BNT Logo | Breaking News Today Logo

Latest Hindi News

  •   शुक्रवार, 10 जनवरी 2025 08:49 AM
  • 10.09°C नई दिल्ली, भारत

    Breaking News

    ख़ास खबरें
     
  1. भारतीय मूल के सांसद चंद्र आर्य ने की कनाडा के अगले प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी की घोषणा
  2. लॉस एंजिल्स में जंगल की आग का कहर, राष्ट्रपति बाइडेन की टीम तय करेगी अगला कदम
  3. हरियाणा में भाजपा सरकार साबित हुई विफल, निगम चुनाव हम सिंबल पर लड़ेंगे : भूपेंद्र सिंह हुड्डा
  4. झारखंड : ‘मईया सम्मान योजना’ का पैसा नहीं मिलने से नाराज महिलाओं ने किया प्रदर्शन
  5. चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद केजरीवाल का बयान, ‘कार्रवाई नहीं हुई तो लोकतंत्र की हो जाएगी हत्या’
  6. भाजपा सरकार ने जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ बना दिया : सुप्रिया श्रीनेत
  7. देश की तरक्की के लिए नहीं, स्वार्थ के लिए हुआ था इंडी गठबंधन : श्रवण कुमार
  8. जाट आरक्षण पर केजरीवाल के आरोपों पर बरसे भाजपा नेता, कहा- वह गिरगिट की तरह बदलते हैं रंग
  9. ‘इंडिया गठबंधन’ में पड़ी फूट, कांग्रेस का अंत नजदीक : मनीषा कायंदे
  10. दिल्ली विधानसभा चुनाव: भाजपा 300 यूनिट फ्री बिजली, लाडली बहना योजना समेत कर सकती है कई बड़े ऐलान
  11. दिल्ली चुनाव में इंडिया ब्लॉक की धार हुई बेकार, केजरीवाल ने कांग्रेस को बताया भाजपा का मोहरा
  12. बच्चा-बच्चा कह रहा केजरीवाल ने भ्रष्टाचार कर शीशमहल बनाया: प्रवेश वर्मा
  13. खतरनाक नहीं है एचएमपीवी, जागरूकता से पाया जा सकता है काबू : विशेषज्ञ
  14. दिल्ली की लड़ाई अब जाट आरक्षण पर आई, केजरीवाल ने कहा- पीएम और गृहमंत्री ने जाटों को धोखा दिया
  15. संदीप दीक्षित आज सीएम आतिशी और संजय सिंह के खिलाफ दर्ज कराएंगे मानहानि का केस

झारखंड में यहां हुआ था जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार, 125वीं बरसी पर लोगों का लगा जमावड़ा

bntonline.in Feedback
अपडेटेड 09 जनवरी 2025, 11:53 PM IST
झारखंड में यहां हुआ था जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार, 125वीं बरसी पर लोगों का लगा जमावड़ा
Read Time:5 Minute, 17 Second

बीएनटी न्यूज़

रांची। भारत की आजादी की लड़ाई का जो इतिहास हम किताबों में पढ़ते हैं, उसमें जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंग्रेजी हुकूमत का सबसे क्रूर और सबसे बड़ा नरसंहार बताया जाता है। लेकिन, सच तो यह है कि झारखंड की डोंबारी बुरू पहाड़ी पर अंग्रेजी सेना ने जलियांवाला बाग से भी बड़ा कत्लेआम किया था। गुरुवार को डोंबारी बुरू नरसंहार की 125वीं बरसी मनाई गई और इस मौके पर पहाड़ी पर बने शहीद स्तंभ पर सैकड़ों लोगों ने शीश नवाया।

वह 9 जनवरी 1900 की तारीख थी, जब इस पहाड़ी पर विद्रोही आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के नेतृत्व में सैकड़ों मुंडा आदिवासी जुटे थे। बिरसा मुंडा ने झारखंड के एक बड़े इलाके में अंग्रेजी राज के खात्मे और ‘अबुआ राज’ यानी अपना शासन का ऐलान कर दिया था। उनसे घबराई अंग्रेजी हुकूमत ने उस रोज पहाड़ी पर जुटे लोगों को घेरकर भीषण गोलीबारी की थी। मुंडा आदिवासियों ने तीर-धनुष से उनका जवाब दिया था। झारखंड में जनजातीय इतिहास के अध्येताओं और शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नरसंहार में चार सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, ”देश की आजादी और हक-अधिकार की लड़ाई में झारखंड के असंख्य वीर पुरखों ने अपना बलिदान दिया है। लेकिन, इतिहास के पन्नों में इन बलिदानों को कहीं भुला दिया गया। हमें साथ मिलकर अपने वीर पुरखों के बलिदानों को उचित स्थान दिलाना होगा। डोंबारी बुरु गोलीकांड की घटना ऐसी ही एक वीभत्स घटना है, जहां झारखंडी अस्मिता, हक-अधिकार और जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लोहा लेते हुए हमारे असंख्य वीर पुरखों ने बलिदान दिया था। हमारे वीर पुरखों के बलिदान को कभी भूलने नहीं दिया जाएगा। डोंबारी बुरु गोलीकांड के अमर वीर शहीदों की शहादत को शत-शत नमन।”

झारखंड सरकार के ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआरआई) की ओर से दो साल पहले कराए शोध में इस नरसंहार से जुड़े कई तथ्य सामने आए हैं। ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि डोंबारी बुरू में 12 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन आजादी के बाद बिहार सरकार की ओर से 1957 में प्रकाशित रिपोर्ट में मरने वालों की संख्या 200 बताई गई है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, ”अंग्रेजी सेना ने बिरसा मुंडा के दो साथियों हाथीराम मुंडा और सिंगराई मुंडा को पकड़कर जिंदा दफना दिया था। शहीदों में हाड़ी मुंडा, मझिया मुंडा, होपन मांझी, बैरू मांझी, अर्जुन मांझी, रूपू मांझी, चंपई मांझी, भाको मुर्मू, भुगलू मुर्मू, जीतराम बेदिया के नाम शोध में सामने आए हैं। इस इलाके में आदिवासियों की लोकगीतों में और उनकी स्मृति में गाड़े पत्थरों में इन नामों का जिक्र पाया गया है।”

शोध रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश कमिश्नर ए. फोर्ब्स, कर्नल वेस्टमोरलैंड और एचसी स्ट्रेटफील्ड ने कत्लेआम मचाने वाली फौज की अगुवाई की थी।

स्टेट्समैन के 25 जनवरी 1900 के अंक में छपी खबर के मुताबिक, ”इस लड़ाई में 400 लोग मारे गए थे। कहते हैं कि इस नरसंहार से डोंबारी पहाड़ी खून से रंग गई थी। लाशें बिछ गई थीं और शहीदों के खून से डोंबारी पहाड़ी के पास स्थित तजना नदी का पानी लाल हो गया था। इस युद्ध में अंग्रेज जीत तो गए, लेकिन विद्रोही बिरसा मुंडा उनके हाथ नहीं आए थे। बाद में 3 फरवरी 1900 की रात में चाईबासा के घने जंगलों से बिरसा मुंडा को पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे गहरी नींद में थे। उन्हें खूंटी के रास्ते रांची ले आया गया। यहां 9 जून की सुबह जेल में ही उन्होंने आखिरी सांस ली थी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *