
चीन और भारत की सभ्यताओं के बीच पुल है ची श्यानलिन
बीजिंग, 6 अगस्त (बीएनटी न्यूज़)| इस 6 अगस्त को चीनी महान विद्वान ची श्यानलिन के जन्मदिन की 110वीं वर्षगांठ है। ची श्यानलिन 6 अगस्त, 1911 को चीन के शानतोंग प्रांत के ल्योछेंग शहर में पैदा हुए थे। वर्ष 1930 में उन्होंने चीन के शिन्हुआ विश्वविद्यालय में अध्ययन करना आरंभ किया। वर्ष 1935 में वे जर्मनी गये और वहां संस्कृत भाषा का अध्ययन किया। चीन वापस लौटने के बाद वर्ष 1946 में उन्होंने पेकिंग विश्वविद्यालय में पूर्वी भाषा विभाग की स्थापना की। इससे उन्होंने प्रोफेसर चिन केमू के साथ भारतीय अध्ययन पर शिक्षण और अनुसंधान कार्य किया। साहित्यिक जगत में भारतीय महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर और चीनी विद्वान ची श्यानलिन दोनों के नाम सबसे आगे आते हैं। वर्ष 2008 में ची श्यानलिन को भारतीय अध्यन में योगदान की वजह से पद्म भूषण पुरस्कार भी दिया गया। यह पहली बार है कि किसी चीनी को पद्म भूषण पुरस्कार मिला है। चीन की यात्रा करते समय भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाषण दिया और ची श्यानलिन के शब्दों से उद्धृत किया कि चीन और भारत दोनों सांस्कृतिक जगत एक दूसरे से शिक्षा और प्रभाव करते हैं। साथ ही वे आपसी संस्कृति के विकास को बढ़ावा देते हैं। यह इतिहास और वास्तविकता है। उन्होंने ची श्यानलिन को चीन के महान विद्वान और सबसे प्रसिद्ध समकालीन भारतीय विद्वान के रूप में भी वर्णित किया।
अपने जीवनभर में प्रकाशित कार्यों को ‘ची श्यानलिन का कार्य संग्रह’ के रूप में संग्रह किया गया। इस कार्य संग्रह में 24 खंड शामिल हैं। इन 24 खंडों में कार्य संग्रह में से अधिकांश भारत से संबंधित अध्ययन हैं। ची श्यानलिन द्वारा किये गये अध्ययन से चीनी लोग भारत और भारत की सभ्यता व संस्कृति में और ज्यादा अच्छे से आ सकते हैं।
ची श्यानलिन एक उत्कृष्ट शिक्षक भी थे। वर्ष 1936 से उन्होंने पेकिंग विश्वविद्यलय में चीन-भारत संबंध के इतिहास, बौद्ध धर्म का इतिहास और भारतीय अध्ययन समेत अधिक पाठ्यक्रम सिखाये थे। उनके छात्र में से अधिक लोग संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञ भी बने हैं।
भारतीय विद्वान ची श्यानलिन को तत्कालीन ह्वेन त्सांग मानते हैं। उनके मन में राजनीतिज्ञों और राजनयिकों की तरह विद्वान अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे चीन-भारत सांस्कृतिक आदान प्रदान इतिहास में एक मील के पत्थर की तरह महत्वपूर्ण है।
चीन और भारत के बीच दोस्ती का बीज हजारों सालों पहले ही बोया गया है। लगभग 2000 सालों से दोनों देशों की जनता इस बीज की सींचाई और पोषण करते रहे। इसीलिये वह अब एक ऐसा वृक्ष बन गया, जिस में दोनों देशों की संस्कृतियों और बुद्धियों का समावेश है, एक बोधिवृक्ष की तरह प्राचीन और सुन्दर दिख रहा है।
भारत-चीन मित्रता का विकास पुरे एशिया, यहां तक कि पूरे संसार की शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ची श्यानलिन ने दोनों सभ्यताओं के बीच आदान-प्रदान का आधार बनाया है। उम्मीद है कि भविष्य में चीन और भारत के युवा लोगो को सांस्कृतिक पानी और भाषिक खाद से इस बोधिवृक्ष को पोषण दे सकेंगे। इसीलिये इसकी भावी आकृति जरूर शानदार हो जाएगी।