
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने विशेषज्ञ समिति गठित होने के बाद मध्यस्थता कानून पर सुनवाई टाली
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि केंद्र सरकार ने देश में मध्यस्थता कानून के कामकाज की जांच करने और मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में सुधारों की सिफारिश करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले पर कार्यवाही दो महीने के लिए स्थगित कर दी।
एजी ने सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि इस साल 14 जून को गठित विशेषज्ञ समिति ने परामर्श प्रक्रिया शुरू कर दी है और सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने में दो महीने से अधिक समय नहीं लगेगा।
पीठ में शामिल जस्टिस हृषिकेश रॉय, पी.एस. नरसिम्हा, पंकज मिथल और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा, “अटॉर्नी जनरल का कहना है कि संविधान पीठ के समक्ष उठने वाले मुद्दे भी समिति के व्यापक ढांचे के भीतर आएंगे। समिति की रिपोर्ट आने के बाद यदि कानून में संशोधन की जरूरत होगी तो सरकार निर्णय लेगी। इस समय हम निर्देश देते हैं कि संविधान पीठ के समक्ष दो संदर्भों को दो महीने यानी 13 सितंबर, 2023 तक के लिए टाल दिया जाए।
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन इस सवाल पर विचार करने के लिए किया गया था कि क्या कोई व्यक्ति जो किसी विवाद में मध्यस्थ बनने के लिए अयोग्य है, वह किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ के रूप में नामित कर सकता है।
2022 में दो तीन-न्यायाधीशों की पीठों द्वारा दिए गए परस्पर विरोधी निर्णयों को देखते हुए इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया था।
कानून और न्याय मंत्रालय ने कानूनी मामलों के विभाग के पूर्व सचिव टी.के. विश्वनाथन की अध्यक्षता में 16 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। इसे अन्य बातों के अलावा, अदालत से न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने और नए समाधान सुझाने के लिए कहा गया है।