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NSE घोटाला अदृश्य बाबा के कहानी – क्या सच्चाई कभी बाहर आएगी ?

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अपडेटेड 26 सितंबर 2023, 5:23 PM IST
NSE घोटाला अदृश्य बाबा के कहानी – क्या सच्चाई कभी बाहर आएगी ?
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भारत एक आस्था प्रधान देश है, लेकिन जब जब यहां के महत्वपूर्ण अधिकारी किसी साधु-संत या योगी के चक्कर में पड़कर महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिए, आमलोगों को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का धीरेंद्र ब्रह्मचारी के प्रति आस्थावान होने की बात करें या पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव का चंद्रास्वामी के प्रति श्रद्धावनत रहने की बात करें, या फिर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चित्रा रामकृष्ण द्वारा एक तथाकथित हिमालयी योगी की सलाह पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने की बात करें, इनके पारस्परिक सम्बन्धों के चक्कर में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों से अक्सर आम आदमी ही प्रभावित हुआ है।

ऐसा इसलिए कि ऐसे अभिजात्य वर्गीय संत अपने सम्पर्क में रहने वाले दिग्गज लोगों को मोक्ष के दिवास्वप्न के साथ साथ समसामयिक लाभ के नुस्खे सुझाते हैं और उनके मनमाफिक चलने वाले लोगों को पहले मालामाल, फिर कंगाल कर देते हैं। यह तो महज बानगी है, बल्कि ऐसी अनकही कहानियां देश-प्रदेश में बिखरी पड़ी हैं। ऐसे लोगों के प्रति समाज के सकारात्मक कम, नकारात्मक अनुभव ज्यादा हैं। इसलिए आस्था रखिए, पर वैज्ञानिक नजरिये और तार्किक मत के अनुरूप, अन्यथा लेने के देने पड़ जायेंगे। NSE की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चित्रा रामकृष्ण की तरह, जिनपर यानी चित्रा रामकृष्ण पर रू3 करोड़, नारायण और सुब्रमन पर रू2-2 करोड़ और रूवी आर नरसिम्हन पर 6 लाख का जुर्माना लगाया गया है। बता दें कि तीन साल से ज्यादा दिनों तक रही एमडी एंड सीईओ रामकृष्ण अप्रैल 2013 से दिसंबर 2016 तक NSE की एमडी एवं सीईओ थीं।

सेबी जांच में अनुतार्रित सवाल

सवाल है कि क्या देश के अग्रणी स्टॉक एक्सचेंज NSE में घोटाला महज इसलिए हो गया कि आस्था प्रधान देश भारत का एक महत्वपूर्ण वित्तीय अधिकारी किसी अदृश्य योगी की सलाह पर अपने तमाम फैसले लिया करता था, जिसके लीक होते रहने से एक बड़ा घोटाला हो गया? इसलिए SEBI की पूछताछ में चौंकाने वाला खुलासा है कि आखिरकार हिमालय में शेयर बाजार पर किसका नियंत्रण था? क्या हिमालय में बैठा कोई सिद्ध व्यक्ति स्टॉक एक्सचेंज चला सकता है जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण माना जाता है? यदि आप ऐसा पूछेंगे तो आपके मन में ही कई सवाल उठेंगे। वह इसलिए कि SEBI ने ही गत शुक्रवार को जारी अपने आदेश में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। साथ ही यह स्पष्ट भी कर दिया है कि यह निर्णय कथित योगी की सलाह पर चित्रा रामकृष्ण द्वारा लिया गया था। हालांकि, SEBI ने अपनी जांच में यह खुलासा नहीं किया कि घोटाले से NSE को कितना नुकसान हुआ है। इसने यह भी नहीं बताया है कि क्या कुछ व्यक्तियों ने देश के सबसे बड़े एक्सचेंज में शेयरों का व्यापार करके घोटाले से पैसा कमाया है। क्या इस घोटाले से देश के करोड़ों निवेशक प्रभावित हुए हैं? तथाकथित योगी से किसका ईमेल अकाउंट जुड़ा है? ऐसे कई सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं।

बताया जाता है कि NSE की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चित्रा रामकृष्ण एक तथाकथित हिमालयी योगी की सलाह पर पिछले 20 वर्षों से अपने जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय ले रही थीं। उनसे ही जुड़े एक व्यक्ति द्वारा हिमालयी योगी को शेयर बाजार से जुड़ी अहम जानकारियां भी भेजी जा रही थीं। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि वह अब तक इस योगी से कभी नहीं मिली हैं। वह इसके महज संपर्क में थीं, पर उन्होंने उन्हें कभी नहीं देखा। उनका दावा है कि ये योगी कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। SEBI ने अपनी जांच में पाया है कि एक उच्च प्रोफ़ाइल नियुक्ति कथित योगी की सिफारिश के साथ की गई थी, जो इस घोटाले की एक वजह समझा जा रहा है। वाकई अज्ञात योगी एक समूह संचालन अधिकारी और स्टॉक एक्सचेंज के सलाहकार आनंद सुब्रमण्यम की हाई-प्रोफाइल नियुक्ति में शामिल था। दरअसल, आनंद सुब्रमण्यम को NSE समूह के कार्यकारी अधिकारी और चित्रा रामकृष्ण के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। पर गौर करने वाली बात यह है कि निवेश जगत में सुब्रमण्यम को कोई जानता तक नहीं है। वहीं, इस घोटाले के सामने आने पर उन्होंने 2016 में इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद ही उनसे हुई पूछताछ में कई खास खुलासे हुए हैं।

यही वजह है कि आनंद सुब्रमण्यम की नियुक्ति के मामले में सेबी ने गत शुक्रवार को ही बड़ी कार्रवाई की। उसने चित्रा रामकृष्ण और रवि नारायण सहित कुछ लोगों को सुरक्षा अनुबंध नियम के उल्लंघन का दोषी पाया है। चित्रा रामकृष्ण और अन्य के खिलाफ शुक्रवार को पारित अपने अंतिम आदेश में SEBI ने यह खुलासा किया है। SEBI ने रामकृष्ण एवं अन्य पर जुर्माना भी लगाया। यह जुर्माना सुब्रमण्यन की नियुक्ति में प्रतिभूति अनुबंध नियमों के उल्लंघन को लेकर लगाया गया। नियामक ने यह कदम समूह के परिचालन अधिकारी और प्रबंध निदेशक (एमडी) के सलाहकार के रूप में आनंद सुब्रमण्यन की नियुक्ति में प्रतिभूति अनुबंध नियमों के उल्लंघन को लेकर लगाया है।

SEBI की आधी-अधूरी जांच व् आर्डर

SEBI ने अपने 190 पन्नों के आदेश में पाया कि योगी ने उन्हें सुब्रमण्यम को नियुक्त करने के लिए निर्देशित किया। इस मामले में कार्रवाई करते हुए सेबी ने रामकृष्ण और सुब्रमण्यन के साथ ही NSE और उसके पूर्व प्रबंध निदेशक तथा मुख्य कार्यपालक अधिकारी रवि नारायण तथा अन्य पर भी जुर्माना लगाया। इसके साथ ही नियामक ने एनएसई को कोई भी नया उत्पाद पेश करने से छह महीने के लिये रोक दिया। बता दें कि नरसिम्हन एनएसई के मुख्य नियामक अधिकारी और मुख्य अनुपालन अधिकारी थे। इसके अलावा, रामकृष्ण और सुब्रमण्यन को तीन साल की अवधि के लिए किसी भी बाजार ढांचागत संस्थान या सेबी के साथ पंजीकृत किसी भी मध्यस्थ के साथ जुड़ने को लेकर रोक लगायी गयी है। जबकि नारायण के लिये यह पाबंदी दो साल के लिये है। सेबी ने इसके अलावा NSE को रामकृष्ण के अतिरिक्त अवकाश के बदले भुगतान किये गये रू1.54 करोड़ और रू2.83 करोड़ के बोनस (डेफर्ड बोनस) को जब्त करने का भी निर्देश दिया। SEBI ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि चित्रा रामकृष्ण के अनुसार वह एक गुमनाम व्यक्ति जो एक आध्यात्मिक शक्ति थी, के सम्पर्क में थीं। वह जहां चाहे वहां हाजिर हो सकती है। उसका कोई निश्चित पता या ठिकाना नहीं था। वह मनुष्य मुख्य रूप से हिमालय में साधनारत रहता था। उसी के प्रभाव वश वह पूरी तरह से सुब्रमण्यम पर निर्भर थीं। वहीं, SEBI ने भी यह कहा है कि सुब्रमण्यम योगी का साथी था, जो महत्वपूर्ण निर्णय लेने में चित्रा रामकृष्ण को प्रभावित करता था। इसलिए समूह संचालन अधिकारी और एमडी के सलाहकार का पद उनके लिए बिल्कुल उपयुक्त था। SEBI के आदेश पर उसके पूर्णकालिक सदस्य अनंत बरुआ के हस्ताक्षर हैं। आदेश में यह भी कहा गया है कि योगी के आदेश पर हर साल सुब्रमण्यम को मोटी रकम का भुगतान किया जा रहा था। दूसरी ओर, सुब्रमण्यम ने 12 सितंबर, 2018 को अपने एक बयान में कबूल किया है कि वह पिछले 22 वर्षों से अज्ञात योगी को जानता था। सेबी के अनुसार, हर साल सुब्रमण्यम के लिए NSE के खजाने से कम से कम रू5 करोड़ निकल रहे थे क्योंकि चित्रा रामकृष्ण पूरी तरह से सुब्रमण्यम पर निर्भर थीं और उनके बिना वह कोई बड़ा फैसला नहीं कर सकती थी।

SEBI के आदेश के मुताबिक, रामकृष्ण ने योगी को सेबी के फैसले, कर्मचारियों से जुड़ी नीतियों और संगठन के ढांचे से जुड़ी अहम जानकारियां लीक की थीं। यह जानकारी 2014 से 2016 के बीच लीक हुई थी। सेबी ने इसके लिए इस्तेमाल किए गए ईमेल का भी खुलासा किया है। इसलिए सवाल उठ रहा है कि इस पूरे झोल मोल में निवेशकों को कितना नुकसान हुआ? क्योंकि NSE की पूर्व एमडी एंड सीईओ हिमालय के एक योगी की सलाह पर लेती थी फैसला, यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी है।

क्या कुछ लोगो को फायदा योगी के कहने पर पहुँचाया गया ?

बता दें कि 2014-15 में एक मुखबिर ने सेबी से शिकायत की थी कि कुछ ब्रोकरों ने NSE के कुछ शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ मिलीभगत से को-लोकेशन फैसिलिटी का दुरुपयोग किया। इसके मुतल्लिक ही पूंजी बाजार नियामक सिक्यॉरिटीज ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने NSE को एक खास जगह पर स्थापित एक्सचेंज के कुछ सर्वर को कारोबार में कथित रूप से वरीयता देने यानी को-लोकेशन के मामले में रू687 करोड़ का जुर्माना लगाया है। इसके अलावा, कंपनी के दो पूर्व प्रमुखों पर भी कार्रवाई की गई है। समझा जाता है कि NSE की को-लोकेशन सुविधा के माध्यम से हाई फ्रिक्वेंसी वाले कारोबार में अनियमितता के आरोपों की जांच के बाद सेबी ने यह आदेश दिया था, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि NSE को रू624.89 करोड़ और उसके साथ उस पर 1 अप्रैल 2014 से 12 प्रतिशत सालाना ब्याज दर सहित पूरी राशि सेबी द्वारा स्थापित निवेशक सुरक्षा एवं शिक्षा कोष (आईपीईएफ) में भरनी होगी।

सवाल है कि आखिर को-लोकेशन क्या है और कैसे काम करता है? तो जवाब होगा कि को-लोकेशन के कारण ब्रोकर सर्वर के ज्यादा नजदीक होकर काम कर सकते हैं। इस सुविधा के लिए ब्रोकरों को अतिरिक्त शुल्क चुकाना पड़ता है। इस सुविधा का इस्तेमाल करने वाले ब्रोकरों को दूसरे ब्रोकरों पर बढ़त मिल जाती है क्योंकि एक्सचेंज सर्वर से ज्यादा नजदीकी के कारण उन्हें दूसरों के मुकाबले कम वक्त में डेटा ट्रांसमिशन का लाभ मिल जाता है। यह सुविधा लेने वाले ब्रोकरों के ऑर्डर्स एक्सचेंज सर्वर उन ब्रोकरों के मुकाबले जल्दी पहुंच जाते हैं जिन्होंने यह सुविधा नहीं ले रखी है।

सवाल है कि इसमें क्या घोटाला हुआ? तो जवाब होगा कि 2014-15 में एक मुखबिर ने सेबी से शिकायत की थी कि कुछ ब्रोकरों ने एनएसई के कुछ शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ मिलीभगत से कोलोकेशन फसिलिटी का दुरुपयोग किया। तब एनएसई के सदस्यों के बीच आंकड़े प्रसारित करने के लिए तथाकथित टिक-बाय-टिक (टीबीटी) सर्वर प्रोटोकॉल का इस्तेमाल हुआ करता था। इस सिस्टम की प्रमुख विशेषता सूचना भेजने का इसका तरीका थी। सामान्य डेट प्रॉकोकॉल्स में नेटवर्क से जुड़े सभी यूजर्स को एक वक्त में ही डेटा भेजे जाते हैं। लेकिन, टीबीटी में ऑर्ड्स प्राप्त करने के क्रम में ही डेटा भेजे जाते हैं। कुछ ब्रोकरों ने एनएसई अधिकारियों और ऑम्नेसिस टेक्नॉलजीज, जो एनएसई को टेक्नॉलजी मुहैया कराने वाली कंपनी है, की मिलीभगत से NSE सर्वर को सबसे पहले एक्सेस किया करते थे।

क्या यह आम निवेशकों के साथ धोखा नहीं ?

सवाल है कि SEBI को क्या मिला? तो जवाब होगा कि SEBI ने ओपीजी सिक्यॉरिटीज, जीकेएन सिक्यॉरिटीज और वेकटुवेल्थ के साथ-साथ इंटरनेट सेवा प्रदाता संपर्क इन्फोटेनमेंट को अनुचित व्यापारिक कार्यप्रणाली यानी अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस का दोषी पाया। ये ब्रोकर्स लगातार NSE सर्वर्स का इस्तेमाल दूसरों से पहले करते रहे। ओपीजी और दूसरों ने NSE के बैकअप सर्वरों तक पहुंच बना ली। एक्सचेंज इसका रखरखाव मेन सर्वर में तकनीकी गड़बड़ियां आने की स्थिति में ट्रेडिंग ऑपरेशन को अबाध गति से जारी रखने के लिए करता है। इन सर्वरों पर बेहद कम या तो बिल्कुल भी ट्रैफिक नहीं होती है, क्योंकि ये सिर्फ बैकअप के लिए होते हैं। आम दिनों में जब मेन सर्वर काम करते हैं, तब बैकअप सर्वर से लॉगइन करने वाले को बहुत तेजी से डेटा मिल जाता है। सेबी के मुातबिक, ओपीजी और दूसरों ने इसी का फायदा उठाया।

सवाल है कि क्या NSE ने कानून तोड़ा था? तो जवाब होगा कि NSE ने ओपीजी और दूसरों को बैक-अप सर्वर का ऐक्सेस दिया। इन ब्रोकरों को तेजी से डेटा मिलने से ऑर्डर पूरा करने में दूसरों पर बढ़त मिल रही थी। NSE ने यह तथ्य भी नजरअंदाज किया कि संपर्क इन्फोटेनमेंट के पास टेलिकॉम डिपार्टमेंट का वैध लाइसेंस भी नहीं है ताकि वह कुछ ब्रोकरों को डार्क फाइबर कनेक्टविटी दे सके। वहीं, SEBI ने ब्रोकरों के साथ-साथ NSE के कुछ अधिकारियों पर भी जुर्माना लगाया। इनमें NSE की पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्णन, पूर्व एमडी रवि नारायण, NSE में कोलो डिपार्टमेंट के पूर्व प्रमुख देवी प्रसाद सिंह, मौजूदा बिजनस डिवेलपमेंट हेड रवि वाराणसी और सीटीओ उमेश जैन समेत कुछ अन्य लोग शामिल हैं। SEBI ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा कि प्रमुख पदाधिकारियों ने उचित नियमों का पालन नहीं किया। NSE पर रू687 रुपये और ब्याज का जुर्माना लगाया गया।

सवाल है कि डार्क फाइबर क्या है? तो जवाब होगा कि डार्क फाइबर से मिले कनेक्शन में ज्यादा बैंडविड्थ होता है और इससे मिलने वाले आंकड़ों में बहुत कम गड़बड़ी पाई जाती है। यानी, इसके जरिए सर्वरों तक तेज और सटीक पहुंच मिलती है।सवाल है कि SEBI के आदेश पर NSE पर क्या असर होगा? तो जवाब होगा कि सेबी ने NSE को रू687 करोड़ का जुर्माना लगाया। साथ ही, NSE को अगले छह महीने तक कैपिटल मार्केट्स की पहुंच से रोक दिया है। इसके आईपीओ इस वर्ष के आखिर तक टल जाएंगे, लेकिन इसका NSE या इसके वैल्युएशन पर असर पड़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जुर्माना चुकाने के लिए एनएसई के पास पर्याप्त रकम है। और जुर्माना भरने के बाद भी उसकी आर्थिक स्थिति पर मजबूत ही रहेगी। SEBI के आदेश से एक्सचेंज पर होने वाले सामान्य कारोबार निष्प्रभावी रहेंगे।

मद्रास उच्च न्यायालय ने जांच एजेन्सिओ को नोटिस जारी किया

बता दें कि एक बार मद्रास उच्च न्यायालय ने भी NSE के करोड़ों रुपये के को-लोकेशन घोटाले में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और तीन अन्य एजेंसियों को नोटिस जारी किया था। उसने चेन्नई फाइनेंशियल मार्केट्स एंड अकाउंटैबिलिटी (सीएफएमए) की जनहित याचिका पर अदालत ने नोटिस जारी किया था। सीएफएमए ने अपनी याचिका में कहा था कि इस चार साल पुराने घोटाले में सीबीआई जांच की गति काफी धीमी है। उसने कहा कि यह परेशान करने वाला है कि सेबी ने NSE और उसके अधिकारियों को सेबी (प्रतिभूति बाजार से संबंधित धोखाधड़ी और और अनुचित व्यवहार प्रतिबंध कानून) नियमन, 2003 के तहत सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया। तब न्यायमूर्ति एम सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति एन शेषासायी की खंडपीठ ने NSE, SEBI, CBI, ED और गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) और वित्तीय आसूचना इकाई (FIU) को नोटिस जारी किया था।

क्या अदृश्य योगी एक छलावा है ? क्या यह आम निवेशकों को लूटने का एक षड़यंत्र है ? क्यों कई सालो की जांच के बाद भी जांच एजेंसीज सच्चाई का पता नहीं लगा पाई ? SEBI जांच में अनुतार्रित सवाल क्यों है ? SEBI की आधी-अधूरी जांच व् आर्डर क्यों है ? क्या कुछ लोगो को फायदा योगी के कहने पर पहुँचाया गया ? क्या यह आम निवेशकों के साथ धोखा नहीं ? क्यों मद्रास उच्च न्यायालय ने जांच एजेन्सिओ को नोटिस करना पड़ा ? जरा सोचिये, फैसला आप खुद कीजिये !

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