
बीएनटी न्यूज़
तेहरान। ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई ने कहा कि कुछ ‘धमकाने वाली’ शक्तियों की तरफ से बातचीत पर जोर देने का मकसद मुद्दों को हल करना नहीं, बल्कि इस्लामी गणराज्य पर अपनी मांगें थोपना है।
खामेनेई के कार्यालय की ओर से जारी फुटेज के अनुसार, खामेनेई ने यह टिप्पणी शनिवार को तेहरान में सरकारी अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान की। उनका यह बयान ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत के लिए विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अपील का जवाब था।
शुक्रवार को फॉक्स बिजनेस नेटवर्क के साथ एक इंटरव्यू में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वह ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर बातचीत करना चाहते हैं और उन्होंने देश के नेतृत्व को एक पत्र भेजा है। हालांकि न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में ईरान के स्थायी मिशन ने शुक्रवार को कहा कि ईरान को अभी तक ट्रंप से कोई पत्र नहीं मिला है।
ईरानी नेता ने कहा, “उनकी बातचीत मुद्दों को सुलझाने के लिए नहीं, बल्कि दूसरे पक्ष पर अपना प्रभुत्व जमाने और अपनी इच्छाएं थोपने के लिए है।”
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, खामेनेई ने चेतावनी दी कि यदि दूसरा पक्ष बातचीत करने से इनकार करता है, तो वे शक्तियां हंगामा मचाएंगी और उस पर ‘बातचीत की मेज से खुद को दूर करने और उसे छोड़ने’ का आरोप लगाएंगी।
खामेनेई ने कहा कि ईरान का परमाणु मुद्दा इन शक्तियों का मुख्य मुद्दा नहीं है, वे नई उम्मीदें पाल रहे हैं जिन्हें ईरान निश्चित रूप से पूरा नहीं कर सकेगा।”
सुप्रीम लीडर ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी का हवाला देते हुए कहा कि तेहरान पर 2015 के परमाणु समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहने का आरोप है, लेकिन इन देशों ने पहले दिन से ही इसी समझौते के तहत अपने दायित्वों की उपेक्षा की।
खामेनेई ने कहा कि अमेरिका के समझौते से हटने के बाद, यूरोपीय देशों ने क्षतिपूर्ति का आश्वासन दिया, लेकिन अपने वादों को तोड़ दिया।
ईरान ने 2015 में विश्व शक्तियों के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे औपचारिक रूप से ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) के रूप में जाना जाता है। जेसीपीओए को ईरान परमाणु समझौता या ईरान डील के नाम से भी जाना जाता है। इसके तहत प्रतिबंधों में राहत और अन्य प्रावधानों के बदले में ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर राजी हुआ था।
इस समझौते को 14 जुलाई 2015 को वियना में ईरान, पी5+1 (संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य- चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका- प्लस जर्मनी) और यूरोपीय संघ के बीच अंतिम रूप दिया गया।
अमेरिका ने 2018 में समझौते से खुद को अलग कर लिया और ‘अधिकतम दबाव’ की नीति के तहत प्रतिबंध लगा दिए। प्रतिबंध ईरान के साथ व्यापार करने वाले सभी देशों और कंपनियों पर लागू हुए और इन्होंने तेहरान को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से अलग कर दिया, जिससे परमाणु समझौते के आर्थिक प्रावधान शून्य हो गए।
जेसीपीओए को फिर से लागू करने के लिए बातचीत अप्रैल 2021 में ऑस्ट्रिया के वियना में शुरू हुई। कई राउंड की वार्ता के बावजूद, अगस्त 2022 में अंतिम दौर की वार्ता के बाद से कोई महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल नहीं हुई है।