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गरीब नहीं होंगे कभी अमीर

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अपडेटेड 04 अक्टूबर 2020, 10:39 PM IST
गरीब नहीं होंगे कभी अमीर
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BNT की खास रिपोर्ट:

नेताओं को चाहिए गरीबों की जमात, यही तो हैं इनके वोट बैंक!

हर व्यक्ति इस बात का सपना देखता है की वो भी अमीर बने। उसके पास भी सभी भौतिक सुख सुविधाएं हों। मेरे मन मे यह प्रश्न आया कि क्या गरीब को भी अमीर बनने के सपने देखने का हक़ है या वो भी कभी अमीर बन सकता है या नहीं। अगर हम अपवाद छोड़ दें तो न तो गरीब कभी अमीर बन सकता है और न ही गरीब को अमीर बनने के सपने देखने का हक़ है। मेरी बात सुनने में कड़वी जरूर है लेकिन है कटु सत्य। यह बात मैं पूरी ज़िम्मेदारी और तथ्यों के आधार पर कह रहा हूँ।

आज गरीब दो जून की रोटी के जुगाड़ में उलझा है। उसे शराब पीने की लत लगी है। बीमारी ने उसे घेरा है। कर्जा उसके सर पर है। रोजगार छिन गया है। ऐसे में सपने देखने की फुर्सत कहाँ है साब। हिम्मत जवाब देने लगी है। अब तो आस भी टूटने लगी है। भीख मांगने की नौबत आ गई है। आज भारत विश्व के 117 देशो की लिस्ट मे 103 नंबर पर है जहां पर गरीबी व भूख-मरी हैI

हाँ एक बात जरूर है। ऐसे में सपनों का व्यापार खूब हो रहा है। सपने अमीर बनने के नहीं, बल्कि दो जून रोटी मोहया कराने के। जो नेता दो जून रोटी मोहया कराने का आश्वासन दे देता है, ये ठगे से गरीब लोग उसी के पीछे विश्वास कर चल देते हैं। इनकी आशाएँ और जरूरतें टिकी हैं सिर्फ दो जून की रोटी पर।

ये मेरे भारत को किसकी नज़र लग गई। हम तो विकास की बात करते थे। विश्व गुरु बनने की बात करते थे लेकिन हम 80 करोड़ जनता को फ्री भोजन (5 किलो अनाज व 1 किलो चना) बांटने पर आ गए, जिसपर 5 महिनों मे सरकार रु 90,000 करोड़ खर्च करेगी। दो लोगो के परिवार मे दो समय के भोजन के अनुसार, यह भोजन 8 ग्राम चना व 40 ग्राम अनाज प्रति समय प्रति व्यक्ति पड़ता हैI गरीबो को अनाज व Mid-day meal के सरकारी आकड़ों मे व वास्तविक लाभार्थियो मे काफी अंतर हैI

सरकारें आती हैं, सरकारें जाती हैं, लेकिन ये गरीब वहीं खड़े रह जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक 29 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे थे। अब इस करोना काल में 80 करोड़ गरीब लोगों को भोजन देना यह दर्शाता है कि गरीब की दशा कितनी दयनीय है। दो जून की रोटी मिल जाये, जिंदा रहने के लिए इतना ही काफी है। जब देश की 44 करोड़ जनता जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार व झारखंड मे रहती है, मे से 30 करोड़ लोगो को दो समय का खाना नहीं मिल पता हैI

यह इस बात को दर्शाता है कि हाथ को काम नहीं। कहाँ गई सभी को शिक्षा, सभी को चिकित्सा की बातें। सरकारी दावो को नकारते हुए, साल दर साल, महंगी चिकित्सा व दवाइया करोड़ो लोगो को गरीबी रेखा के नीचे धकेल देती हैI हर जाह व्यापम जैसे जाल, भर्तियों मे घोटाले फैले हुए हैI बढ़ती बेरोजगारी के लिए काफी हद तक सड़ी-गली शिक्षण व्यवस्था व महंगी higher-education हैI

लेकिन मुझे एक और बात परेशान करती है। क्या इंसान को जीने के लिए सिर्फ दो जून की रोटी ही चाहिए। हमारे संविधान के अनुछेद 21 ने हर भारतीय को सम्मान से जीने का अधिकार दिया है। यह हर नागरिक का fundamental right है। क्या सिर्फ दो जून की रोटी खा जीना, जानवरों से जीना नहीं है। क्या यह अवाम के fundamental rights का हनन नहीं है। लेकिन देश के नेताओं को जो ‘जन प्रतिनिधि’ हैं उनको यह बात सोचने की फुर्सत कहाँ। वो तो मशगूल हैं जोड़ तोड़ कर सत्ता पर काबिज होने की उधेड़बुन में। इस बदर बाँट में कि किस समर्थन देने वाली पार्टी के कितने मंत्री होंगे। क्या सरकारो को गिराने व चुनाव कराने के कोई बजट नहीं होता जो वास्तव मे आम जनता के पैसे से ही होता हैI जनता की किसे फिक्र है। जब जनता और खास कर गरीब वादों और जुमलों से खुश हो जाता है, और क्यों दें। आज भारत की ज़्यादातर जनसंख्या झुग्गी झोपड़ियों, मलिन बस्तियों व समकक्ष स्थानो में रहती है।

जनता रु2 – रु2.5 लाख करोड़ शराब पर खर्च करती है व अपने परिवार की अनदेखी व समाज मे बुराइयों का कारण बनते हैI पेट्रोल-डीसल की ज्यादा tax, जो कुछ समय मे कई गुना बढ़ गया है,  के कारण जनता को निचोड्ति कीमते अर्थ-व्यवस्था को तार-2 कर रही हैI बेरोजगारी से त्रस्त जनता को कोरोना काल ने पंगु बना दिया हैI

अब सवाल यह पैदा होता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? अवाम को नेता वार पलटवार में उलझा देते हैं। आंकड़ों की जादूगरी में भटका देते हैं। सत्ता के गलियारों तक उनकी आवाज़ और सिसकियाँ पहुँच नहीं पाती। घोषणाएँ सिर्फ कागजों पर ही रह जाती हैं। और गरीब सिर्फ इंतज़ार करता रह जाता है। जब चुनाव का मौसम आता है, फिर गरीब की पूछ होने लगती है। इसलिए नहीं कि वो इंसान है बल्कि इसलिए कि वो एक वोट है। उसका महत्व एक वोट से अधिक कुछ नहीं। शायद चुनावी मौसम में ही गरीब को नेताओं (अपने जन प्रतिनिधि) के दर्शन होते हैं और उनके दर्शन पाकर गरीब धन्य हो जाता है। फिर शुरू होती है गरीबों की वोटों की लामबंदी। छुटभैया नेता जो गरीबों को सुनहरे भविष्य के सपने दिखते हैं, गरीबों के वोटों का सौदा कर, इन्हें कुछ रुपये, शराब या रोटी दे, इनकी वोट नेताओं की झोली में डलवा देते हैं और फिर इन गरीबों को वही जिल्लत भरी ज़िंदगी जीने के लिए छोड़ देते हैं।

अगर कोई गरीब किसी बड़े घोटाले का खुलासा करता है, अपने साथ हो रही ज़्यादतियों की शिकायत करता है तो सुनवाई तो बहुत दूर की बात वरन सरकारी तंत्र उसके पीछे पद जाता है, उसे पुलिस तंग करती है, सरकारी अधिकारी गलत नोटिस भेज उसको इतना मजबूर कर देते हैं की वह अपने हक़ को भूलकर अपने को बचाने मे लग जाता है और सरकार मूकदर्शक बनी रहती है।

दूसरी और देश की सम्पदा मुट्ठी भर लोगों के हाथों में है। उनके किलेनुमा घर पर प्राइवेट जेट उतरते हैं। वो तीन लाख के कप में चाय पीते हैं। वो बेताज बादशाह है। वो देश की आर्थिक नीतियों के निर्धारण में सरकार पर दबाव बनाते हैं। सरकार गिराने और बनाने में पर्दे के पीछे उनकी भूमिका होती है। ये पूंजीपति political parties को गुप्त चंदा देते हैं। सरकार कोई भी हो उनकी उनकी चाँदी होती है। Oxfam ने Jan 2020 मे बताया की भारत मे inequalities बढ़ी है और 1% भारतीयो के पास 73% National Wealth के बराबर धन है व 63 अरबपति का धन रु24,42,200 करोड़I इससे समाज मे जुर्म की समस्या व शिक्षा, स्वस्थ्य का अभाव बढ़ा हैI भारत एक संपदाओ से सम्पन्न देश है जिनपर सारी जनता का हक़ है, लेकिन इन संपदाओ पर सिर्फ कुछ लोगो ने कब्जा कर रखा है जो घोटालो के रूप मे सामने आता रहता हैI इसके अलावा इन super-rich ने लाखो करोड़ रुपये काला धन व बेनामी संपत्ति के रूप मे देश व विदेशो मे निवेश व जमा कर रखा हैI वास्तव में सरकार की बागडोर पूँजीपतियों के हाथ में है।

गरीब और अमीर की खाई इतनी चौड़ी हो गई है कि इसे पाटने के लिए नीयत और नीति दोनों चाहिए। लेकिन कोई भी पॉलिटिकल पार्टी ऐसा करना नहीं चाहती। क्योंकि अगर गरीब अगर दो जून की रोटी की कशमकश से बाहर आ गया तो वो सवाल करेगा और नेताओं से सवाल करना मना है। लेकिन मेरा सवाल है कि क्या गरीब को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराये बिना देश का विकास संभव है? क्या भूखी, बीमार, अनपढ़ जनता देश को विश्व-गुरु बनाने मे योगदान दे सकती है? क्या पेट्रोल व शराब जिनके भरोसे चलती सरकारें, गरीब होती जनता, भूख से झूझता अवाम,  देश की अर्थ-व्यवस्था को विश्व के मानचित्र पर अंकित करेगी? जरा सोचिए! फैंसला आप खुद कीजिये।

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