
केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) ने यूपी के औद्योगिक शहर कानपुर में एक और बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है। रोटोमैक समूह के लोन घोटाले को देखकर बड़े-बड़े घोटालों की जांच करने वाली सीबीआई हैरत में पड़ गई है। जांच में पता चला है कि रु26,143 करोड़ का कारोबार रोटोमैक ने केवल चार कंपनियों के साथ किया। इन कंपनियों का पता भी एक ही है, जो 1,500 वर्गफीट का एक हॉल है। ताज्जुब यह कि इन चारों कंपनियों में कर्मचारी भी एक ही है। कंपनी का सीईओ भी है।
बैंकों ने इन ‘हवाई’ कंपनियों के साथ हो रहे अरबों के कारोबार के आधार पर रोटोमैक को रु2,100 करोड़ कालोन भी दे डाला। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि निदेशकों विक्रम कोठारी (मौत हो चुकी है) और राहुल कोठारी ने अन्य लोगों के साथ अपनी बैलेंसशीट के साथ फर्जीवाड़ा करके बैंक को धोखा दिया और इन्होंने बेईमानी से लोन ले लिया। मंगलवार 20 सितम्बर 2022 को पंजाब नेशनल बैंक की शिकायत पर सीबीआई ने रोटोमैक ग्लोबल के निदेशक राहुल कोठारी, साधना कोठारी और अज्ञात अफसरों पर रु93 करोड़ की धोखाधड़ी का नया मामला दर्ज कराया। जांच में राज खुल रहे हैं।
बंज ग्रुप से बेच रही थी माल
सीबीआई के मुताबिक, रोटोमैक समूह से कारोबार करने वाली चारों कंपनियों का मालिक रोटोमैक के सीईओ राजीव कामदार का भाई प्रेमल प्रफुल्ल कामदार है। रोटोमैक ने कागजों में उत्पादों का निर्यात इन्ही चार कंपनियों को किया। ये सभी कंपनियां बंज ग्रुप से रोटोमैक को ही माल बेच रही थीं। यानी माल बनाने वाली कंपनी ही अपना माल खरीद रही थी।
एक कर्मचारी ने कैसे संभाला इतना बड़ा कारोबार
सीबीआई की जांच में पर्दाफाश हुआ कि रु26 हजार करोड़ का कारोबार दिखाने वाली चारों कंपनियों में मात्र एक कर्मचारी था- जिसका नाम था प्रेमल प्रफुल्ल कामदार। वह 1,500 वर्गफुट के एक कमरे में बैठकर बंदरगाह से लेकर लोडिंग-अनलोडिंग, बिलिंग, एकाउंट, डिलीवरी तक सारे काम कर रहा था। सीबीआई ने भी हैरानी जताई है कि आखिर ऐसी हवाई कंपनी से कारोबार के आधार पर बैंकों ने रु2,100 करोड़ की लोन लिमिट कैसे दे दी। यही वजह है कि बैंक अफसरों को भी संदेह के दायरे में रखा गया है।
घोटाले की शुरूआत
सीबीआई अधिकारियों ने कहा कि रोटोमैक समूह की कंपनियां पहले से ही सात बैंकों के एक संघ से रु3,695 करोड़ और बैंक ऑफ इंडिया से रु806 करोड़ के लोन घोटाले में जांच का सामना कर रही है। 2013 में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स द्वारा क्रेडिट सुविधाओं को मंजूरी दी गई थी, जिसका अब पीएनबी में विलय हो चुका है। 30 जून 2016 को लोन अकाउंट को नॉन- परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित कर दिया गया था और बाद में इसे धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत किया गया। रोटोमैक का बैंको से लोन मंजूर कराने का तरीका भी अजीब था। वह कभी गेंहू खरीदने के नाम पर लोन लेता था तो कभी एक्सपोर्ट ऑर्डर को पूरा करने के नाम पर लोन लेता था. जबकि पैसा कही और लगाया जाता था।
लोन देने वाले बैंकों में बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स है। सीबीआई के मुताबिक रोटोमैक कंपनी ने सात बैंको से 2008 से लोन लेना शुरू किया था लेकिन वक्त के साथ लोन कम होने की जगह बढ़ता ही गया।
सलमान समेत ये 4 सेलिब्रिटी करते थे विक्रम कोठारी के लिए एड
एक वक्त था जब रोटोमैक का विज्ञापन बॉलीवुड की मशहूर सेलिब्रेटी करते थे। बॉलीवुड एक्टर सलमान खान ने 2010-2011 में रोटोमैक के लिए एड किया, जिसकी टैग लाइन थी ‘लिखो इंडिया की नई पहचान’। पंकज त्रिपाठी ने भी रोटोमैक का विज्ञापन किया है। मशहूर लेखकर जावेद अख्तर भी रोटोमैक का एड करते दिखे। जावेद अख्तर एड में बोलते हैं ‘क्योंकि फाइटर हमेशा जीतता है’। रोटोमैक का सबसे मशहूर रवीना टंडन का एड था। इस विज्ञापन की टैग लाइन ‘लिखते-लिखते लव हो जाए’ लोगों की जुबान पर चढ़ गया था। इस विज्ञापन में कुणाल केमू बतौर बाल कलाकार दिखे थे।
इस तरह के घोटालों से एक तरफ जहां राजस्व की घोर हानि होती है वहीं दूसरी तरफ लोगों का विश्वास कानून व्यवस्था और तंत्र पर shake होता है। लोगों में यह भावना घर कर रही है कि घोटालेबाज़ों का कुछ नहीं होगा। यह एक आम धारणा है कि ये घोटालेबाज अपनी money power एवं contacts का इस्तेमाल कर बच निकलेंगे। लोगों की इस धारणा को तोड़ना होगा। Example set करने होंगे।
घोटालेबाज़ों का राजनैतिक गठजोड़ भी एक बड़ी समस्या है। निष्पक्ष जांच नहीं हो पाती। Investigating Agencies पर political pressure डाला जाता है। कानून की दृष्टि में सभी बराबर हैं। लेकिन क्या हकीकत में ऐसा है। देश में appropriate legal remedy लेना सबसे महँगा है। घोटालेबाज़ों को कानून का कोई भय नहीं है। क़ानूनों को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए। जांच time-bound manner में की जानी चाहिए। संपत्तीयां जब्त कर नीलामी होनी चहिएI Financial crime के मामले लंबे समय तक अदालतों में लंबित नहीं रहने चाहिए। इनका fast-track कोर्ट में priority से निपटारा होना चाहिए। जरा सोचिए! फैसला आप खुद कीजिये