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कब होता है कंप्लेंट केस

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अपडेटेड 04 फ़रवरी 2020, 9:36 AM IST
कब होता है कंप्लेंट केस
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कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि मामले में सीधे थाने में केस दर्ज नहीं हो सकता और ऐसे मामले में कोर्ट मेंकंप्लेंट केस किए जाने का प्रावधान है।

कानूनी जानकार बताते है कि सीआरपीसी के तहत कंप्लेंट केस दर्ज करने का प्रावधान है। जब मामला असंज्ञेय अपराध से जुड़ा हो मसलन मामला कम मामूली अपराध का हो जैसे मानहानि का मामला हो या फिर मारपीट का हो तो ऐसे मामले में पुलिस सीधे केस दर्ज नहीं करती। ऐसे मामले में कंप्लेंट केस दायर करना होता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी बताते हैं कि सीआरपीसी की धारा 200 के तहत सम्बंधित मैजिस्ट्रेट की अदालत में कंप्लेंट केस दायर किया जाता है। इस दौरान गवाहों की लिस्ट भी कोर्ट को सौपी जाती है। शिकायती को अदालत के सामने तमाम सबूत पेश करने होते हैं। उन दस्तावेजों को देखने के साथ-साथ अदालत में प्रीसमनिंग एविडेंस होता है। यानी प्रतिवादी को समन जारी करने से पहले का एविडेंस रेकॉर्ड किया जाता है।

प्रतिवादी कब बनता है
शिकायती ने जिस पर आरोप लगाया है, वह तब तक आरोपी नहीं है, जब तक कि कोर्ट उसे बतौर आरोपी समन जारी न करे। यानी शिकायती ने जिस पर आरोप लगाया है, वह प्रतिवादी होता है और अदालत जब शिकायती के बयान से संतुष्ट हो जाए तो वह प्रतिवादी को बतौर आरोपी समन जारी करती है और इसके बाद ही प्रतिवादी को आरोपी कहा जाता है, उससे पहले नहीं। कोर्ट सबसे पहले शिकायती का बयान रिकॉर्ड करती है और फिर गवाहों का बयान दर्ज करती है। इसके बाद कोर्ट अगर सन्तुष्ट हो तो प्रतिवादी को बतौर आरोपी समन जारी करती है। फिर केस शुरू होता है और उस दौरान दोबारा बयान होता है और जिरह होती है। कंप्लेंट केस में शिकायती के बयान से अगर अदालत संतुष्ट न हो तो केस उसी स्टेज पर खारिज कर दिया जाता है।

एडवोकेट अमन सरीन के मुताबिक एक बार अदालत से समन जारी होने के बाद आरोपी अदालत में पेश होता है और फिर मामले की सुनवाई शुरू होती है। पुलिस केस और कंप्लेंट केस में फर्क कंप्लेंट केस में शिकायती को हर तारीख पर पेश होना होता है। लेकिन शिकायत पर अगर सीधे पुलिस ने केस दर्ज कर लिया हो या फिर अदालत के आदेश से पुलिस ने केस दर्ज किया हो तो शिकायती की हर तारीख पर पेशी जरूरी नहीं है। ऐसे मामले में जिस दिन शिकायती का बयान दर्ज होना होता है, उसी दिन शिकायती को कोर्ट जाने की जरूरत होती है।

कंप्लेंट केस में शिकायती को तमाम सबूत अदालत के सामने देने होते हैं, जबकि पुलिस केस में पुलिस मामले की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करती है। शिकायती और आरोपी के बीच समझौता होने के बाद कोर्ट की इजाजत से केस रद्द किया जा सकता है, वहीं कंप्लेंट केस में शिकायती चाहे तो केस वापस ले सकता है।

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