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यह पहली बार नहीं है, जब बंटने के कगार पर है कांग्रेस

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अपडेटेड 01 अक्टूबर 2021, 7:47 AM IST
यह पहली बार नहीं है, जब बंटने के कगार पर है कांग्रेस
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यह पहली बार नहीं है, जब बंटने के कगार पर है कांग्रेस

नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (बीएनटी न्यूज़)| पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल की ओर से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बयान देने और इसके बाद उनके आवास पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी बंटी हुई नजर आ रही है।

सिब्बल के आवास पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन को कई नेताओं ने गुंडागर्दी करार दिया है।

यह पहली बार नहीं है, जब पार्टी में दरार आई है। इंदिरा गांधी के समय में 12 नवंबर 1969 को के. कामराज के साथ मतभेदों को लेकर कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई थी। पार्टी अनुशासन का उल्लंघन करने के लिए इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस (आर) का गठन किया और एआईसीसी के अधिकांश सदस्य उनके पक्ष में चले गए।

इसी तरह की स्थिति मार्च 1998 में पैदा हुई थी, जब सीडब्ल्यूसी की बैठक में सीताराम केसरी को दरकिनार कर दिया गया और सोनिया गांधी को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस घटनाक्रम के बाद वरिष्ठ नेता शरद पवार, तारिक अनवर और पी. ए. संगमा ने पार्टी छोड़ दी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया।

इसके अलावा राजीव गांधी के खिलाफ वी. पी. सिंह द्वारा विद्रोह किया गया था और वह 1989 में भाजपा की मदद से प्रधानमंत्री बने। फिर जब नरसिम्हा राव पार्टी अध्यक्ष बने तो माधव राव सिंधिया ने एमपी कांग्रेस, जीके मूपनार द तमिल मनीला कांग्रेस और एन. डी. तिवारी, अर्जुन सिंह और शीला दीक्षित ने तिवारी कांग्रेस का गठन किया और इसे तब विलय किया गया, जब सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष बनीं।

इसके अलावा ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का गठन किया जो अब पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी है। वाईएसआरसीपी भी एक कांग्रेस ऑफ-शूट (कांग्रेस पार्टी से अलग होकर बनाया गया दल) है, जो आंध्र प्रदेश में शीर्ष पर है। वहीं इस दिशा में पुडुचेरी में एन. आर. कांग्रेस का नाम भी आता है।

सिब्बल की घटना पर कार्रवाई की मांग करने वाले जी-23 के साथ पार्टी एक बार फिर फूट के कगार पर है। लेकिन शीर्ष नेतृत्व इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, जिसका अर्थ है कि कोई कार्रवाई होने की संभावना नहीं है।

नेताओं ने कार्यकर्ताओं को अदालतों और संसद में पार्टी के लिए सिब्बल के योगदान की याद दिलाई। वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने घटना को सुनियोजित करार दिया। उन्होंने कहा, “मैं कल रात कपिल सिब्बल के आवास पर सुनियोजित गुंडागर्दी की कड़ी निंदा करता हूं। वह एक वफादार कांग्रेसी हैं, जो संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह पार्टी के लिए लड़ रहे हैं।”

गुलाम नबी आजाद ने गुंडागर्दी को अस्वीकार्य बताते हुए आगे कहा कि किसी भी तरफ से किसी भी सुझाव का स्वागत किया जाना चाहिए।

इसी तरह कांग्रेस नेता मनीष तिवारी और विवेक तन्खा ने भी नाराजगी जताई है, जबकि आनंद शर्मा ने कहा कि वह हैरान हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, जिन्होंने पार्टी छोड़ने का इरादा दिखाया है, ने आरोप लगाया कि वरिष्ठों का अपमान किया जाता है।

अब पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के वफादारों और सुधारों की चाह रखने वालों के बीच दरार बढ़ गई है, लेकिन कोई भी ऐसा नहीं है, जो दोनों गुटों को एक साथ ला सके।

एक नेता ने कहा, “यह विडंबना ही है कि पूरे संकट में राहुल गांधी खुद एक पार्टी बन गए हैं, बल्कि उन्हें समाधान प्रदाता होना चाहिए था।” नेता ने कहा कि बुरी सलाह और एक मंडली के बुरे फैसलों के कारण पार्टी इतने निचले स्तर पर पहुंच गई है।

वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी के वफादार अजय माकन और रणदीप सिंह सुरजेवाला ने नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले नेताओं पर हमला बोला है।

अमरिंदर सिंह, जो निकास द्वार पर हैं, ने भी आलोचना करते हुए कहा, “दुर्भाग्य से वरिष्ठों को पूरी तरह से दरकिनार किया जा रहा है।”

यह कहते हुए कि यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है, उन्होंने कपिल सिब्बल के घर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए उपद्रव की भी निंदा की, क्योंकि उन्होंने उन विचारों को व्यक्त करने की ठानी, जो पार्टी नेतृत्व के अनुकूल नहीं थे।

जी-23 समूह का कहना है कि वे न झुकने वाले हैं और न ही पार्टी छोड़ने वाले हैं बल्कि वे सभी मुद्दे उठाएंगे, जो उन्हें लगता है कि पार्टी के लिए बेहतर है।

कपिल सिब्बल ने बुधवार को राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए पूछा था कि आखिर पार्टी में कौन निर्णय ले रहा है। उन्होंने कहा कि जी-23 द्वारा पत्र लिखे जाने के एक साल बाद भी पार्टी नेताओं की संगठनात्मक चुनाव की मांग पूरी नहीं हुई है।

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