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इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने जबरन ‘गुमशुदा’ मामलों को ‘पाकिस्तान पर कलंक’ करार दिया

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अपडेटेड 14 दिसंबर 2021, 2:25 PM IST
इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने जबरन ‘गुमशुदा’ मामलों को ‘पाकिस्तान पर कलंक’ करार दिया
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इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने जबरन ‘गुमशुदा’ मामलों को ‘पाकिस्तान पर कलंक’ करार दिया

नई दिल्ली, 14 दिसंबर (बीएनटी न्यूज़)| इस्लामाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह ने सोमवार को देश में जबरन ‘गुमशुदा’ या ‘गायब’ होने जैसी घटनाओं पर गंभीर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि देश के ‘प्रमुख अधिकारी’ अंतत: इस तरह के कृत्यों के लिए जवाबदेह हैं।

पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि संविधान के अनुच्छेद 6 (उच्च राजद्रोह) के तहत क्यों न उन पर आरोप लगाया जाए।

न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने यह टिप्पणी लापता पत्रकार मुदस्सर नारू के परिवार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दलील पेश कर रहे पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल खालिद जावेद खान के समक्ष की।

डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को हुई सुनवाई में, इस्लामाबाद हाईकोर्ट (आईएचसी) के मुख्य न्यायाधीश ने जबरन गायब होने को ‘पाकिस्तान पर एक कलंग (धब्बा)’ करार दिया और इस प्रकार के घटनाक्रम को ‘भ्रष्टाचार का सबसे खराब रूप’ कहा। उन्होंने कहा कि प्रमुख अधिकारी आजकल अपनी किताबों में इसके बारे में लिखकर इस प्रथा पर गर्व करते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने सवाल करते हुए कहा, “अगर स्टेट कहीं मौजूद होता, तो प्रभावित परिवार को अदालत का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता क्यों होती और हमें इसे प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाने की आवश्यकता क्यों होती?”

अगस्त 2018 में, नारू कघान घाटी में छुट्टी पर गया था, लेकिन तब से वह लापता है। उसे आखिरी बार काघन नदी के पास देखा गया था। शुरू में उसके परिवार और दोस्तों ने सोचा कि वह गलती से नदी में गिर गया होगा और डूब गया होगा, लेकिन उसका शव अभी तक नहीं मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि नारू ने आत्महत्या कर ली होगी। हालांकि इस संभावना को उनके परिवार द्वारा तुरंत खारिज कर दिया गया है। उसके परिजनों का कहना है कि उन्हें नारू को लेकर निराशा के कोई संकेत दिखाई नहीं दिए थे, जिनकी वजह से वह आत्महत्या कर सकता है।

उसके परिवार ने बाद में ‘अज्ञात व्यक्तियों’ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने की कोशिश की। जब पुलिस ने सहयोग करने से इनकार कर दिया, तो उन्हें नागरिक अधिकार संगठनों से संपर्क करने पर मजबूर होना पड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसके लापता होने के कुछ महीनों बाद, उसके एक दोस्त ने कहा कि उसने नारू को ‘लापता व्यक्तियों’ के लिए एक हिरासत केंद्र में देखा था।

मामले की पिछली सुनवाई में, यह दावा किया गया था कि नारू, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार रक्षक भी है, को लापता होने से पहले राष्ट्र संस्थानों के अधिकारियों से कथित तौर पर धमकियां मिल रही थीं।

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