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क्या है पश्चिम बंगाल SSC घोटाला?

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अपडेटेड 27 सितंबर 2023, 12:31 PM IST
क्या है पश्चिम बंगाल SSC घोटाला?
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गिरफ्तार मंत्री पार्थ चटर्जी को कोर्ट में किया गया पेश, अर्पिता मुखर्जी हिरासत में

पश्चिम बंगाल में एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) के माध्यम से शिक्षकों की भर्ती घोटाले में मंत्री पार्थ चटर्जी, शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र सहित शिक्षा विभाग के कई अधिकारियों के नाम सामने आये हैं।

पश्चिम बंगाल में एसएससी भर्ती घोटाले में संलिप्तता के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उद्योग मंत्री, पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार कर लिया है। पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के फ्लैट की तलाशी कर शुक्रवार को ईडी ने रु20 करोड़ से अधिक रुपये जब्त किये थे। लगभग रु50 लाख का सोना, जमीन का कागजात और कई अवैध संपत्तियां जब्त की गई हैं। बता दें कि एसएससी भर्ती घोटाले के आरोप के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश अभिजीत गांगुली ने इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिये थे। सीबीआई उनसे और वर्तमान के शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र अधिकारी से पूछताछ भी कर चुकी थी, लेकिन जब इस मामले में आर्थिक लेनदेन का मामला सामने आया, तो प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले की जांच अपने हाथों में लिया है।

प्रवर्तन निदेशालय के इस मामले के हाथ अपने हाथ में लेने का बाद इस मामले में राजनीतिक भूचाल आ गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने शुक्रवार को कोलकाता में पार्थ चटर्जी के करीबी माने जाने वाले 13 ठिकानों पर छापेमारी की और अभिनेत्री अर्पिता चटर्जी के घर से करोड़ों रुपये बरामद किये गये हैं।

साल 2018 में शिक्षकों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार का लगा था आरोप

मामले की शुरुआत साल 2018 में हुई थी। उस समय पार्थ चटर्जी ममता बनर्जी सरकार के शिक्षा मंत्री थे। तब 1002 ऐसे लोगों की नियुक्ति हुई है जिन्होंने या तो परीक्षा ही नहीं दी या पास ही नहीं हुए। इस मामले के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पूरे मामले की जांच के लिए पूर्व न्यायाधीश रंजीत कुमार बाग के नेतृत्व में जांच कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में पार्थ चटर्जी सहित एसएससी के चेयरमैन सौमित्र सरकार, मध्य शिक्षा परिषद के चेयरमैन कल्याणमय गांगुली, एसएससी के सचिव अशोक कुमार साहा, पूर्व चेयरमैन सुब्रत भट्टाचार्य, आंचलिक चेयरमैन शर्मिला मित्रा, सुभोजित चटर्जी, शेख सिराजुद्दीन, महुआ विश्वास, चैताली भट्टाचार्य और बोर्ड के टेक्निकल ऑफिसर राजेश लायक को इस पूरे भ्रष्टाचार के लिए कमेटी ने जिम्मेवार ठहराया गया था और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। उस कमेटी में राज्य के शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र अधिकारी का भी नाम था, लेकिन इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।

मंत्री की बेटी अंकिता अधिकारी को नौकरी से किया गया था बर्खास्त

शिक्षक नियुक्ति में धांधली के आरोप में बबीता सरकार ने कोर्ट से फरियाद की और आरोप लगाया कि कम नंबर आने के बावजूद शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र अधिकारी की बेटी अंकिता अधिकारी को नौकरी दे दी गई। न्यायाधीश अभिजीत गांगुली की कोर्ट ने तत्काल फरियाद पर कार्रवाई की और पूरे मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया और मंत्री परेश चंद्र अधिकारी की बेटी अंकिता अधिकारी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और उन्हें उनका पूरा वेतन लौटाने का निर्दश दिया और इस मामले का जांच करने का आदेश दिया। ईडी ने परेश अधिकारी के घर पर छापेमारी की थी। इस मामले में पार्थ चटर्जी के पूर्व सहायक सुकांत आचार्य भी रडार पर हैं। उनसे और उस समय तात्कालीन सचिव मनीष जैन से भी पूछताछ को चुकी है। इस तरह से बंगाल के शिक्षा विभाग से जुड़ा हर अधिकारी और मंत्री इस मामले में ईडी के निशाने पर है। हालांकि टीएमसी ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया है और कहा है कि जिन्होंने यह किया है। वे ही इसका जवाब देंगे।

25 अप्रैल और 18 मई 2022 को सीबीआई ने पार्थ चटर्जी से पूछताछ की। वह 2014 से 2021 तक शिक्षा मंत्री थे। पूछताछ के बाद सीबीआई ने इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत दर्ज कराई।

मोनालिसा दास भी ED के निशाने पर

पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले की आंच का दायरा बढ़ता जा रहा है। बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी की गिरफ्तारी के बाद एक यूनिवर्सिटी प्रोफेसर मोनालिसा दास भी ईडी के निशाने पर आ गई हैं। इस भर्ती घाटाला मामले में कई और लोगों से पूछताछ हो रही है.

क्या है ममता के बयान का मतलब?

राजनीतिक घोटालों की जांच और उसकी आंच दोषियों तक पहुंचते-पहुंचते दशकों बीत जाने की परंपरा के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ताजा बयान थोड़ा अलग लगता है। उन्होंने कहा कि अगर भ्रष्टाचार का दोष साबित होने पर पार्थ चटर्जी को आजीवन कारावास की सजा हो जाए तो भी फर्क नहीं। हैरत की बात है कि कल तक केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ आग उगलने वाली ममता बनर्जी अचानक त्वरित न्याय की मांग कर रही हैं। ममता अपने ही निकटतम मंत्री के लिए झटपट सुनवाई और फटाफट दंड की बात कह रही हैं तो इसे सामान्य तो नहीं ही समझा जाएगा।

क्यों लालची व गैर-जिम्मेदार अफसरो की तैनाती देश मे व्यवस्था को ठीक रखने वाले संस्थानो के पदो पर होती है? क्यों सरकार व शासन के बदलने के बाद भी जनता के जीवन मे कोई बदलाव क्यों नहीं आता? क्या सरकारी तंत्र, कानून सब ने मिलकर जनता को राम भरोसे नहीं छोड़ दिया है? जरा सोचिए, फैसला आप खुद कीजिये।

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