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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने संसद को बताया सर्वोच्च, कहा- ‘असहमति की स्थिति में प्रावधानों में कर सकती है संशोधन’

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अपडेटेड 20 अप्रैल 2025, 10:55 AM IST
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने संसद को बताया सर्वोच्च, कहा- ‘असहमति की स्थिति में प्रावधानों में कर सकती है संशोधन’
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बीएनटी न्यूज़

नई दिल्ली। राष्ट्रपति के कार्यों को न्यायिक समीक्षा के दायरे में लाने संबंधी सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तरफ से इसकी आलोचना के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने शनिवार को ‘न्यायिक अतिक्रमण’ की बात को खारिज करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के विचारों से असहमति की स्थिति में प्रावधानों में संशोधन करने की शक्ति संसद के पास है।

न्यायमूर्ति रस्तोगी ने बीएनटी न्यूज़ से बात करते हुए न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव की बात को खारिज कर दिया, और जन कल्याण के प्रति जजों की प्रतिबद्धता और उनके विचारों के विश्लेषण के कारण कथित दबाव को झेलने की उनकी क्षमता के बारे में बात की।

उन्होंने कहा, “जजों पर बिल्कुल भी दबाव नहीं है। वे स्वतंत्र और निडर होकर काम करते हैं, चाहे जनता कुछ भी सोचे। हम जज के रूप में, पूरी प्रतिबद्धता के साथ, अपने संस्थान और जनता के हित में काम करते हैं।”

यह बात ऐसे समय कही गई है जब विपक्ष और सत्तारूढ़ भाजपा सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और इसकी आलोचना के संबंध में बयानबाजी में व्यस्त हैं।

न्यायमूर्ति रस्तोगी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों से ‘गलत मिसाल’ कायम होने का सवाल ही नहीं उठता और शीर्ष अदालत के पास मुद्दों पर अंतिम फैसला लेने का विकल्प है।

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि यह न्यायिक अतिक्रमण या गलत मिसाल कायम करने का मामला है। अदालत हमेशा इस तथ्य के प्रति सजग रहती है कि कौन सा मामला अंतरिम आदेश का हकदार है और कौन सा नहीं।”

इस महीने की शुरुआत में, शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच गतिरोध को सुलझाया।

शीर्ष अदालत ने राज्यपाल के आचरण को संविधान, और विशेष रूप से अनुच्छेद 200 का उल्लंघन भी बताया। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से विधेयकों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समय सीमा का समर्थन करके राष्ट्रपति के कार्यों को न्यायिक समीक्षा के तहत लाया।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा न्यायपालिका के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करने के बाद विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया। उन्होंने अनुच्छेद 142 की तुलना लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ न्यायपालिका के पास उपलब्ध “परमाणु मिसाइल” से की।

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने धनखड़ की आलोचना को न्यायपालिका पर हमला और अदालतों में जनता के विश्वास को हिला देने वाला कृत्य बताया।

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