
पश्तून नेता अली वजीर को नफरत फैलाने वाले भाषण मामले में मिली जमानत
नई दिल्ली, 01 दिसंबर (बीएनटी न्यूज़)| पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्तून तहफुज मूवमेंट (पीटीएम) के नेता और एमएनए अली वजीर को नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में जमानत दे दी। वजीरिस्तान से नेशनल असेंबली के सदस्य मोहसिन डावर ने एक ट्वीट में कहा, “सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस तारिक मसूद, जमाल मंडोखेल और अमीनुद्दीन खान की अध्यक्षता वाली बेंच ने अली वजीर (50) को जमानत दे दी है। अली 11 महीने से अधिक समय से जेल में थे। लंबा समय जरूर लगा, लेकिन खुशी है कि अली जमानत पर बाहर होंगे।”
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति सरदार तारिक मसूद की अगुवाई में शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने विधायक की जमानत मामले की सुनवाई की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीटीएम नेता को 16 दिसंबर, 2020 को कराची में एक रैली को संबोधित करते हुए राज्य संस्थानों के खिलाफ नफरत वाला भाषण देने के आरोप में पेशावर में गिरफ्तार किया गया था।
नेशनल असेंबली में अपनी सीट दक्षिण वजीरिस्तान से जीतने वाले वजीर ने कहा था कि उन्हें जानकारी नहीं है कि उन्हें हिरासत में क्यों लिया गया।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की कि मामले में सह-आरोपी को जमानत दी गई थी और उसे चुनौती नहीं दी गई थी। इसलिए अली वजीर को जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है।
सिंध के महाअभियोजक ने शीर्ष अदालत के समक्ष कहा कि अली वजीर के खिलाफ भी इसी तरह के मामले थे। न्यायमूर्ति सरदार तारिक मसूद ने पूछा, “क्या अन्य मामलों में जमानत दी गई है?” इस पर महाअभियोजक ने जवाब दिया कि एमएनए को किसी अन्य मामले में जमानत नहीं दी गई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस तारिक ने पूछा, “अली वजीर पर आतंकवाद के तहत आरोप नहीं लगाया गया है, तब यह धारा क्यों जोड़ी गई?”
न्यायमूर्ति अमीनुद्दीन खान ने कहा कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि उनके भाषण के अनुवाद के बाद मामला दर्ज किया गया था।
न्यायमूर्ति मंडोखेल ने कहा कि अली वजीर के खिलाफ आरोपों पर संसद में बहस होनी चाहिए। अगर एमएनए को आपत्ति है, तो उन्हें अपनी बात रखनी चाहिए। उन्होंने आगे पूछा कि “हमारे अपने नागरिकों को अलग-थलग क्यों किया जा रहा है?”