‘पाकिस्तान ने कश्मीर केंद्रित आतंकियों को इस्लामिक स्टेट-खुरासान में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया’
नई दिल्ली, 22 जून (बीएनटी न्यूज़)| प्रतिबंधित कश्मीर केंद्रित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएस-के) संगठन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया था। एंटोनियो गिउस्तोजी द्वारा लिखित और 2018 में प्रकाशित द इस्लामिक स्टेट इन खुरासान से खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान में वास्तव में 2011 से 2017 के बीच बड़े और छोटे सैकड़ों जिहादी समूह संचालित थे, जिनमें से लश्कर, सेपा-ए सहाबा (एसएस), तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे बड़े संगठन थे। यह अपने विभिन्न अलग समूहों के साथ सक्रिय थे, जिनमें मुख्य रूप से जमात उल अहरार, जैश-ए मोहम्मद (जेईएम), लश्कर-ए झांगवी (एलईजे), हराकात-ए मुजाहिदीन और जुंदुल्लाह शामिल हैं।
इन सभी गुटों के अलकायदा से संबंध थे।
यह किताब आईएस-के सदस्यों, आईएस-के से जुड़े सलाहकारों और अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अन्य आतंकवादी समूहों के कई सदस्यों के साथ 121 साक्षात्कारों पर आधारित है। इसमें इस ओर भी इशारा किया गया है कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने सूचना एकत्र करने के उद्देश्यों के लिए आईएस-के में घुसपैठ करना शुरू कर दिया और शायद उसका मकसद इससे भी कहीं अधिक रहा था।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पीएचडी स्कॉलर गिउस्तोजी ने 2003-04 में अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के साथ काम किया था। उन्होंने अफगानिस्तान पर कई किताबें भी लिखी हैं और वर्तमान में किंग्स कॉलेज लंदन में गेस्ट प्रोफेसर हैं।
उनकी पुस्तक के अनुसार, मुल्ला बख्तावर समूह, टीटीपी के एक टुकड़े, जो 2016 में आईएस-के में शामिल हो गया था, को पाकिस्तानी अधिकारियों से समर्थन मिला था।
बख्तावर का समूह एकमात्र आईएस-के घटक समूह था, जिसके पास पाकिस्तानी सलाहकार थे और उसने पाकिस्तानी राष्ट्र का विरोध नहीं किया था। हालांकि बख्तवार के मारे जाने के बाद समूह को भंग कर दिया गया था।
किताब में दावा किया गया है कि पाकिस्तानी आईएसआई ने आईएस-के पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए हक्कानी नेटवर्क को एक अन्य प्रवेश बिंदु के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की, जिससे नेटवर्क से आईएस-के में दलबदल को बढ़ावा मिला।
2017 के वसंत में सेराजुद्दीन हक्कानी अजीजुल्लाह हक्कानी समूह के अंदर अपने पूर्व कमांडरों का इस्तेमाल आईएस-के को पाकिस्तान और चीन में अपने जिहाद उद्देश्यों को लेकर प्रभावित करने के लिए एक लॉबी के रूप में कर रहा था।
इसके अलावा, लश्कर के कुछ सदस्यों को पाकिस्तानी अधिकारियों ने उनके लिए मुखबिर के रूप में कार्य करने के लिए आईएस-के में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया।
लेखक ने दावा किया है कि आईएस-के के शुरुआत में लश्कर के साथ खराब या यहां तक कि कोई संबंध ही नहीं थे। सूत्रों और साक्षात्कारों का हवाला देते हुए, किताब से पता चला है कि ऐसा इसलिए था, क्योंकि आईएस-के को पता था कि लश्कर आईएसआई का निजी समूह है। नतीजतन, वह उनके साथ संबंध नहीं रखना चाहता था।
लेखक ने दावा किया है कि लश्कर को आईएस-के सदस्यों ने पाकिस्तान सरकार के विशेष प्रतिनिधि के रूप में वर्णित किया। लेकिन आईएस-के नेतृत्व ने लश्कर को शामिल होने के लिए या कम से कम सहयोग करने के लिए मनाने को लेकर उसके साथ खुली बातचीत की।
आईएस-के ने लश्कर को आश्वस्त करने की कोशिश की कि पाकिस्तान में उसका आगमन उनके हितों को चुनौती देने के लिए नहीं है। लेखक द्वारा किए गए साक्षात्कार के अनुसार, सऊदी अरब और कतर में लश्कर के दानदाताओं ने इसी तरह आईएस-के के साथ सहयोग करने के लिए उस पर कुछ दबाव डाला।
किसी तरह का सहयोग वास्तव में 2016 में शुरू हुआ था, जिसमें लश्कर ने कुछ प्रशिक्षकों और सलाहकारों को आईएस-के में भेजा था।
लश्कर-ए-तैयबा में, सदस्यों के केवल एक छोटे से अल्पसंख्यक शिया विरोधी विचार रखते हैं और इनमें से कुछ पहले ही आईएस-के में शामिल हो गए थे, इससे पहले कि दोनों संगठनों के बीच संबंधों में सुधार हुआ, यह सब घटनाक्रम हो चुका था।
अक्टूबर 2016 तक, 167 लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य सीरिया और इराक में आईएस के पास गए थे और लगभग 100 अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आईएस-के में शामिल हो गए थे।
सीरियाई संघर्ष ने अल कायदा के लिए अपने अभियानों को फिर से शुरू करने का एक सुनहरा अवसर प्रस्तुत किया और समर्थन की पेशकश करने वाले पहले दलों में से एक लश्कर ही था।
लेखक ने अपनी किताब के माध्यम से बताया है कि 18 नवंबर 2013 को लश्कर-ए-तैयबा की टुकड़ी ने अल कायदा से अल-बगदादी में अपनी वफादारी को बदल लिया।
किताब में यह भी दावा किया गया है कि सैकड़ों स्वयंसेवक अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सीरिया और इराक भी गए।
नई दिल्ली, 22 जून (बीएनटी न्यूज़)| प्रतिबंधित कश्मीर केंद्रित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएस-के) संगठन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया था। एंटोनियो गिउस्तोजी द्वारा लिखित और 2018 में प्रकाशित द इस्लामिक स्टेट इन खुरासान से खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान में वास्तव में 2011 से 2017 के बीच बड़े और छोटे सैकड़ों जिहादी समूह संचालित थे, जिनमें से लश्कर, सेपा-ए सहाबा (एसएस), तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे बड़े संगठन थे। यह अपने विभिन्न अलग समूहों के साथ सक्रिय थे, जिनमें मुख्य रूप से जमात उल अहरार, जैश-ए मोहम्मद (जेईएम), लश्कर-ए झांगवी (एलईजे), हराकात-ए मुजाहिदीन और जुंदुल्लाह शामिल हैं।
इन सभी गुटों के अलकायदा से संबंध थे।
यह किताब आईएस-के सदस्यों, आईएस-के से जुड़े सलाहकारों और अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अन्य आतंकवादी समूहों के कई सदस्यों के साथ 121 साक्षात्कारों पर आधारित है। इसमें इस ओर भी इशारा किया गया है कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने सूचना एकत्र करने के उद्देश्यों के लिए आईएस-के में घुसपैठ करना शुरू कर दिया और शायद उसका मकसद इससे भी कहीं अधिक रहा था।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पीएचडी स्कॉलर गिउस्तोजी ने 2003-04 में अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के साथ काम किया था। उन्होंने अफगानिस्तान पर कई किताबें भी लिखी हैं और वर्तमान में किंग्स कॉलेज लंदन में गेस्ट प्रोफेसर हैं।
उनकी पुस्तक के अनुसार, मुल्ला बख्तावर समूह, टीटीपी के एक टुकड़े, जो 2016 में आईएस-के में शामिल हो गया था, को पाकिस्तानी अधिकारियों से समर्थन मिला था।
बख्तावर का समूह एकमात्र आईएस-के घटक समूह था, जिसके पास पाकिस्तानी सलाहकार थे और उसने पाकिस्तानी राष्ट्र का विरोध नहीं किया था। हालांकि बख्तवार के मारे जाने के बाद समूह को भंग कर दिया गया था।
किताब में दावा किया गया है कि पाकिस्तानी आईएसआई ने आईएस-के पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए हक्कानी नेटवर्क को एक अन्य प्रवेश बिंदु के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की, जिससे नेटवर्क से आईएस-के में दलबदल को बढ़ावा मिला।
2017 के वसंत में सेराजुद्दीन हक्कानी अजीजुल्लाह हक्कानी समूह के अंदर अपने पूर्व कमांडरों का इस्तेमाल आईएस-के को पाकिस्तान और चीन में अपने जिहाद उद्देश्यों को लेकर प्रभावित करने के लिए एक लॉबी के रूप में कर रहा था।
इसके अलावा, लश्कर के कुछ सदस्यों को पाकिस्तानी अधिकारियों ने उनके लिए मुखबिर के रूप में कार्य करने के लिए आईएस-के में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया।
लेखक ने दावा किया है कि आईएस-के के शुरुआत में लश्कर के साथ खराब या यहां तक कि कोई संबंध ही नहीं थे। सूत्रों और साक्षात्कारों का हवाला देते हुए, किताब से पता चला है कि ऐसा इसलिए था, क्योंकि आईएस-के को पता था कि लश्कर आईएसआई का निजी समूह है। नतीजतन, वह उनके साथ संबंध नहीं रखना चाहता था।
लेखक ने दावा किया है कि लश्कर को आईएस-के सदस्यों ने पाकिस्तान सरकार के विशेष प्रतिनिधि के रूप में वर्णित किया। लेकिन आईएस-के नेतृत्व ने लश्कर को शामिल होने के लिए या कम से कम सहयोग करने के लिए मनाने को लेकर उसके साथ खुली बातचीत की।
आईएस-के ने लश्कर को आश्वस्त करने की कोशिश की कि पाकिस्तान में उसका आगमन उनके हितों को चुनौती देने के लिए नहीं है। लेखक द्वारा किए गए साक्षात्कार के अनुसार, सऊदी अरब और कतर में लश्कर के दानदाताओं ने इसी तरह आईएस-के के साथ सहयोग करने के लिए उस पर कुछ दबाव डाला।
किसी तरह का सहयोग वास्तव में 2016 में शुरू हुआ था, जिसमें लश्कर ने कुछ प्रशिक्षकों और सलाहकारों को आईएस-के में भेजा था।
लश्कर-ए-तैयबा में, सदस्यों के केवल एक छोटे से अल्पसंख्यक शिया विरोधी विचार रखते हैं और इनमें से कुछ पहले ही आईएस-के में शामिल हो गए थे, इससे पहले कि दोनों संगठनों के बीच संबंधों में सुधार हुआ, यह सब घटनाक्रम हो चुका था।
अक्टूबर 2016 तक, 167 लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य सीरिया और इराक में आईएस के पास गए थे और लगभग 100 अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आईएस-के में शामिल हो गए थे।
सीरियाई संघर्ष ने अल कायदा के लिए अपने अभियानों को फिर से शुरू करने का एक सुनहरा अवसर प्रस्तुत किया और समर्थन की पेशकश करने वाले पहले दलों में से एक लश्कर ही था।
लेखक ने अपनी किताब के माध्यम से बताया है कि 18 नवंबर 2013 को लश्कर-ए-तैयबा की टुकड़ी ने अल कायदा से अल-बगदादी में अपनी वफादारी को बदल लिया।
किताब में यह भी दावा किया गया है कि सैकड़ों स्वयंसेवक अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सीरिया और इराक भी गए।