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दाग़दार होता डाॅक्टरी पेशा

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अपडेटेड 10 फ़रवरी 2020, 12:01 PM IST
दाग़दार होता डाॅक्टरी पेशा
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सरकारी अस्पतालों में खुल्लम खुल्ला धांधली

औजार जंग खा रहें हैं, दलालों का बोल बाला

एक जमाना था जब डाक्टरी पेशे को बहुत Pious Profession कहा जाता था। डाॅक्टरों को भगवान के बाद दूसरा दर्जा दिया जाता था। पिछले कुछ सालों में इसमें बहुत change आया है। जहाँ पिछले दिनों में हुये खुलासों से यह profession दागदार हुआ है। वहीं डाक्टरस् में पैसा कमाने की होड़ बढ़ी है। आज प्राईवेट क्लीनिक एवं हाॅस्पीटल five star hotels की सुविधा से लैस हैं, जो आम आदमी के पहुँच के बाहर है। डाॅक्टर बड़ी कम्पनियों की दवाईयाँ recommend करते है। जबकि generic में वह बहुत सस्ती है। बड़ी कम्पनियाँ डाॅक्टर को टीवी, प्रफीज, कार, विदेश यात्रा, आदि देकर लुभाती है। यह भी देखने में आया है की आप छोटी सी बिमारी के बारे में डाक्टर से सलाह लेने जाओ तो वह 5 – 7 test लिख देगा। और वो टेस्ट भी वहाँ कराने होगें जहाँ वह recommend करेगा। जब यह पूछो कि डाॅक्टर साहब ये टेस्ट क्यों करवाये थे तो वह कहता है कि मैंने यू ही precaution के लिए करा लिये। commission सेट है। यह एक आम चलन है। एक दो exceptions हो सकते है। जब आप किसी सरकारी अस्पताल में दाखिल होते हैं, तो मुमकिन है कि आपका सामना किसी tout से ही जायें तो स्ट्रेचर को अस्पताल के सम्बंधित विभाग में खींच कर ले जाने के लिए भी आप से पैसे वसूले। शौचालयों से आती दुर्गन्ध, गन्दगी से भरे वार्ड, टपकती नालियाँ, कूड़े से उठती बदबू, इधर उधर घुमते कुत्ते एवं दूसरे जानवर, सरकारी अस्पतालों का एक आम नजारा है। सरकारी अस्पतालों में जीवनदायनी दवाईयों की कमी है। औजार और उपकरण पुराने एवं बेकार हो चुके हैं। दवाईयों एवं equipments की खरीद में भारी घोटाला है। खरीद कागजों पर ही रह जाती है। पैसा payment हो जाता है। हिस्सा सभी सभी सम्बंध्ति अध्किारियों के पास पहुँचता है। ताकि कोई मुँह न खोले वरना इतना बड़ा घोटाला सरेआम हो रहा है और सरकार के कान पर जू नहीं रेंग रही है। क्योंकि बहुत से सम्बन्धित सफेद पोशों के दामन काले है। जो Material Purchase होता है उसका बिल तो पूरा आता है लेकिन Material की delivery purchase deptt. के अधिकारियों की मिली भगत से आधे-अधूरे माल की होती है। फिर उस कम आए माल की विभिन्न विभागों में फर्जी तौर पर Issue दिखाकर Stock tally कर लिया जाता है अगर इसकी appropriate Audit कराकर backward checking की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि जाँच निष्पक्ष Agency से गहराई से कराई जाए। केवल खाना पूर्ति करने के लिए नहीं तभी असली मुजरिम बेनकाब हो पाँएगे। कारण चाहे जो भी कुछ हो लोग इस बात को मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में डाक्टरी Profession का standard गिरा है। लोग अब इस Profession को मानव जाति की सेवा करने के लिए नहीं बल्कि पैसा कमाने के लिए चुनते है। ऐसा हो भी क्यों ना जब डाक्टरी पढ़ने के लिए Admission के वक्त लोग 10 से 15 लाख रूपये डोनेशन देते हैं, तो डाॅक्टर बनने के बाद अगर वह लोगों का शोषण करके पैसा नहीं कमायेंगे तो क्या करेंगे। इसके अलावा जो डाॅक्टरस् Competition पास कर merit के आधर पर आते हैं और जो साधरण परिवार से संबंध् रखते हैं उनमें अंसतोष बढ़ा हैं क्योंकि जब वो उन डाॅक्टरस् को देखते है जो सपफेदपोशों का नकाब पहने पैसा बना रहे हैं और ऐश कर रहें है तो वो भी इस और Tempted होते है। लोगों का जमीर मानों मर ही गया है। अगर आप की जेब में पैसा नहीं है, तो आपको सही चिकित्सा नहीं मिल सकती है। चाहे आप बिमार हों, दर्द से तड़प रहे हो या जिन्दगी और मौत के बीच में झूल रहे हों। आपका treatment तभी होगा जब आप पैसा जमा करायेंगे। सरकार ने जो सरकारी अस्पताल खोल रखे है। जहाँ पर यह दावा किया जाता है कि मरीजों का इलाज मुफ्रत किया जाता है, यह मुंगेरी लाल के हसीन सपनों जैसी बात है। वहां पर जो दवाईया मरीजों को मुफ्रत मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती डाक्टर उन दवाईयों का परचा लिख देते है। और कहते हैं कि बाजार से खरीद लेना और जो अस्पताल की दवाईयां होती है वह सम्बन्ध्ति अधिकारी बेचकर खा जाते हैं। इसके अलावा यह भी देखने में आया है कि Purchase Department और doctors के बीच Co-ordination की कमी रहती है। जो दवाईयाँ नहीं चाहिए वो खरीद ली जाती है और जिन दवाईयों की आवश्यकता होती है वो नदारद।
बच्चों के इलाज के लिए राजधनी में यूं तो प्राइवेट सेक्टर में एक से बढ़ कर एक इन्तजाम हैं लेकिन सरकारी अस्पताल इस नजरिए से खोले जाते हैं कि आम आदमी को यहाँ विशेषज्ञ डाॅक्टरों से सेवाए महज नाम मात्रा की फीस अदा करने पर मिल जाएगी।
यह सचमुच अफसोसनाक है कि सरकारी प्रतिष्ठित अस्पतालों में मंहगे उपकरण जंग खा रहे हैं। मरीजों को बाहर से तमाम तरह के टेस्ट कराने पडते हैं। सरकारी अस्पतालों में जरूरी टेस्ट न होने की वजह से इनमें दलालों का दखल भी काफी बढ़ गया है। ऐसे लोग अस्पताल के अन्दर घूमते रहते है और जरूरतमन्द लोगों को कम पैसे का लालच देकर अपने साथ चलने के लिए तैयार करते हैं। इसके लिए बाकायदा सरकारी अस्पतालों के बाहर इन लैबों की गाडियाँ खड़ी रहती है। इस काम में कई डाॅक्टर भी कमीशन के लालच में इन दलालों की मदद करते है। और मरीजों को सम्बधित टेस्टिंग लैब में भेजते है।

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