेकर एकल पीठ द्वारा आदेशित सीबीआई जांच पर अंतरिम रोक लगा दी।

सीबीआई जांच के एकल पीठ के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने खंडपीठ में अपील की, जिसके बाद यह आदेश आया।

साल 2016 में, राज्य सरकार ने राज्य के विभिन्न स्कूलों में लगभग 13 हजार चतुर्थ श्रेणी की भर्ती के लिए सिफारिश की थी। उसी के मुताबिक डब्ल्यूबी-एसएससी ने समय-समय पर परीक्षाएं और साक्षात्कार आयोजित किए और पैनल का गठन किया गया। उस पैनल का कार्यकाल 2019 में समाप्त हो गया। आरोप है कि आयोग के क्षेत्रीय कार्यालय ने पैनल की समाप्ति के बाद भी बहुत सारी अनियमित भर्तियां कीं, जो 500 से कम नहीं हैं।

इनमें से 25 की नियुक्ति के खिलाफ उच्च न्यायालय में मामला दर्ज किया गया था और यह मामला मंगलवार को न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की एकल पीठ में आया। शुरू में जज को लगा कि उस नियुक्ति की सिफारिश में भ्रम है।

उन्होंने आयोग से कहा था, “बस, बहुत हो गया।” जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था, “इसका मतलब है कि क्षेत्रीय कार्यालय पर आयोग का कोई नियंत्रण नहीं है। मैं एक और घोटाला नहीं चाहता।”

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