कानूनी जानकार और दिल्ली सरकार के पूर्व डायरेक्टर ऑफ प्रॉसिक्युशन बी. एस. जून बताते हैं कि अभियोजन पक्ष के केस को साबित करने के लिए उसके गवाहों के बयान सबसे अहम हैं। कहीं कोई वारदात होती है, तो जिसने भी वह वारदात देखी है या फिर वारदात के बारे में कोई भी जानकारी रखता है या फिर केस की कड़ी को जोडऩे में मददगार हो सकता है, तो उसे सरकारी गवाह बनाया जाता है।
पुलिस जब मामले की छानबीन कर रही होती है, तो जांच के दौरान जब भी उसे लगता है कि अमुक व्यक्ति के पास घटना के बारे में जानकारी है तो पुलिस उसे अभियोजन पक्ष यानी सरकारी पक्ष का गवाह बनाता है। पुलिस ऐसे गवाह के बयान सीआरपीसी की धारा-161 के तहत दर्ज करता है।
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अभियोजन पक्ष के गवाह का पुलिस जब बयान दर्ज करता है, तो उस बयान पर उक्त गवाह के दस्तखत नहीं होते। पुलिस को अगर लगता है कि गवाह पर दबाव है या फिर वह अपने बयान से मुकर भी सकता है तो वह ऐहतियात के तौर पर उक्त गवाह का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने भी दर्ज करा सकता है। मैजिस्ट्रेट के सामने गवाह का बयान सीआरपीसी की धारा-164 के तहत दर्ज होता है और उस बयान पर गवाह के दस्तखत होते हैं। आमतौर पर कई बार सेक्सुअल हैरेससमेंट या रेप आदि में पुलिस विक्टिम के बयान मैजिस्ट्रेट के सामने भी दर्ज कराती है।
अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान के बाद पुलिस गवाहों की लिस्ट चार्जशीट के साथ कोर्ट को सौंपती है और फिर आरोप तय होने के बाद उन गवाहों को कोर्ट एक-एक कर बयान के लिए समन जारी करता है और फिर गवाह कोर्ट में पेश होकर बयान दर्ज कराते हैं। अगर सरकारी पक्ष का गवाह पुलिस के सामने दिए गए बयान से अलग कोर्ट में बयान देता है तो उसे मुकरा हुआ गवाह माना जाता है और तब अभियोजन पक्ष के वकील उस गवाह के साथ जिरह करता है। अगर वह अपने बयान से नहीं मुकरता तो उस गवाह से बचाव पक्ष के वकील जिरह करता है। गवाह के बयान और जिरह यानी क्रॉस के बाद उसका बयान पूर्ण माना जाता है।
एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि अभियोजन पक्ष के गवाह के बयान और आरोपियों के बयान के बाद आरोपी चाहे तो वह अपने बचाव में गवाह बुलाने के लिए कोर्ट से आग्रह कर सकता है। कोर्ट के सामने पेश लिस्ट के मुताबिक, कोर्ट बचाव पक्ष के गवाहों को समन जारी करता है और वह गवाह बयान के लिए कोर्ट में पेश होते हैं। हालांकि, यह कोर्ट तय करता है कि उन गवाहों की लिस्ट में किसे बुलाया जाना जरूरी है।
कई बार कोर्ट को लगता है कि अमुक शख्स का बयान केस के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है तो वह खुद संज्ञान लेकर उक्त गवाह को सीआरपीसी की धारा-311 के तहत समन जारी कर सकता है। ऐसे गवाह को कोर्ट विटनेस कहा जाता है। इसके अलावा कई बार अभियोजन पक्ष की रजामंदी से अगर कोई अभियुक्त खुद वादा माफ गवाह बनना चाहता हो, तो वह बन सकता है।
ऐसे मामले जिसमें पुलिस का साक्ष्य कमजोर हो या फिर गवाहों की कमी हो तो कई बार अभियोजन पक्ष अभियुक्तों में से किसी एक आरोपी को गवाह बनाने के लिए अर्जी दाखिल करता है और तब कोर्ट उसे बुलाकर उसकी मर्जी पूछती है और वह अगर तैयार होता है तो उसे वादा माफ गवाह यानी अप्रूवर बनाया जाता है।