
तिब्बत शांतिपूर्ण मुक्ति की 70वीं वर्षगांठ पर अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक संगोष्ठी आयोजित
बीजिंग, 21 मई (बीएनटी न्यूज़)| ‘तिब्बत शांतिपूर्ण मुक्ति की 70वीं वर्षगांठ की स्मृति में अंतरराष्ट्रीय अकादमिक संगोष्ठी’ 19 मई को पेइचिंग स्थित चीनी तिब्बत विद्या अनुसंधान केंद्र में आयोजित हुई। संगोष्ठी में उपस्थित विभिन्न प्रतिनिधियों ने चीनी राष्ट्र साझे समुदाय की विचारधारा, चीन में तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास, शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले और बाद की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति तथा पार्टी केंद्रीय समिति का रणनीतिक निर्णय, तिब्बती अध्ययन का नया पैटर्न आदि विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। चीनी तिब्बती संस्कृति संरक्षण और विकास संघ के उप प्रधान सथा ने कहा कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति चीनी जनता के मुक्ति कार्य और देश के एकीकरण कार्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो तिब्बत के विकास के इतिहास में एक युगांतकारी मोड़ है। पिछले 70 सालों में तिब्बत में सामाजिक व्यवस्था ने एक बड़ी छलांग लगाई है, लोगों के जीवन में बहुत सुधार हुआ है, और सांस्कृतिक व सामाजिक कार्यों में व्यापक प्रगति हासिल हुई है। तिब्बती लोगों के स्वतंत्र रूप से धार्मिक विश्वास को पूर्ण रूप से गारंटी दी जाती है। पारिस्थितिकी पर्यावरण को प्रभावी रूप से संरक्षण किया जाता है। वर्तमान में तिब्बत दुनिया में सबसे अच्छे पारिस्थितिक पर्यावरण क्षेत्र बन चुका है।
वहीं, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के उपाध्यक्ष चूखांग थूतंगखचू ने कहा कि तिब्बत में मठों का प्रभावी रूप से संरक्षण है। धार्मिक श्रद्धालुओं के धार्मिक विश्वास का सम्मान किया जाता है, भिक्षुओं-भिक्षुणियों की धार्मिक गतिविधियां सुव्यवस्थित रूप से आयोजित होती हैं। स्वतंत्र रूप से धार्मिक विश्वास की नीति तिब्बत में व्यापक तौर पर और सही रूप से कार्यान्वयन किया जा रहा है।
संगोष्ठी में अमेरिकी लेखक लोंग आनची ने कहा कि छिंगहाई-तिब्बत पठार पर विभिन्न जातियों की संस्कृतियां पूरी तरह से संरक्षित हैं और सांस्कृतिक सतत विकास साकार हुई। वहीं, पाकिस्तान के विद्वान एजाज अकरम ने कहा कि चीन ने घरेलू गरीबी को मिटाने के लिए काफी प्रयास किए हैं और बड़ी सफलता हासिल की है। आज ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल पड़ोसी देशों में शांतिपूर्ण विकास और गरीबी उन्मूलन की प्राप्ति के लिए व्यापक संभावनाएं प्रदान करती है।
बता दें कि मौजूदा संगोष्ठी चीनी मानवाधिकार अनुसंधान सोसाइटी, चीनी तिब्बती सांस्कृतिक संरक्षण और विकास संघ तथा चीनी तिब्बत विद्या अनुसंधान केंद्र ने संयुक्त रूप से आयोजित की।