अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम देखेंगे
नई दिल्ली, 4 अगस्त (बीएनटी न्यूज़)| दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और गृह मंत्रालय को प्रतिवादी बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की गई है। यह याचिका अधिवक्ता एम. एल. शर्मा की ओर से दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि अस्थाना की नियुक्ति 31 जुलाई को उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उनका दिल्ली पुलिस प्रमुख के रूप में एक वर्ष का कार्यकाल होगा। मंगलवार को शर्मा ने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया। इस पर न्यायमूर्ति रमना ने कहा, आइए देखते हैं कि क्या यह क्रमांकित है। पहले याचिका को क्रमांकित किया जाए। हम देखेंगे।
अवमानना याचिका में, शर्मा ने दावा किया है कि अस्थाना की नियुक्ति 3 जुलाई, 2018 को दिए गए शीर्ष अदालत के फैसले का पालन नहीं करती है।
इसमें तर्क दिया गया है कि सभी राज्य पुलिस महानिदेशक के पद पर पदधारी की सेवानिवृत्ति की तारीख से कम से कम तीन महीने पहले संघ लोक सेवा आयोग को रिक्तियों की प्रत्याशा में प्रस्ताव भेजना होता है।
याचिका में आगे तर्क दिया गया है कि अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय ने कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) का नेतृत्व किया और जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ काम किया, इसलिए अदालत की गंभीर अवमानना दोनों प्रतिवादियों के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए उत्तरदायी है।
27 जुलाई को दिल्ली पुलिस प्रमुख के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले, अस्थाना सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिदेशक थे। वह गुजरात कैडर के 1984 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी हैं।
बता दें कि गुरुवार को दिल्ली विधानसभा ने अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया। राकेश अस्थाना को रिटायरमेंट से चंद दिन पहले दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त किए जाने के मामले में सियासत गर्मा गई है। दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को अस्थाना की दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ प्रस्ताव पारित करते हुए गृह मंत्रालय से नियुक्ति वापस लेने को कहा गया है। आम आदमी पार्टी (आप) का कहना है कि यह नियुक्ति न केवल असंवैधानिक है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना भी है।