अदालत से आए समन के बावजूद अगर कोई पेश नहीं होता तो अदालत चाहे तो उसके नाम वॉरंट और फिर गैरजमानती वॉरंट जारी कर सकती है। आखिर वॉरंट और गैर जमानती वॉरंट कब और किस परिस्थिति में जारी होता है यह जानना जरूरी है।
दो तरह के होते हैं अपराध
दिल्ली हाई कोर्ट के एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि किस तरह के मामले कोर्ट में होते हैं और कब वॉरंट जारी होता है। दो तरह का ऑफेंस होता है कॉग्नेजेबल ऑफेंस (संज्ञेय अपराध) और नॉन कॉग्नेजेबल ऑफेंस (असंज्ञेय अपराध)। असंज्ञेय अपराध वो अपराध है जो मामूली किस्म के अपराध हैं। इस तरह के मामले में सीधे पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती। इस तरह के मामले में शिकायती को कोर्ट के सामने साक्ष्य रखने होते हैं और कोर्ट जब संतुष्ट हो जाए तो वह आरोपी के नाम समन जारी करता है।
सीधे कर सकती है गिरफ्तार संज्ञेय अपराध वह अपराध है, जो गंभीर किस्म के अपराध हैं। हत्या, हत्या का प्रयास, रेप, गैंगरेप, डकैती, लूट, देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे, अपहरण आदि से संबंधित मामले संज्ञेय अपराध हैं। पुलिस के सामने दी गई शिकायत पर पुलिस सीधे केस दर्ज करती है और आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। अगर किसी मामले में जांच अधिकारी को लगता है कि गंभीर अपराध के मामले में आरोपी से पूछताछ जरूरी है तो वह सीआरपीसी की धारा-160 के तहत नोटिस जारी करती है और फिर आरोपी का बयान लेती है। अगर आरोपी इस दौरान जांच अधिकारी के सामने पेश न हो तो पुलिस चाहे तो सीधे आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।
कोर्ट से वॉरंट सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता बताते हैं कि कई बार गंभीर मामले में भी पुलिस आरोपी को तब गिरफ्तार नहीं करती जब आरोपी छानबीन में सहयोग कर रहा हो या फिर गिरफ्तारी जरूरी नहीं हो। पुलिस जब ऐसे मामले में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करती है तो कोर्ट से उसके नाम समन जारी होता है। साथ ही कई बार जमानत पर रहने के दौरान कोर्ट में जब सुनवाई शुरू होती है तो आरोपी के नाम समन जारी होता है। अगर इसके बावजूद आरोपी पेश न हो, तो उसके नाम कोर्ट जमानती वॉरंट जारी कर देती है। इसके तहत जांच अधिकारी को यह आदेश दिया जाता है कि अमुक अमाउंट का जमानती वॉरंट जारी किया गया है और अमुक तारीख तक उस पर अमल करना है। इसके बाद पुलिस उक्त शख्स से बॉन्ड भरवाती है और उसे बताया जाता है कि अमुक तारीख को उसे कोर्ट में पेश होना है।