फरीदाबाद. सूरजकुंड मेले में नीम की लकड़ी से बनी करीब 7 फुट ऊंची तिरुपति बालाजी की मूर्ति आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पर्यटक इसकी भव्यता और सुंदरता को देख इसके साथ सेल्फी ले रहे हैं। आंध्र प्रदेश के चित्तौड़ जिले के माधवममाला गांव से आए पी. सामबीयाह बताते हैं कि इस मूर्ति को बनाने में उन्हें करीब 2 साल लगे। इसकी कीमत 3.50 लाख रुपए है। लेकिन 10 साल से इस मूर्ति का कोई खरीदार नहीं मिला।
सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले से आस टिकी है शायद कोई खरीदार मिल जाए। पी.
सामबीयाह बताते हैं कि वुड कारविंग उनका पुस्तैनी कारोबार है। उन्होंने
अपने पुरखों से इस कला को सीखा है। पहले वह लकड़ी की खिड़की और दरवाजा बनाते
थे, लेकिन उनका कारोबार धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा। एक समय ऐसी नौबत आ गई कि
बुरी तरह आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। उन्होंने समय के अनुसार खुद को बदला
और लकड़ी से मूर्तियां बनाना शुरू किया। 15 साल से मूर्तियां बना रहे हैं।
पी. सामबीयाह बताते हैं कि वुड कारविंग उनका पुस्तैनी कारोबार है
पी. सामबीयाह के अनुसार नीम की लकड़ी मुलायम होती है। सूखने के बाद भी
इसमें दरारें नहीं आतीं। इसलिए मूर्ति बनाने आसान होता है। वह मूर्ति को
बनाने में मशीन का इस्तेमाल नहीं करते हैं। मोटी लकड़ी को बड़ी बारीकी से
मूर्ति का शक्ल देते हैं। छोटी मूर्तियों में लकड़ी के एक पीस का इस्तेमाल
किया जाता है। लेकिन बड़ी मूर्तियों में लकड़ी के कई पीस का इस्तेमाल करते
हैं।
तारपीन के तेल से करते पाॅलिस
मूर्ति को सुंदर और चमकदार बनाने के लिए तारपीन के तेल का इस्तेमाल करते
हैं। इस तेल से पॉलिश करने के बाद उसी में ब्लैक, ब्रॉन आदि कलर डालकर
मूर्ति रंगते हैं। इससे उसमें चमक आ जाती है।
बड़ी मूर्तियों के खरीदार नहीं हैं
उन्होंने बताया तिरुपति बालाजी की मूर्ति को उन्होंने 10 साल पहले बनाया था। विभिन्न मेलों में यह मूर्ति आकर्षण का केंद्र होती है, लेकिन बड़ी मूर्तियों के खरीदार काफी मुश्किल से मिलते हैं।