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जाति जनगणना : जिसको पिछली सरकारें टालती रहीं, उसको मोदी सरकार ने मूल जनगणना में ही सम्मिलित करने का किया फैसला

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अपडेटेड 01 मई 2025, 12:13 AM IST
जाति जनगणना : जिसको पिछली सरकारें टालती रहीं, उसको मोदी सरकार ने मूल जनगणना में ही सम्मिलित करने का किया फैसला
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बीएनटी न्यूज़

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को दिल्ली में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसलों की जानकारी दी। इस बैठक में सरकार ने देशभर में जाति जनगणना कराने का भी फैसला किया है।

दरअसल, विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस की तरफ से इसे 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले से ही मुद्दा बनाया जा रहा था। अब केंद्र सरकार की तरफ से जाति जनगणना कराने के इस फैसले के बाद विपक्ष की तरफ से भी इसको लेकर प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। हालांकि, कैबिनेट द्वारा जाति जनगणना को लेकर लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने जाति जनगणना का विरोध किया था। 1947 के बाद से जाति जनगणना नहीं हुई। जाति जनगणना की जगह कांग्रेस ने जाति सर्वे कराया। यूपीए सरकार के दौरान कई राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि से जाति सर्वे कराया।

उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि कांग्रेस की सरकारों ने आज तक जाति जनगणना का विरोध किया है। आजादी के बाद से अब तक देश में जितनी बार भी जनगणना हुई, उसमें जातियों की गणना नहीं की गई।

वर्ष 2010 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा। तत्पश्चात एक मंत्रिमंडल समूह का भी गठन किया गया था। जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति आधारित जनगणना की संस्तुति की थी।

इसके बावजूद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना के बजाए, एक सर्वे कराना ही उचित समझा, जिसे एसईसीसी के नाम से जाना जाता है। कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दलों ने जाति जनगणना के विषय को केवल अपने राजनैतिक लाभ के लिए उपयोग किया।

जनगणना का विषय संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 पर अंकित है और यह केंद्र का विषय है। हालांकि, कई राज्यों ने सर्वे के माध्यम से जातियों की जनगणना की है। जहां कुछ राज्यों में यह कार्य सुचारू रूप से संपन्न हुआ है। वहीं, कुछ अन्य राज्यों ने राजनैतिक दृष्टि से और गैर-पारदर्शी ढंग से सर्वे किया। इस प्रकार के सर्वे से समाज में भ्रांति फैली है।

उन्होंने आगे कहा कि इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीति के दबाव में न आए, जातियों की गणना एक सर्वे के स्थान पर मूल जनगणना में ही सम्मिलित होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश की भी प्रगति निर्बाध तरीके से होती रहेगी। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजनैतिक विषयों की कैबिनेट समिति ने यह निर्णय लिया है कि जातियों की गणना को आने वाली जनगणना में सम्मिलित किया जाए। यह इस बात को दर्शाता है कि वर्तमान सरकार देश और समाज के सर्वांगीण हितों और मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है।

वैष्णव ने आगे कहा कि इसके पहले भी जब समाज के गरीब वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया तो समाज के किसी घटक में तनाव उत्पन्न नहीं हुआ था।

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