
अपराधी कौन?
राजनैतिक पार्टीयों के लिए यह है एक चूनावी मूद्दा
हर तरफ त्राही त्राही मची हुई है। मंहगाई बेलगाम है, जनता परेशान है, सरकार नाकाम है और मंहगाई है कि रूकने का नाम नहीं ले रही। बड़ा सवाल यह है कि मंहगाई का दानव अचानक मुँह खोल के कैसे खड़ा हो गया? इसके लिए जिम्मेदार कौन है-सरकार की नीतियाँ, भ्रष्टाचार, जमाखोरी या सही समय पर सही कदम न उठाना। कारण चाहे जो कोई भी हो, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि आज इस बढती मंहगाई के सामने सरकार असहाय है। इस सच्चाई को प्रधनमंत्री एवं वित्तमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है। अगर सरकार चलाने वाले ही अपने हाथ खडे़ कर देगें तो आम आदमी का क्या होगा। अगर ये सरकार की चैतरफा विफलता नहीं तो क्या है? बीएनटी की टीम ने इसके कारणों की गहराई से जाॅच करने की कोशिश की जिसके चलते मंहगाई बेकाबू हुई तो उसमे सबसे पहला कारण सरकार की गलत नीतियां है। विभिन्न राजनैतिक पार्टिया जिन्होने समय समय पर सत्ता की बागडोर सम्भाली उन्होनें अपनी राजनैतिक रोटियां सेकी व ऐसे बीज बोये जिससे ये समस्या नासूर बन गई। उन्होने वोट बैंक की राजनीति करने के लिए सबसीडी दीं जो सरकारी खजानों पर बहूत बड़ा बोझ थी लेकिन उन्होने देश का हित न देखकर सत्ता सुख भोगा। चाहे वो काग्रेस हो, जनता पार्टी हो, एनडीए हो या यूपीए हो। सभी का एक ही लक्ष्य था साम-दाम-दण्ड-भेद से सत्ता हासिल करना व यह सुनिश्चित करना की वो ज्यादा से ज्यादा समय तक सत्ता का उपभोग कैसे कर सकते हैं? क्योंकि यदि समय रहते इस ओर ध्यान दिया गया होता तो ये समस्या इतना भीषण रूप धरण न करती। आज सभी पार्टीयां सरकार को मंहगाई बेकाबू होने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहीं हैं लेकिन मंहगाई कैसे रोकी जाए, इसके क्या कारगर उपाय हो सकते है। इसका कोई जबाव किसी भी पार्टी के पास नहीं है। वो जो भी कह रहीं हैं राजनैतिक पार्टीयां जो भी कर रही है अपने राजनैतिक पफायदे के लिए कर रहीं हैं वो इस समस्या का समाधन नहीं करना चाहती, वो उसे एक चूनावी मूद्दे की तरह देख रहें है जिससे वो सत्ताधरी पार्टी को कटघरे में खड़ा कर सके। इस समस्या को वो राजनैतिक माइलेज उठाने के लिए इस्तेमाल कर रहें हैं। इस मूद्दे का इस्तेमाल विपक्षी पार्टीयां सत्ताधरी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए हथियार के रूप में उपयोग कर रहीं है। लेकिन वो विपक्षी पार्टीयां ये भूल जाती हैं कि यही हथियार आम आदमी की गर्दन पर भी चल रहा है, आम आदमी बेबस है और ये विपक्षी पार्टीयां इस मूद्दे का ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक फायदा कैसे उठाया जाये इसमें तल्लीन है। इसी चीज का फायदा उठाकर पैसे वाले असरदार लोगों ने सरकार पर दबाव डलवाकर आम जनता को सस्ती चीज उपलब्ध कराने के नाम पर रिटेल सेक्टर पर कब्जा जमा लिया है। उनके द्वारा की जा रही Essential Commodities की बडे पैमाने पर खरीद व उसकी स्टोरेज Legalized जमाखोरी नहीं तो और क्या है? सरकार ने हाल ही में जमाखोरी के विरूध जो छापे मारे उस में कुछ छुटभईये व्यापारियों के गोदामों पर रेड की गई उनके खिलापफ मुकदमें बनाये गये। लेकिन जो असरदार रसूकदार लोग थे, जिन्होने अरबों के माल की जमाखोरी की और बाजार में Artificial Scarcity पैदा कर Essential Commodities के दाम बढाये उनको बेनकाब करने की सरकार में हिम्मत नहीं थी और कोई भी पार्टी ने इस मूद्दे को नहीं उठाया क्योंकि ये वही लोग हैं जो इन राजनैतिक पार्टीयों को चन्दा देते है और दूसरी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराते है। इन लोगों की बैठ न केवल सरकार में है बल्कि विपक्षी पार्टीयों में भी इनकी जडें गहरी हैं। इस समस्या का हल हमारी नजर में रेड मारना नहीं है। अगर जमाखोरी को रोकना है और मंहगाई को काबू करना है तो ऐसे तंत्रा को स्थापित करना होगा जिससे इसका स्थायी हल हो सके।